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अंडा और जिंदा मोंगरी मछली की बलि देकर पूरी हुई बस्तर दशहरा की महत्वपूर्ण रस्म डेरी गढ़ई - Dehri Gadai

important ritual of Bastar Dussehra: छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक बस्तर दशहरा की रस्म हरियाली अमावस्या से शुरू हो जाती है. गुरुवार को डेरी गढ़ई की रस्म पूरी की गई. इस रस्म के जरिए मां दंतेश्वरी से रथ निर्माण के लिए मंजूरी ली गई. डेरी गढ़ई के बाद रथ के लिए जंगल से लकड़ियां लाने का काम शुरू हो जाएगा. Bastar Dussehra Dehri Gadai ceremony

Bastar Dussehra Dehri Gadai ceremony
बस्तर दशहरा की डेहरी गड़ाई रस्म
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Published : Sep 9, 2022, 2:32 PM IST

Updated : Sep 9, 2022, 4:34 PM IST

जगदलपुर: विश्व प्रसिध्द बस्तर दशहरा की दूसरी महत्वपूर्ण रस्म डेहरी गड़ाई रस्म गुरुवार को सिरासार भवन में पूरी की गई. करीब 600 सालों से चली आ रही इस परम्परानुसार बिरिंगपाल से लाई गई सरई पेड़ की टहनियों को एक विशेष स्थान पर स्थापित किया गया. विधि विधान पूर्वक पूजा अर्चना कर इस रस्म कि अदायगी के साथ ही रथ निर्माण के लिए माई दंतेश्वरी से आज्ञा ली गई. इस मौके पर जनप्रतिनिधियों सहित स्थानीय लोग भी बड़ी संख्या मे मौजूद रहे. इस रस्म के साथ ही विश्व प्रसिध्द दशहरा रथ के निर्माण की प्रक्रिया शुरू करने के लिए लकड़ियों का लाना शुरू हो जाता है. Bastar Dussehra Dehri Gadai ceremony

बस्तर दशहरा

बस्तर दशहरा की डेहरी गड़ाई रस्म: जगदलपुर के सिरासार भवन मे गुरुवार को दशहरा पर्व की दूसरी बड़ी रस्म डेरी गड़ाई की अदायगी कि गई. रियासत काल से चली आ रही इस रस्म में परम्परानुसार डेरी गड़ाई के लिए बिरिंगपाल गांव से सरई पेड़ की टहनियां लाई जाती हैं. इन टहनियों को पूजा कर पवित्र करने के पश्चात लकड़ियों को गाड़ने के लिए बनाये गए गड्ढों में अंडा जिंदा मछलियां डाली जाती हैं. जिसके बाद टहनियों को गा़ड़ कर इस रस्म को पूरा किया जाता है. दंतेश्वरी से विश्व प्रस्सिद्ध दशहरा रथ के निर्माण प्रक्रिया को शुरू करने के लिए मां की इजाजत ली जाती है. मान्यताओ के अनुसार इस रस्म के बाद से ही बस्तर दशहरे के लिए रथ निर्माण का काम शुरू किया जाता है. करीब 600 साल पुरानी इस परंपरा का निर्वाह आज भी पूरे विधि विधान के साथ किया जा रहा है.

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मां दंतेश्वरी से दशहरा के लिए मांगी अनुमति: डेरी गड़ाई कि इस रस्म कि अदायगी के बाद परम्परानुसार माचकोट जंगलों से लाई गई लकड़ियों से रथ निर्माण का कार्य शुरू होगा. दंतेश्वरी मंदिर के मुख्य पुजारी के अनुसार दशहरा पर्व 75 दिनों तक चलने वाला एक मात्र पर्व है और इसकी सभी रस्मे महत्वपूर्ण हैं. और अब डेरी गड़ाई के बाद काछनगादी की रस्म निभाई जाएगी जिसमे मिरगान जाति की नाबालिग बच्ची पर काछन देवी सवार होती हैं. बस्तर के राजा देवी से दशहरा पर्व मनाने की अनुमति लेते हैं जिससे बस्तर का यह पर्व निर्बाध्य रूप से मनाया जा सके.

बस्तर के माटी पुजारी राजपरिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव का कहना है "करीब 600 सालों से चली आ रही इस परंपरा को आज भी उसी प्रकार से निर्वहन किया जा रहा है. दशहरा पर्व के महत्वपूर्ण सदस्यों मांझी, चालकी, मेम्बर, मेंबरीन, जिया परिवार से सदस्यों और पुजारियों ने मिलकर राजपरिवार के निर्देश पर डेरी गढ़ई के रस्म की अदायगी की गई. बस्तरवासियों से अपील है कि सब मिलकर इसे अच्छे से मनाये ताकि यह पर्व देश दुनिया तक पहुंच सकें. "

जगदलपुर: विश्व प्रसिध्द बस्तर दशहरा की दूसरी महत्वपूर्ण रस्म डेहरी गड़ाई रस्म गुरुवार को सिरासार भवन में पूरी की गई. करीब 600 सालों से चली आ रही इस परम्परानुसार बिरिंगपाल से लाई गई सरई पेड़ की टहनियों को एक विशेष स्थान पर स्थापित किया गया. विधि विधान पूर्वक पूजा अर्चना कर इस रस्म कि अदायगी के साथ ही रथ निर्माण के लिए माई दंतेश्वरी से आज्ञा ली गई. इस मौके पर जनप्रतिनिधियों सहित स्थानीय लोग भी बड़ी संख्या मे मौजूद रहे. इस रस्म के साथ ही विश्व प्रसिध्द दशहरा रथ के निर्माण की प्रक्रिया शुरू करने के लिए लकड़ियों का लाना शुरू हो जाता है. Bastar Dussehra Dehri Gadai ceremony

बस्तर दशहरा

बस्तर दशहरा की डेहरी गड़ाई रस्म: जगदलपुर के सिरासार भवन मे गुरुवार को दशहरा पर्व की दूसरी बड़ी रस्म डेरी गड़ाई की अदायगी कि गई. रियासत काल से चली आ रही इस रस्म में परम्परानुसार डेरी गड़ाई के लिए बिरिंगपाल गांव से सरई पेड़ की टहनियां लाई जाती हैं. इन टहनियों को पूजा कर पवित्र करने के पश्चात लकड़ियों को गाड़ने के लिए बनाये गए गड्ढों में अंडा जिंदा मछलियां डाली जाती हैं. जिसके बाद टहनियों को गा़ड़ कर इस रस्म को पूरा किया जाता है. दंतेश्वरी से विश्व प्रस्सिद्ध दशहरा रथ के निर्माण प्रक्रिया को शुरू करने के लिए मां की इजाजत ली जाती है. मान्यताओ के अनुसार इस रस्म के बाद से ही बस्तर दशहरे के लिए रथ निर्माण का काम शुरू किया जाता है. करीब 600 साल पुरानी इस परंपरा का निर्वाह आज भी पूरे विधि विधान के साथ किया जा रहा है.

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मां दंतेश्वरी से दशहरा के लिए मांगी अनुमति: डेरी गड़ाई कि इस रस्म कि अदायगी के बाद परम्परानुसार माचकोट जंगलों से लाई गई लकड़ियों से रथ निर्माण का कार्य शुरू होगा. दंतेश्वरी मंदिर के मुख्य पुजारी के अनुसार दशहरा पर्व 75 दिनों तक चलने वाला एक मात्र पर्व है और इसकी सभी रस्मे महत्वपूर्ण हैं. और अब डेरी गड़ाई के बाद काछनगादी की रस्म निभाई जाएगी जिसमे मिरगान जाति की नाबालिग बच्ची पर काछन देवी सवार होती हैं. बस्तर के राजा देवी से दशहरा पर्व मनाने की अनुमति लेते हैं जिससे बस्तर का यह पर्व निर्बाध्य रूप से मनाया जा सके.

बस्तर के माटी पुजारी राजपरिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव का कहना है "करीब 600 सालों से चली आ रही इस परंपरा को आज भी उसी प्रकार से निर्वहन किया जा रहा है. दशहरा पर्व के महत्वपूर्ण सदस्यों मांझी, चालकी, मेम्बर, मेंबरीन, जिया परिवार से सदस्यों और पुजारियों ने मिलकर राजपरिवार के निर्देश पर डेरी गढ़ई के रस्म की अदायगी की गई. बस्तरवासियों से अपील है कि सब मिलकर इसे अच्छे से मनाये ताकि यह पर्व देश दुनिया तक पहुंच सकें. "

Last Updated : Sep 9, 2022, 4:34 PM IST
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