धमतरी : छत्तीसगढ़ में सबसे ज्यादा धान की पैदावार होती है. किसान मेहनत करके जमीन की कोख से फसल पैदा करते हैं. लेकिन फसल पैदा करने के लिए सिर्फ जमीन की ही जरुरत नहीं होती. फसल को बोने से लेकर उसे काटने तक कई तरह के जतन किए जाते हैं. लेकिन किसी भी फसल को पैदा होने के लिए जो चीज सबसे ज्यादा जरुरी होती है वो है पानी . जिन किसानों के खेत नदी के किनारे हैं या जिनके पास पानी देने के लिए बोर है. वो तो आसानी से अपनी पैदावार कर लेते हैं. लेकिन उन किसानों का क्या जिनके गांव या खेत से पानी का स्त्रोत काफी दूर है.ऐसे किसानों तक पानी पहुंचाने के लिए सरकार ने नहरों का इंतजाम किया. ताकि फसलों को जरुरत का पानी मिल सके. लेकिन छत्तीसगढ़ में कुछ किसान इतने खुशनसीब नहीं हैं. क्योंकि इनके खेतों के पास से नहर तो गुजरी लेकिन उसमे सिंचाई लायक पानी मयस्सर नहीं हो सका. (Water not available for irrigation in Dhamtari )
5 से 10 फीसदी ही पहुंच पाता है पानी
बात यदि धमतरी जिले की हो तो साल 1975 में रविशंकर सागर बहुउद्देेशीय योजना (Ravi Shankar Sagar Multipurpose Scheme) के तहत गंगरेल बांध (Gangrel Dam) बनाया गया था.जिसका पहला मकसद भिलाई इस्पात संयंत्र तक पानी पहुंचाना था. लेकिन वक्त के साथ-साथ गंगरेल का पानी खेतिहर किसानों के खेतों तक भी पहुंचा.किसानों तक पानी पहुंचाने के लिए मुख्य नहर से छोटे नहरों का निर्माण किया गया. सरकार ने करोड़ों रुपए नहर निर्माण में पानी की ही तरह बहाए. मेंटनेंस के नाम पर आज भी नहरों पर लाखों रुपए खर्च (Lakhs of rupees spent on canals) हो रहे हैं. बावजूद इसके इन नहरों में पानी नहीं आ रहा. इन नहरों की मेंटनेंस नहीं होने से उसमे जंगल झाड़ी उग आए हैं. कई नहर मलबों से पट चुकी हैं. कुछ के पाट टूट चुके हैं और पानी टूटे हुए जगह से निकलकर बेवजह फैल रहा है. (Bad condition of canals in Dhamtari )
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सिंचाई विभाग कर रहा रहा है अनदेखी
इस बारे में किसानों ने कई बार सिंचाई विभाग को चेताया है लेकिन उन्होंने जैसे एक कान से सुनने और दूसरे से निकाल देने की कसम खा रही है. कई गांवों में बनाई गई नहर काम लायक भी नहीं रह गए. लेकिन किसानों की सुनने वाला कोई नहीं. बारिश में जैसे तैसे किसान पानी का इंतजाम तो कर लेते हैं. लेकिन आग उगलती गर्मी के मौसम का क्या. यदि वक्त रहते किसानों की समस्या का समाधान नहीं किया गया तो आने वाले दिनों में नहरे सिर्फ कागजों में रह जाएंगी. वहीं किसान गर्मियों के मौसम में फसल पैदा करने की सोच भी छोड़ देगा. जिससे प्रदेश की अर्थव्यवस्था पर भी बड़ा असर पड़ेगा. अब जरूरी है कि सरकार और सरकारी तंत्र इस मूलभूत संसाधन को चुस्त-दुरुस्त करें. जिससे कि हरित क्रांति का सपना जमीन पर दिखाई दे.