जगदलपुरः बस्तर दशहरे की सबसे अद्भूत रस्म निशा जात्रा को कल रात 2 बजे पूर्ण विधि-विधान के साथ पूर्ण किया गया. इस रस्म को काले जादू का रस्म भी कहा जाता है. प्राचीन काल में इस रस्म को राजा महाराजा बुरी प्रेत-आत्माओं से अपने राज्य की रक्षा के लिए निभाते थे. जिसमे हजारों बकरों, भैंसों यहां तक कि नर बलि भी दी जाती थी. लेकिन अब केवल 11 बकरों कि बलि देकर इस रस्म कि अदायगी रात 2 बजे शहर के गुडी मंदिर (Gudi Temple) में पूर्ण की जाती है.
इस रस्म कि शुरूआत 1301 ईसवीं में की गई थी. इस तांत्रिक रस्म को राजा महाराजा बुरी प्रेत-आत्माओं (evil spirits) से राज्य की रक्षा (defense of the state) के लिए अदा करते थे. इस रस्म में बलि चढ़ा कर देवी को प्रसन्न किया जाता है. जिससे की देवी राज्य की रक्षा बुरी प्रेत-आत्माओं से करे. निशा जात्रा (Nisha Jatra) का यह रस्म बस्तर के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है. बस्तर के राजकुमार कमलचंद भंजदेव का कहना है कि समय के साथ इस रस्म में बदलाव आया है.
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शांति और सुरक्षा के लिए मनाया जाता है रस्म
पहले इस रस्म में कई हजार भैंसों की बलि के साथ-साथ नर बलि भी दी जाती थी. इस रस्म को बुरी आत्माओं से राज्य की रक्षा के लिए अदा किया जाता था. अब इस रस्म को राज्य में शान्ति बनाए रखने के लिए (to keep the peace) निभाया जाता है. इस अनोखी रस्म को देखने देश-विदेश से भारी संख्या में पर्यटक आते है. समय के साथ आज भारत के अधिकतर इलाकों की परम्पराए आधुनिकी करण (modernization) की बलि चढ़ गए हैं लेकिन बस्तर दशहरे का यह परंपरा यूं ही अनवरत चली आ रही है.