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बस्तर के विश्व प्रसिद्ध दशहरे के बाद दूसरा बड़ा पर्व माना जाता है गोंचा पर्व, तुपकी की सलामी है खास - what is tupki

ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा बड़े धूमधाम से निकाली जा रही है. बस्तर में दशहरे के बाद गोंचा पर्व दूसरा सबड़े बड़ा पर्व माना जाता है. क्या है कहानी और क्यों तुपकी की सलामी है खास पढ़िए. जानिए गोंचा पर्व की परंपराओं के बारे में.

important rituals and tupki in bastar goncha festivals
भगवान जगन्नाथ
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Published : Jul 12, 2021, 1:50 PM IST

Updated : Jul 12, 2021, 2:38 PM IST

जगदलपुर: बस्तर में भी गोंचा पर्व (Goncha festival) धूमधाम से मनाया जाता है. करीब 600 वर्षों से इस परंपरा को यहां के लोग बड़े उत्साह से निभा रहे हैं. तीन विशालकाय रथों पर सवार भगवान जगन्नाथ, माता सुभद्रा और बलभद्र की रथयात्रा (Lord Jagannath rathyatra) निकाली जाती है. भगवान जगन्नाथ को बस्तर की पांरपरिक तुपकी (tupki) से सलामी दी जाती है.

important rituals and tupki in bastar goncha festivals
भगवान की पूजा करते लोग

बस्तर में आरण्यक ब्राह्मण समाज द्वारा पिछले 600 वर्षों से गोंचा का पर्व मनाया जा रहा है. रियासत काल से चली आ रही यह परंपरा आज भी कायम है. बस्तर के विश्व प्रसिद्ध दशहरा के बाद गोंचा पर्व को दूसरा बड़ा पर्व माना जाता है. करीब 600 वर्ष पूर्व बस्तर के तत्कालीन महाराज पुरषोत्तम देव पदयात्रा कर पुरी कर गये थे. जिसके बाद पुरी के तत्तकालीन राजा गजपति द्वारा उन्हें रथपति की उपाधि दी गई थी. महाराज पुरूषोत्तम देव को उनकी भक्ति के फलस्वरूप देवी सुभद्रा का रथ दिया गया था. प्राचीन समय में बस्तर के महाराजा रथ यात्रा के दौरान इस रथ पर सवार होते थे. तब से ही बस्तर में यह पर्व पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता रहा है.

जगन्नाथ रथ यात्रा: राष्ट्रपति और मोदी ने दी बधाई, शाह ने की मंगला आरती

'तुपकी' की सलामी

खास अंदाज में मनाए जाने वाले गोंचा पर्व में रथयात्रा के साथ बांस से बनी तुपकी (बांस की बनी बंदूक) की आवाज रथ यात्रा के आनंद को दोगुना कर देती है. संभवत: पूरे भारत में तुपकी चालन की परंपरा यहां के अलावा और कहीं नहीं दिखती. भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बलभद्र के रथारूढ़ होने पर तुपकी (बांस से बनी बंदूक) से सलामी देने की परपरा बस्तर में है. रथ यात्रा के दौरान भगवान को जब रथ पर विराजित किया जाता है, उस वक्त परंपरा निभाते हुए उन्हें तुपकी से सलामी दी जाती है.

important-rituals-and-tupki-in-bastar-goncha-festivals
तुपकी

बस्तर में गोंचा महापर्व की तैयारियां शुरू, CM भूपेश बघेल को भी मिला आमंत्रण

बस्तर के ग्रामीण पोले बांस की नली से तुपकी तैयार करते हैं. जंगली मालकांगिनी के फल पेंग को बांस की नली में डाल कर फायर किया जाता है. जिससे गोलियों तरह आवाज निकलती है. लोगों का कहना है कि बस्तर में गोंचा पर्व के दौरान तुपकी का चलन वर्षों से चला आ रहा है. तुपकी शब्द मुलत: तुपक से बना है जो तोप का ही अपभ्रंश माना जाता है.

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तुपकी की बिक्री

कोरोना ने फीकी की रौनक

पिछले दो साल कोरोना महामारी की वजह से गोंचा पर्व में शामिल होने के लिए श्रद्धालु नहीं आ पा रहे हैं. लेकिन कोरोना की वजह से इस साल पर्व में रथ यात्रा की अनुमति तो जरूर मिली है लेकिन केवल एक ही रथ का संचालन होगा. वहीं 10 दिनों तक सभी रस्मों को पूरे विधि विधान के साथ निभाया जाएगा. जुलाई को नेत्रोत्सव की रस्म निभाने के बाद 10 दिनों तक लागातार ये पर्व मनाया जाएगा. भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा को आदिवासियों के बनाए नए रथ में बिठाकर भ्रमण कराया जाता है. परिक्रमा की रस्म के बाद शहर के सिरहासार भवन को भगवान जगन्नाथ के जनकपुरी बनाया जाता है. यहां 10 दिनों तक भगवान के दर्शन के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है. वहीं 56 भोग जैसी महत्वपूर्ण रस्म भी निभाई जाती है. गोंचा पर्व के दौरान पूरे बस्तर का माहौल 10 दिनों के लिए भक्तिमय हो जाता है.

वैसे तो ओडिशा के पुरी की रथ यात्रा विश्व प्रसिद्ध है लेकिन बस्तर में मनाया जाने वाला ये पर्व स्थानीय संस्कृति और परंपराओं के जुड़ाव से और खास हो जाता है.

जगदलपुर: बस्तर में भी गोंचा पर्व (Goncha festival) धूमधाम से मनाया जाता है. करीब 600 वर्षों से इस परंपरा को यहां के लोग बड़े उत्साह से निभा रहे हैं. तीन विशालकाय रथों पर सवार भगवान जगन्नाथ, माता सुभद्रा और बलभद्र की रथयात्रा (Lord Jagannath rathyatra) निकाली जाती है. भगवान जगन्नाथ को बस्तर की पांरपरिक तुपकी (tupki) से सलामी दी जाती है.

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भगवान की पूजा करते लोग

बस्तर में आरण्यक ब्राह्मण समाज द्वारा पिछले 600 वर्षों से गोंचा का पर्व मनाया जा रहा है. रियासत काल से चली आ रही यह परंपरा आज भी कायम है. बस्तर के विश्व प्रसिद्ध दशहरा के बाद गोंचा पर्व को दूसरा बड़ा पर्व माना जाता है. करीब 600 वर्ष पूर्व बस्तर के तत्कालीन महाराज पुरषोत्तम देव पदयात्रा कर पुरी कर गये थे. जिसके बाद पुरी के तत्तकालीन राजा गजपति द्वारा उन्हें रथपति की उपाधि दी गई थी. महाराज पुरूषोत्तम देव को उनकी भक्ति के फलस्वरूप देवी सुभद्रा का रथ दिया गया था. प्राचीन समय में बस्तर के महाराजा रथ यात्रा के दौरान इस रथ पर सवार होते थे. तब से ही बस्तर में यह पर्व पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता रहा है.

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'तुपकी' की सलामी

खास अंदाज में मनाए जाने वाले गोंचा पर्व में रथयात्रा के साथ बांस से बनी तुपकी (बांस की बनी बंदूक) की आवाज रथ यात्रा के आनंद को दोगुना कर देती है. संभवत: पूरे भारत में तुपकी चालन की परंपरा यहां के अलावा और कहीं नहीं दिखती. भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बलभद्र के रथारूढ़ होने पर तुपकी (बांस से बनी बंदूक) से सलामी देने की परपरा बस्तर में है. रथ यात्रा के दौरान भगवान को जब रथ पर विराजित किया जाता है, उस वक्त परंपरा निभाते हुए उन्हें तुपकी से सलामी दी जाती है.

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तुपकी

बस्तर में गोंचा महापर्व की तैयारियां शुरू, CM भूपेश बघेल को भी मिला आमंत्रण

बस्तर के ग्रामीण पोले बांस की नली से तुपकी तैयार करते हैं. जंगली मालकांगिनी के फल पेंग को बांस की नली में डाल कर फायर किया जाता है. जिससे गोलियों तरह आवाज निकलती है. लोगों का कहना है कि बस्तर में गोंचा पर्व के दौरान तुपकी का चलन वर्षों से चला आ रहा है. तुपकी शब्द मुलत: तुपक से बना है जो तोप का ही अपभ्रंश माना जाता है.

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तुपकी की बिक्री

कोरोना ने फीकी की रौनक

पिछले दो साल कोरोना महामारी की वजह से गोंचा पर्व में शामिल होने के लिए श्रद्धालु नहीं आ पा रहे हैं. लेकिन कोरोना की वजह से इस साल पर्व में रथ यात्रा की अनुमति तो जरूर मिली है लेकिन केवल एक ही रथ का संचालन होगा. वहीं 10 दिनों तक सभी रस्मों को पूरे विधि विधान के साथ निभाया जाएगा. जुलाई को नेत्रोत्सव की रस्म निभाने के बाद 10 दिनों तक लागातार ये पर्व मनाया जाएगा. भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा को आदिवासियों के बनाए नए रथ में बिठाकर भ्रमण कराया जाता है. परिक्रमा की रस्म के बाद शहर के सिरहासार भवन को भगवान जगन्नाथ के जनकपुरी बनाया जाता है. यहां 10 दिनों तक भगवान के दर्शन के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है. वहीं 56 भोग जैसी महत्वपूर्ण रस्म भी निभाई जाती है. गोंचा पर्व के दौरान पूरे बस्तर का माहौल 10 दिनों के लिए भक्तिमय हो जाता है.

वैसे तो ओडिशा के पुरी की रथ यात्रा विश्व प्रसिद्ध है लेकिन बस्तर में मनाया जाने वाला ये पर्व स्थानीय संस्कृति और परंपराओं के जुड़ाव से और खास हो जाता है.

Last Updated : Jul 12, 2021, 2:38 PM IST
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