दुर्ग : छत्तीसगढ़ के भिलाई एक काला दिन भी दर्ज है. जिसने पूरे छत्तीसगढ़ समेत देश को झकझोर कर रख दिया(Black day in the history of Bhilai) था. ये वक्त था साल 1992 का.जब उस समय दुर्ग और भिलाई एक साथ संयुक्त था. छत्तीसगढ़ अविभाजित मध्यप्रदेश का हिस्सा हुआ करता था. उस दौरान मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार थी और तत्कालीन मुख्यमंत्री सुंदर लाल पटवा थे. दुर्ग के तत्कालीन SP सुरेंद्र सिंह और कलेक्टर प्रह्लाद सिंह तोमर हुआ करते थे. प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि उस दिन 16 लोगों की मौत हुई थी. यह मौत कोई नॉर्मल नहीं बल्कि गोलियों से हुई थी. उस गोलियों की गूंज आज भी लोगों के दिलों और जहन में बैठी हुई है. आज भी उस गोली कांड के बारे में बताते हुए उनकी रूह कांप जाती है.
भिलाई प्लेटफॉर्म पर मजदूरों पर बरसाई गई थी गोलियां : काले दिन यानी 1 जुलाई को आज भी भिलाई के लोग कभी भूल नहीं पाते. इस दिन हजारों की तादाद में मजदूर भिलाई पावर हाउस के रेलवे स्टेशन के प्लेट फार्म नंबर एक पर बैठ गए थे. लंबे समय से मांगें पूरी नहीं होने से मजदूर आक्रोशित थे. मजदूरों को नियंत्रित कर पाना मुश्किल हो गया (Chhattisgarh Mukti Morcha will celebrate Black Day on July 1) था. आंदोलन में शामिल और छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के उपाध्यक्ष एजी कुरैशी ने ETV भारत को बताया कि ''उस दिन मजदूर सुबह 9 बजे अपनी मांगों को लेकर रेलवे ट्रैक पर बैठ गए थे. दोपहर के 3 बजे तक प्रशासन और मजदूर नेताओं के बीच लगातार बैठकें हुईं. बावजूद कोई निष्कर्ष नहीं निकला. उसके बाद तत्कालीन सरकार और कलेक्टर के आदेश के बाद पुलिस ने मजदूरों पर लाठीचार्ज कर दिया. आंसू गैस के गोले छोड़े गए. इससे भी जब बात नहीं बनी तो तत्कालीन कलेक्टर ने भूखे प्यासे निहत्थे मजदूरों पर गोलियां चलाने के आदेश दे दिए. फिर पुलिस ने अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दी. अचानक अंधाधुंध गोलियां चलने से अफरा-तफरी का माहौल हो गया था. मौके पर ही 16 मजदूर मारे गए और सैकड़ों लोग घायल हो गए थे.''
पावर हाउस से लेकर सुपेला तक अंधाधुंध चली गोलियां : मजदूरों इस प्रदर्शन में हजारों की संख्या में मजदूर थे. जिसमें भिलाई, रायपुर और टेडेसरा समेत विभिन्न इलाकों के मजदूर इस प्रदर्शन में शामिल हुए थे. कुरैशी बताते हैं कि ''पुलिस ने पावर हाउस से लेकर सुपेला और खुर्सीपार से लेकर पावर हाउस तक मजदूरों पर अंधाधुंध गोलियां बरसाई थी. इस खूनी खेल में सैकड़ों लोग अपंग हो गए थे. पूरी तरह से डर और खौफ का माहौल बना दिया गया था. जिसकी वजह से बहुत से घायल मजदूर अस्पताल में इलाज कराने भी नहीं पहुंचे. प्रशासन की खौफ की वजह से घायल मजदूरों ने अपने स्तर पर ही इलाज कराया था. उन्होंने दावा किया है कि इस गोलीकांड में बहुत से लोग मारे गए थे. जिनकी लाशों को प्रशासन ने BSP के अंदर खाक कर दिया था.''
रेलवे ट्रैक में जमा हुई थी भीड़ : वरिष्ठ पत्रकार शिवनाथ शुक्ला बताते हैं कि '' छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के नेतृत्व में मजदूरों ने एक बड़ा आंदोलन किया (Movement led by Chhattisgarh Mukti Morcha) था. इसके नेतृत्व कर्ता जनक लाल ठाकुर, भीमराव बागड़े और सुकलाल साहू थे. प्रदर्शनकारी श्रमिक नेता शंकर गुहा नियोगी की हत्या के आरोपियों को सजा दिलाने और मजदूरों की लंबित मांगों को लेकर रेलवे ट्रैक पर हजारों की तादाद में बैठ गए थे. सुबह 9 बजे श्रमिकों ने सारनाथ एक्सप्रेस को रोक दिया था. बड़ी तादाद में श्रमिकों के रेलवे ट्रैक पर बैठने की खबर फैलते ही शहर में सनसनी फैल गई. उसके बाद अधिकारी और नेताओं के बीच बातचीत हुई. फिर भी कोई हल नहीं निकला. शाम होते ही पुलिस पर अचानक पथराव शुरू हो गया. कुछ लोग पेट्रोल पंप को आग लगाने की भी कोशिश कर रहे थे. नियंत्रण कर पाना मुश्किल था.''
लोग शासन-प्रशासन से थे नाराज : आंदोलन के ठीक पहले निगम ने GE रोड के कई अतिक्रमण को हटाए गए (Public was angry over removal of encroachment in Bhilai) थे. इससे भी लोग शासन प्रशासन से नाराज थे. जिसकी वजह से लोगों का भी सपोर्ट श्रमिकों को मिलने लगा था. प्रदर्शन के दौरान अलग अलग क्षेत्रों से पुलिस पर पथराव किये गए. जिसके बाद पुलिस को फायरिंग करनी पड़ी. इस दौरान नेवई थाने में पदस्थ सब इस्पेक्टर टीके सिंह शहीद हो गए थे. पथराव के दौरान वे दीवार फांदकर भागने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन वह नहीं निकल पाए और उन पर लोगों ने पथराव की बौछार कर दी. पुलिस चारों तरफ से घिर गई थी. क्योंकि सेक्टर 1 से भी पथराव शुरू हो गया था. उस समय पुलिस फायरिंग ही अंतिम चारा था. यदि पुलिस फायरिंग नहीं होती तो स्थिति बहुत ही विकट होती. इस दौरान सारनाथ एक्सप्रेस की पूरी बोगियां खाली हो चुकी थी. खाली खड़ी रेल गाड़ी और पुलिस के तमाम जवान ही नजर आ रहे थे.
क्या हुआ था उस दिन : वरिष्ठ पत्रकार शिवनाथ शुक्ला ने बताया कि उस दिन वरिष्ठ पत्रकार बाबूलाल शर्मा, सत्यप्रकाश, पुखराज जैन, अब्दुल मजीद समेत अनेक पत्रकार पूरे दिन भूखे प्यासे डटे रहे. फायरिंग से पहले तत्कालीन पुलिस अधीक्षक सुरेंद्र सिंह और सिटी मजिस्ट्रेट नासिर अहमद ने पत्रकारों से चर्चा की थी. उन्होंने कहा था कि अब यह अंतिम स्थिति है. आप सभी रेलवे फुटपाथ के ऊपर चढ़ जाएं, ताकि पत्रकारों को पत्थर न लगे. इसके साथ ही हमारी सुरक्षा के लिए कुछ पुलिस जवानों को भी तैनात कर दिया था. फायरिंग जैसे ही बंद हुई. उसके बाद पुलिस अधीक्षक ने पत्रकारों को रेलवे ट्रैक पर जाने दिया. उस दौरान थोड़ा अंधेरा हो गया था. टॉर्च के माध्यम से हम प्रशासन के साथ ट्रैक पर पहुंचे और तस्वीरें ली थी.
गोलीकांड के बाद दो दिन तक रहा कर्फ्यू : भिलाई में 1 जुलाई 1992 को हुए इस गोलीकांड के बाद दो दिन तक कर्फ्यू लगा रहा. अरविंद सिंह कहते हैं कि ''कर्फ्यू लगने की वजह से सड़कें पूरी तरह से वीरान हो गई थी. चौक चौराहों पर भारी पुलिस बल तैनात कर दिए गए थे, ताकि किसी तरह की कोई अप्रिय घटना न हो. इस दौरान पत्रकारों के लिए पास जारी किया गया था. उस समय रायपुर, राजनांदगांव, कवर्धा समेत दुर्ग की पुलिस बल ने मोर्चा संभाला था. इस गोलीकांड के कुछ समय बाद घायल दो श्रमिकों की मौत हो गई. इस तरह कुल 18 श्रमिक और एक पुलिस अफसर शहीद हो गया था.''