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पढे़ं : नक्सलगढ़ में उखड़ रहे नक्सलियों के पैर, सरकार को जवाब देने बनाई अपनी पुनर्वास नीति

नक्सलियों के दक्षिण बस्तर डिविजनल कमेटी ने दंतेवाड़ा जिले के जगरगुंडा में नक्सली पर्चा फेंककर लगातार गांव खाली कर रहे ग्रामीणों को अपने गांव को छोड़कर न जाने और पुलिस मुखबिर न बनने का आह्वान किया है.

नक्सगढ़ में उखड़ रहे नक्सलियों के पैर
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Published : Jun 2, 2019, 11:18 PM IST

जगदलपुर : बस्तर के शेर कहे जाने वाले सुरक्षा बल की ओर से लगाातार नक्सलियों का सफाया किया जा रहा है. उनके आतंक का मुहंतोड़ जवाब दे रहे हैं. उनके आतंक के किले को ध्वस्त कर रहे हैं इससे नक्सलगढ़ में नक्सलियों के पैर उखड़ रहे हैं. उनके साथी संगठन का साथ छोड़ मुख्यधारा में शामिल हो रहे हैं. छत्तीसगढ़ सरकार की पुनर्वास नीति नक्सलियों पर भारी पड़ रही है. उनकी कमर टूट रही है. इससे नक्सली हताश और निराश हैं. नक्सलवाद के अंत से बौखलाए नक्सलियों ने सरकार को चुनौती देने के लिए अब नया दांव खेला है.

नक्सलगढ़ में उखड़ रहे नक्सलियों के पैर

दरअसल, बस्तर में अपने संगठन को कमजोर पड़ते देख नक्सलियों ने एक नई चाल चली है. नक्सलियों ने पर्चे फेंककर सरकार की पुनर्वास नीति के तर्ज पर नक्सलियों की पुनर्वास नीति की शुरुआत करने की बात लिखी है.

पर्चे में लिखी ये बात
नक्सलियों के दक्षिण बस्तर डिविजनल कमेटी ने दंतेवाड़ा जिले के जगरगुंडा में नक्सली पर्चा फेंककर लगातार गांव खाली कर रहे ग्रामीणों को अपने गांव को छोड़कर न जाने और पुलिस मुखबिर न बनने का आह्वान किया है. नक्सलियों ने अपने पर्चे में लिखा है कि जो भी ग्रामीण पुलिस का साथ नहीं देंगे और नक्सलियों के संगठन से जुड़ेंगे उसे गांव में ही जमीन दी जाएगी ताकि वे खुद खेतीबाड़ी कर सके.

नक्सली और ग्रामीण लालच में नहीं आएंगे
इस मामले में डीआईजी नक्सल ऑपरेशन पीसुंदरराज का कहना है कि, 'सरेंडर नक्सली भी अब नक्सली संगठन की रणनीतियां और उनकी कार्यशैली से परेशान हो गए हैं, इसलिए नक्सलियों ने समाज की मुख्यधारा से जुड़कर जीवन जीना चाहते हैं, इसलिए उन्होंने सरेंडर किया है. इन्हें सरेंडर पालिसी से कई तरह के फायदे सरकार और पुलिस विभाग दे रहा हैं. ऐसे में सरेंडर नक्सली और ग्रामीण किसी भी तरह के लालच में नहीं आएंगे'. डीआईजी ने यह भी कहा कि, 'सरेंडर नक्सलियों की समझ में आ गया है की नक्सली आदिवासी विरोधी हैं'.

ग्रामीणों के मन को जीतने के लिए पुनर्वास का लालच
बता दें कि नक्सलियों ने पुलिस का मुखबिर बताते हुए कई ग्रामीणों की हत्या कर दी थी. वहीं उनके जमीन को भी हथिया लिया था. नक्सलियों के इस रुख से परेशान ग्रामीण गांव छोड़ने को मजबूर हैं. खुद के कमजोर होते देख नक्सलियों ने ग्रामीणों के मन को जीतने के लिए पुनर्वास का लालच दिया है, ताकि ग्रामीण नक्सलियों के संगठन में जुड़कर उनके लिए मुखबिरी कर उनकी मदद करें और अपनी हथियाई हुई जमीन वापस पाकर खेती-बाड़ी कर अपना जीवन यापन करे.

नक्सलियों की पुनर्वास नीति बनाम राज्य सरकार की पुनर्वास नीति में अब देखना ये होगा कि नक्सली अपने कदम पीछे लेते हैं या फिर राज्य सरकार को किसी नई योजना पर विचार करना पड़ेगा.

जगदलपुर : बस्तर के शेर कहे जाने वाले सुरक्षा बल की ओर से लगाातार नक्सलियों का सफाया किया जा रहा है. उनके आतंक का मुहंतोड़ जवाब दे रहे हैं. उनके आतंक के किले को ध्वस्त कर रहे हैं इससे नक्सलगढ़ में नक्सलियों के पैर उखड़ रहे हैं. उनके साथी संगठन का साथ छोड़ मुख्यधारा में शामिल हो रहे हैं. छत्तीसगढ़ सरकार की पुनर्वास नीति नक्सलियों पर भारी पड़ रही है. उनकी कमर टूट रही है. इससे नक्सली हताश और निराश हैं. नक्सलवाद के अंत से बौखलाए नक्सलियों ने सरकार को चुनौती देने के लिए अब नया दांव खेला है.

नक्सलगढ़ में उखड़ रहे नक्सलियों के पैर

दरअसल, बस्तर में अपने संगठन को कमजोर पड़ते देख नक्सलियों ने एक नई चाल चली है. नक्सलियों ने पर्चे फेंककर सरकार की पुनर्वास नीति के तर्ज पर नक्सलियों की पुनर्वास नीति की शुरुआत करने की बात लिखी है.

पर्चे में लिखी ये बात
नक्सलियों के दक्षिण बस्तर डिविजनल कमेटी ने दंतेवाड़ा जिले के जगरगुंडा में नक्सली पर्चा फेंककर लगातार गांव खाली कर रहे ग्रामीणों को अपने गांव को छोड़कर न जाने और पुलिस मुखबिर न बनने का आह्वान किया है. नक्सलियों ने अपने पर्चे में लिखा है कि जो भी ग्रामीण पुलिस का साथ नहीं देंगे और नक्सलियों के संगठन से जुड़ेंगे उसे गांव में ही जमीन दी जाएगी ताकि वे खुद खेतीबाड़ी कर सके.

नक्सली और ग्रामीण लालच में नहीं आएंगे
इस मामले में डीआईजी नक्सल ऑपरेशन पीसुंदरराज का कहना है कि, 'सरेंडर नक्सली भी अब नक्सली संगठन की रणनीतियां और उनकी कार्यशैली से परेशान हो गए हैं, इसलिए नक्सलियों ने समाज की मुख्यधारा से जुड़कर जीवन जीना चाहते हैं, इसलिए उन्होंने सरेंडर किया है. इन्हें सरेंडर पालिसी से कई तरह के फायदे सरकार और पुलिस विभाग दे रहा हैं. ऐसे में सरेंडर नक्सली और ग्रामीण किसी भी तरह के लालच में नहीं आएंगे'. डीआईजी ने यह भी कहा कि, 'सरेंडर नक्सलियों की समझ में आ गया है की नक्सली आदिवासी विरोधी हैं'.

ग्रामीणों के मन को जीतने के लिए पुनर्वास का लालच
बता दें कि नक्सलियों ने पुलिस का मुखबिर बताते हुए कई ग्रामीणों की हत्या कर दी थी. वहीं उनके जमीन को भी हथिया लिया था. नक्सलियों के इस रुख से परेशान ग्रामीण गांव छोड़ने को मजबूर हैं. खुद के कमजोर होते देख नक्सलियों ने ग्रामीणों के मन को जीतने के लिए पुनर्वास का लालच दिया है, ताकि ग्रामीण नक्सलियों के संगठन में जुड़कर उनके लिए मुखबिरी कर उनकी मदद करें और अपनी हथियाई हुई जमीन वापस पाकर खेती-बाड़ी कर अपना जीवन यापन करे.

नक्सलियों की पुनर्वास नीति बनाम राज्य सरकार की पुनर्वास नीति में अब देखना ये होगा कि नक्सली अपने कदम पीछे लेते हैं या फिर राज्य सरकार को किसी नई योजना पर विचार करना पड़ेगा.

Intro:जगदलपुर । बस्तर में अपने संगठन को कमजोर पड़ते देख नक्सलियों ने एक नया दांव खेला है। नक्सलियों ने अपने नई रणनीति के तहत सरकार की पुनर्वास नीति के तर्ज पर नक्सलियों की पुनर्वास नीति की शुरुआत करने की बात अपने पर्चे में लिखी है। दरसल नक्सलियों के दक्षिण बस्तर डिविजनल कमेटी ने दंतेवाड़ा जिले के जगरगुंडा में नक्सली पर्चा फेक कर लगातार गांव खाली कर रहे ग्रामीणों को अपने गांव को छोड़कर ना जाने पुलिस का मुखबिर ना बनने का आह्वान किया है । नक्सलियों ने अपने पर्चे में लिखा है कि जो भी ग्रामीण पुलिस का साथ नहीं देगा व नक्सलियों के संगठन से जुड़ेगा तो उसे गांव में जमीन दिया जाएगा। जिसमें ग्रामीण खुद की खेतीबाड़ी कर सकेगा। दरअसल नक्सलियों ने पुलिस का मुखबिर बताते हुए कई ग्रामीणों की हत्या कर दी और उनके जमीन भी हथिया लिए थे। नक्सलियों ने ऐसे ग्रामीणों के परिजनों को वहां खेती-बाड़ी करने से भी साफ इंकार कर दिया। लेकिन बस्तर में धीरे धीरे अपने कमजोर होते संगठन को देखते हुए एक बार फिर नक्सलियों ने ग्रामीणों का मन जीतने के लिए पुनर्वास का लालच दिया है। जिसके तहत ग्रामीण नक्सलियों के संगठन में जुड़कर उनके लिए मुखबीरी कर उनकी मदद करें और अपनी हथियाई हुई जमीन वापस पाकर खेती-बाड़ी कर अपना जीवन यापन करें।




Body:वो1- नक्सलियों ने ग्रामीणों से शहीद गुंडाधुर का हवाला देते हुए सरकार व पुलिस का साथ न देने और नक्सल संगठन मजबूत करने व नक्सलियों का साथ देने पर्चा जारी किया है। नक्सलियों ने इस पर्चे में लिखा है कि ग्रामीण पुलिस की मुखबिरी न करें न हीं सरकार का साथ दें और जो ग्रामीण पुलिस की नौकरी कर रहे हैं वे वापस अपने गांव आए ऐसे ग्रामीणों के लिए नक्सलियों ने सरकारी पुनर्वास नीति के तरह नक्सल पुनर्वास नीति बनाया है। और वापस गांव आने वाले ग्रामीणों को नक्सलीयो ने जमीन वापस देने का लालच दे रहे हैं। ये लालच का पर्चा नक्सली के जगरगुंडा एरिया कमेटी व दक्षिण बस्तर जोनल कमेटी ने जारी किया है। इसे नक्सलियों की बौखलाहट कहेंगे या नक्सलियों की कोई नई रणनीति की नस्ल या पुलिस विभाग की तरह पुनर्वास नीति बना रहे हैं और ग्रामीणों को जमीन का लालच देकर अपने और लाने का प्रयास कर रहे हैं या फिर ऐसे पर्चे से अपने आप को कमजोर होने का दिखावा कर कोई रणनीति की तैयारी कर रहे हैं।

वो2- दरअसल पिछले 5 सालों में बस्तर संभाग में लगभग 3 हजार से अधिक छोटे बड़े नक्सलियों ने सरेंडर किया है । जिसमें से लगभग 150 से 200 ऐसे नक्सली हैं जो नक्सल संगठन के काफी बड़े पदों में थे। जिनके सरेंडर से नक्सलियों को काफी नुकसान हुआ है । नक्सल भय से बस्तर के अंदरूनी इलाकों के लगभग आधे गांव खाली हो गए हैं। ऐसे गांव में ग्रामीणों के दोबारा आने से नक्सलियों को ग्रामीणों से पुलिस के मूवमेंट की सूचना मिल सके क्योंकि हाल ही में जिस तरह जितने भी पुलिस नक्सली मुठभेड़ हुए हैं उन मुठभेड़ में नक्सलियों को काफी नुकसान हुआ है और अब पुलिस के आने की सूचना नक्सलियों को समय पर नहीं मिल पा रही है जो पहले ग्रामीण देते थे। यही वजह है कि नक्सली अपने परिचय में ग्रामीणों को अपने संगठन में शामिल करने के लिए पुलिस विभाग की तर्ज पर पुनर्वास नीति बना रहे हैं।

पीटूसी---अशोक नायडू जगदलपुर



Conclusion:नक्सलियों की पुनर्वास नीति ।

नक्सली ग्रामीणों को जमीन का लालच दे रहे हैं।


नक्सलियों को सरकार के जैसे पुनर्वास नीति बनाने की जरूरत क्यों पड़ी

सरेंडर नक्सलियों से नक्सलियों की रणनीति का पूरा खुलासा हो रहा है । धीरे-धीरे ग्रामीण नक्सल संगठन से दूर हो रहे हैं। नक्सली भय से गांव खाली होते जा रहे हैं। जिससे नक्सलियों को मुखबिर की कमी हो गई है । और लगातार पुलिस नक्सलियों पर भारी पड़ रही है। इसके अलावा नक्सलियों की रणनीति का हिस्सा भी होता है खुद को कमजोर बताना फिर अचानक बड़ा हमला करना।
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