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Korba latest news करोड़ों का ब्लड सेपरेटर मशीन बना सफेद हाथी, कोरबा मेडिकल कॉलेज प्रबंधन की अनदेखी

Korba latest news कोरबा के मेडिकल कॉलेज में प्रशासन की अनदेखी के कारण ब्लड सेपरेटर मशीन अब तक शुरु नहीं हो सकी है. जिसके कारण मरीजों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है.इस मशीन को शुरु करने के लिए मेडिकल कॉलेज प्रबंधन ने काफी कोशिशें भी की लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा. प्रबंधन की माने तो इस मशीन को शुरु करने के लिए एक पूरक मशीन की जरूरत है.

करोड़ों का ब्लड सेपरेटर मशीन बना सफेद हाथी
करोड़ों का ब्लड सेपरेटर मशीन बना सफेद हाथी
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Published : Oct 19, 2022, 12:16 PM IST

Updated : Oct 19, 2022, 12:53 PM IST

कोरबा: विपरीत परिस्थितियों में मरीजों को कई बार खून के अलग-अलग घटक की जरूरत होती है. जिसमें प्लेटलेट, प्लाज्मा, आरबीसी और डब्ल्यूबीसी शामिल हैं. किसी भी इंसान के खून से इन 4 घटकों को एक विशेष मशीन से पृथक किया जाता है. खून के घटकों को पृथक करने वाली ब्लड सेपरेटर मशीन 2019 में ही मेडिकल कॉलेज अस्पताल पहुंच गई है. लेकिन उदासीन व्यवस्था के कारण इसे अब तक शुरू नहीं किया जा सका है. जिसके कारण इसका लाभ मरीजों को नहीं मिल पा रहा है. मेडिकल कॉलेज अस्पताल प्रबंधन ने इसके लिए डायरेक्टरेट ऑफ मेडिकल एजुकेशन(DME) से मिलकर बात की पत्राचार किया, लेकिन अब तक बात नहीं बनी है.

कोरबा मेडिकल कॉलेज प्रबंधन की अनदेखी
ब्लड सेपरेटर मशीन की कुल लागत 1 करोड़ रुपये है. इसे चालू करने के लिए 35 लाख रुपए के लागत की एक पूरक मशीन की आवश्यकता है. जिसकी आपूर्ति सीजीएमएससी के माध्यम से मेडिकल कॉलेज अस्पताल को की जानी है. ब्लड सेपरेटर मशीन को शुरू करने के लिए जिस पूरक मशीन की आवश्यकता है. उसकी आपूर्ति नहीं की जा रही है, इसके स्थान पर एक गलत मशीन मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भेज दी गई है. जिसे रिप्लेस करने के बाद जिस मशीन की आवश्यकता है. उसे मंगाया जाना शेष है. इसकी प्रक्रिया जारी है. लेकिन पिछले 2 साल में भी इस प्रक्रिया को पूरा नहीं किया जा सका.ब्लड बैंक में अव्यवस्था : मेडिकल कॉलेज अस्पताल के इकलौता ब्लड बैंक प्रथम तल पर संचालित है. लेकिन यहां व्यवस्था दुरुस्त नहीं हो पा रही है. निजी ब्लड बैंक में प्लाज्मा या प्लेटलेट्स के प्रत्येक यूनिक की कीमत 1600 से लेकर 1800 रुपए तक है. जिससे मरीजों को अतिरिक्त आर्थिक बोझ वहन करना पड़ता है.क्यों ब्लड सेपरेटर मशीन है जरुरी : एक यूनिट खून में 4 तरह के कंपोनेंट मिलते हैं. जिससे चार अलग-अलग लोगों की जरूरतों को पूरा किया जा सकता है. एक यूनिट से ही प्लेटलेट्स, प्लाज्मा आरबीसी और डब्ल्यूबीसी सभी अलग-अलग निकाले जाते हैं. जिन्हें चार अलग-अलग लोगों को डोनेट किया जाता है, लेकिन मशीन नहीं होने से यह प्रक्रिया फिलहाल अटकी हुई है.

ये भी पढ़ें- पलभर में जमींदोज हो गई वंदना पावर प्लांट की गगनचुंबी चिमनी


डीएमई से चर्चा की, जल्द मशीन होगी शुरु : इस विषय में कोरबा मेडिकल कॉलेज अस्पताल के मेडिकल सुप्रिटेंडेंट गोपाल सिंह कंवर ने बताया कि ''ब्लड सेपरेटर मशीन की आपूर्ति काफी पहले ही हो चुकी है. लेकिन इसे शुरू करने के लिए एक और मशीन की जरूरत है. जिसकी आपूर्ति सीजीएमएससी के माध्यम से अब तक नहीं की जा सकती है. हमने इसके लिए डीएमई से भी मुलाकात की है. पत्राचार लिया है, लेकिन कुछ तकनीकी पेंच फंसा हुआ है. जल्द ही इसे शुरू कर लिया जाएगा यह मरीजों के लिए बेहद उपयोगी मशीन है.'' Korba latest news

कोरबा: विपरीत परिस्थितियों में मरीजों को कई बार खून के अलग-अलग घटक की जरूरत होती है. जिसमें प्लेटलेट, प्लाज्मा, आरबीसी और डब्ल्यूबीसी शामिल हैं. किसी भी इंसान के खून से इन 4 घटकों को एक विशेष मशीन से पृथक किया जाता है. खून के घटकों को पृथक करने वाली ब्लड सेपरेटर मशीन 2019 में ही मेडिकल कॉलेज अस्पताल पहुंच गई है. लेकिन उदासीन व्यवस्था के कारण इसे अब तक शुरू नहीं किया जा सका है. जिसके कारण इसका लाभ मरीजों को नहीं मिल पा रहा है. मेडिकल कॉलेज अस्पताल प्रबंधन ने इसके लिए डायरेक्टरेट ऑफ मेडिकल एजुकेशन(DME) से मिलकर बात की पत्राचार किया, लेकिन अब तक बात नहीं बनी है.

कोरबा मेडिकल कॉलेज प्रबंधन की अनदेखी
ब्लड सेपरेटर मशीन की कुल लागत 1 करोड़ रुपये है. इसे चालू करने के लिए 35 लाख रुपए के लागत की एक पूरक मशीन की आवश्यकता है. जिसकी आपूर्ति सीजीएमएससी के माध्यम से मेडिकल कॉलेज अस्पताल को की जानी है. ब्लड सेपरेटर मशीन को शुरू करने के लिए जिस पूरक मशीन की आवश्यकता है. उसकी आपूर्ति नहीं की जा रही है, इसके स्थान पर एक गलत मशीन मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भेज दी गई है. जिसे रिप्लेस करने के बाद जिस मशीन की आवश्यकता है. उसे मंगाया जाना शेष है. इसकी प्रक्रिया जारी है. लेकिन पिछले 2 साल में भी इस प्रक्रिया को पूरा नहीं किया जा सका.ब्लड बैंक में अव्यवस्था : मेडिकल कॉलेज अस्पताल के इकलौता ब्लड बैंक प्रथम तल पर संचालित है. लेकिन यहां व्यवस्था दुरुस्त नहीं हो पा रही है. निजी ब्लड बैंक में प्लाज्मा या प्लेटलेट्स के प्रत्येक यूनिक की कीमत 1600 से लेकर 1800 रुपए तक है. जिससे मरीजों को अतिरिक्त आर्थिक बोझ वहन करना पड़ता है.क्यों ब्लड सेपरेटर मशीन है जरुरी : एक यूनिट खून में 4 तरह के कंपोनेंट मिलते हैं. जिससे चार अलग-अलग लोगों की जरूरतों को पूरा किया जा सकता है. एक यूनिट से ही प्लेटलेट्स, प्लाज्मा आरबीसी और डब्ल्यूबीसी सभी अलग-अलग निकाले जाते हैं. जिन्हें चार अलग-अलग लोगों को डोनेट किया जाता है, लेकिन मशीन नहीं होने से यह प्रक्रिया फिलहाल अटकी हुई है.

ये भी पढ़ें- पलभर में जमींदोज हो गई वंदना पावर प्लांट की गगनचुंबी चिमनी


डीएमई से चर्चा की, जल्द मशीन होगी शुरु : इस विषय में कोरबा मेडिकल कॉलेज अस्पताल के मेडिकल सुप्रिटेंडेंट गोपाल सिंह कंवर ने बताया कि ''ब्लड सेपरेटर मशीन की आपूर्ति काफी पहले ही हो चुकी है. लेकिन इसे शुरू करने के लिए एक और मशीन की जरूरत है. जिसकी आपूर्ति सीजीएमएससी के माध्यम से अब तक नहीं की जा सकती है. हमने इसके लिए डीएमई से भी मुलाकात की है. पत्राचार लिया है, लेकिन कुछ तकनीकी पेंच फंसा हुआ है. जल्द ही इसे शुरू कर लिया जाएगा यह मरीजों के लिए बेहद उपयोगी मशीन है.'' Korba latest news

Last Updated : Oct 19, 2022, 12:53 PM IST
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