जगदलपुर : बस्तर जिले में सबसे ज्यादा प्रतिष्ठित मिशनरी के स्कूल संचालित हैं. जहां सैकड़ों की संख्या में छात्र-छात्राएं अध्ययनरत हैं. लेकिन इन्हीं स्कूलों में आरटीई एक्ट लागू नहीं होता. राज्य सरकार ने अल्पसंख्यक स्कूलों को आरटीई के दायरे से बाहर रखा (No RTE admission in Christian missionary schools in Bastar) है. ऐसे में इन स्कूलों ने अपना पंजीयन अल्पसंख्यक दर्जे में करवाकर आरटीई की छूट से खुद को बाहर रखा है. लेकिन पूरे बस्तर जिले में सबसे ज्यादा छात्रों की संख्या भी इन्ही स्कूलों में है. बस्तर में संचालित मिशनरी स्कूलों का उद्देश्य सस्ती और अच्छी एजुकेशन देना होता था. अब उन स्कूलों में सबसे ज्यादा व्यवसायिकता है, यही नहीं स्कूल प्रबंधन ने मुनाफे को ध्यान में रखते हुए अपना पंजीयन बदलकर भी खुद को आरटीई के दायरे से बाहर कर (Big game in the name of minority schools in Bastar) लिया.
कहां का है मामला : दरअसल साल 2019 में सरकार बदलने के तुरंत बाद इन मिशनरी स्कूलों ने अल्पसंख्यक दर्जे के तहत अपना पंजीयन करवाया और बाद में विभाग के सामने प्रस्ताव रखा कि आरटीई के तहत अल्पसंख्यक दर्जे पर पंजीकृत स्कूल गरीब बच्चों को भर्ती करने के लिए बाध्य नहीं (jagdalpur School Laparwahi ) है. इसीलिए आरटीई नियम के अनुसार जो 25% बच्चे आर्थिक रूप से कमजोर आय वर्ग के स्कूल में दाखिल करना अनिवार्य था, उस दायरे से ये स्कूल बाहर हो गए. साल 2019 से पहले जिन छात्रों को आरटीई के तहत इन स्कूलों में दाखिल करवाया गया था. वह अभी निरंतर पढ़ाई कर रहे हैं. लेकिन 2019 के बाद से इन मिशनरी स्कूलों में दाखिला लेने का गरीब बच्चों का सपना अधूरा रह गया है.
गरीबों को नुकसान, फायदे में स्कूल : दरअसल जिले भर में करीब 18 स्कूल मिशनरियों (Christian missionary schools in Bastar) के अंतर्गत संचालित हैं. इन स्कूलों में दाखिला लेना हर परिवार का सपना होता है. लेकिन फीस ज्यादा होने की वजह से अक्सर गरीब तबके के लोग इन स्कूलों में दाखिला नहीं ले पाते. वर्तमान में औसत प्राथमिक स्तर पर सालाना शुल्क ₹7740, माध्यमिक स्तर पर ₹12000, जबकि हाईस्कूल स्तर पर ₹16000 के करीब बैठता है. आरटीई एक्ट के तहत एंट्री क्लास यानी पहली या एलकेजी में प्रवेश के लिए 25% सीट आरक्षित होती हैं. लेकिन सरकार की तरफ से मिली छूट के बाद अब इन स्कूलों को ऐसे बच्चों को एडमिशन देने की बाध्यता नहीं है. मिशनरी स्कूलों को छूट मिलने की वजह से जिले में कमजोर तबके के बच्चों की 400 सीटें खत्म हुई है और औसत स्कूल को ₹80लाख का फायदा हुआ है.