दंतेवाड़ा: इस बार जिले में फागुन मड़ई की धूम देखने को मिली है. प्रतिदिन पूरे विधि विधान से मां दंतेश्वरी की पूजा- अर्चना की जाती है. पिछली बार की तुलना में इस बार लोगों की भीड़ भी अधिक है. दंतेवाड़ा ऐतिहासिक फागुन मड़ई में बस्तर की संस्कृति परंपरा के साथ 11 दिनों तक मनाईं जाती है. फागुन मंडई के लिए मां दंतेश्वरी टेंपल कमेटी 800 से ज्यादा क्षेत्रीय देवी-देवताओं को निमंत्रण देती है. जिसके बाद फागुन मडई के शुरु होते ही सभी देवी देवता दंतेश्वरी मंदिर पहुंचते हैं. विश्व प्रसिद्ध फागुन मड़ई के आठवें दिन पालकी विशेष मानी जाती है. इस दिन बस्तर के महाराजा कमल चंद भंजदेव जगदलपुर से दंतेवाड़ा पहुंचते हैं.वर्षों से चली आ रही परंपरा के अनुसार महाराजा कमल चंद भंजदेव (Maharaja Kamal Chand Bhanjdev) के मां दंतेश्वरी देवी के प्रथम पुजारी है. इसलिए फागुन मडई में पहली पूजा विधि विधान से गर्भ गृह में बस्तर महाराजा कमल चंद भंजदेव करते हैं. जिसके बाद दूरदराज से आए क्षेत्रीय देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना की जाती है. दोपहर के बाद मां दंतेश्वरी की डोली के साथ दूरदराज से आए 800 से ज्यादा देवी देवता ढोल नगाड़े मांजर की थाप बस्तरिया नृत्य के साथ मां दंतेश्वरी की डोली का अभिवादन करते हुए डोली के आगे आगे चलते हैं.
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दंतेवाड़ा में फागुन मड़ई महोत्सव
फागुन मड़ई के आठवें दिन मां दंतेश्वरी अपने गर्भ गृह (Eighth mother Danteshwari her womb home) से स्वयं बाहर निकलती है. माता दंतेश्वरी दंतेवाड़ा नगर का पूरा भ्रमण करती है. डोली के साथ पीछे-पीछे बस्तर महाराजा कमल चंद भंजदेव (Maharaja Kamal Chand Bhanjdev) और मंदिर के पुजारी को पालकी में बैठाकर डोली के पीछे-पीछे भ्रमण कराया जाता है. यह परंपरा वर्षो से चली आ रही है. मां दंतेश्वरी की पालकी को श्रद्धालुओं के लिए जगह-जगह रोका जाता है. जहां श्रद्धालु अपनी इच्छा अनुसार मां दंतेश्वरी से मनोकामना मांगते हैं. पूरे नगर भ्रमण के बाद मां दंतेश्वरी की डोली को मंदिर लाया जाता है.इस परंपरा के दूसरे दिन होलिका दहन किया जाता है