ETV Bharat / city

करोड़ों खर्च करने के बाद भी अचानकमार से टाइगर हैं दूर जानिए क्यों ? - Displacement problem of villages from Achanakmar Tiger Reserve

अचानकमार टाइगर रिजर्व (Achanakmar Tiger Reserve Bilaspur) में करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी आज तक यहां बाघों का बसेरा नहीं बन पाया है. इस रिजर्व में वो सुविधाएं नहीं है जो किसी बाघ को चाहिए.

Tiger is away from Achanakmar even after spending crores
करोड़ों खर्च करने के बाद भी अचानकमार से टाइगर हैं दूर
author img

By

Published : Jun 25, 2022, 5:24 PM IST

बिलासपुर : अचानकमार टाइगर रिजर्व में हर साल करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी टाइगर को यहां रोक पाने में वन विभाग फेल हो रहा है. 6 साल के रिकॉर्ड में 6 टाइगर और इस साल 22 मई तक मात्र 6 टाइगर ही एटीआर में दिखे (no shelter of tigers in Achanakmar Tiger Reserve) हैं. जिसमे से 4 टाइगर का रहवास एटीआर है. बाकी के दो टाइगर विचरण करते आए थे. ट्रैप कैमरे में लिए गए फोटो और वीडियो ने साबित कर दिया कि टाइगर के लिए व्यवस्था बनाने वन विभाग पूरी तरह से फेल साबित हो रहा है. करोड़ों रूपए टाइगर रिजर्व के नाम से केंद्र और राज्य सरकार यहां खर्च करती है, लेकिन सब व्यर्थ साबित हो रहा है.

करोड़ों खर्च करने के बाद भी अचानकमार से टाइगर हैं दूर जानिए क्यों
कहां पर है अचानकमार टाइगर रिजर्व : बिलासपुर मुंगेली और पेंड्रा जिला के बीच में अचानकमार टाइगर रिजर्व बसा (Tigers in Achanakmar Tiger Reserve) है. यह टाइगर रिजर्व 6 साल में मात्र 4 टाइगर का ही रहवास बन सका है. 6 साल में दो टाइगर यहां विचरण करते कान्हा नेशनल पार्क और बांधवगढ़ नेशनल पार्क से पहुंचे थे. एटीआर में समतल जमीन नहीं होने की वजह से टाइगर के लिए भोजन की व्यवस्था नहीं हो पाती, जिसका कारण है कि टाइगर यहां अपना रहवास नहीं बनाते है. करोड़ों रुपए एटीआर के लिए खर्च किया जाता है, बावजूद इसके 6 साल में केवल 6 बाघ ही यहां देखे गए. उनमें से भी दो विचरण करते पहुंचे थे. क्यों नहीं रहते एटीआर में बाघ :
राज्य बनने के बाद से एटीआर में मौजूद गांव के विस्थापन की प्रक्रिया शुरू की गई थी, लेकिन मात्र 3 गांव को ही अब तक स्थापित किया जा सका है. जबकि 19 गांव के लिए वन विभाग ने विस्थापन की प्रक्रिया तो शुरू कर दी है. लेकिन विस्थापित नहीं करा पाया है. ऐसे में करोड़ों रुपए हर साल एटीआर के नाम से खर्च किए जा रहे हैं. जो यूं ही बर्बाद हो रहे हैं. एटीआर में करोड़ों रुपए खर्च तो किया जा रहा है लेकिन जिस उद्देश्य से टाइगर रिजर्व बनाया गया है उसका लाभ नही मिल रहा है. क्या है विस्थापन की प्रक्रिया : टाइगर रिजर्व में बसे गांव को विस्थापित करने के लिए केंद्र सरकार के कड़े नियम हैं. गांव में बसे परिवारों को ऐसी जगह में विस्थापित करना है जहां आसपास उन्हें रोजगार मिल सके, इसके अलावा विस्थापित परिवारों के लिए मकान बनाकर देना है. जहां पानी से लेकर अन्य व्यवस्थाएं भी होनी चाहिए. विस्थापित परिवारों में जितने भी व्यस्क हैं. उन्हें दस-दस लाख रुपए मुआवजा दिया जाना होता है. यानी यदि किसी परिवार में 5 वयस्क है तो एक ही परिवार वालों को 50 लाख रुपए देने होंगे. यही कारण है कि विस्थापन में सरकार की भारी भरकम राशि खर्च होगी.जिसकी वजह से राज्य सरकार भी एटीआर में बसे 19 गांव को विस्थापित करने में अपनी रूचि नहीं ले रहा (Displacement problem of villages from Achanakmar Tiger Reserve) है.अधिकारियों ने बताई वजह : अधिकारियों की मानें तो टाइगर के यहां नहीं रुकने का मुख्य कारण भोजन की व्यवस्था नहीं होना हैं. अचानकमार टाइगर रिजर्व के असिस्टेंट डायरेक्टर, बफर जोन ने इसके पीछे का कारण बताया कि '' एटीआर में समतल जमीन टाइगर के शिकार के लिए बहुत कम हैं. टाइगर का शिकार समतल जमीन में घास के मैदान बनते है और वो घास खाने आते है. जिसका शिकार टाइगर करते हैं. एटीआर में ज्यादातर समतल जमीन में गांव बसे हैं. यही कारण है कि बाघ का शिकार वाले जानवरों को यहां घास नहीं मिल (No hunting for tigers in Achanakmar Tiger Reserve) पाता.ऐसे में हर साल केंद्र और राज्य सरकार के करोड़ों रुपए वन विभाग बर्बाद कर रहा है. जबकि टाइगर रिजर्व में मानव बस्ती होना ही नहीं चाहिए. लेकिन वन विभाग एटीआर को मानव विहीन कर ही नहीं पा रहा है.''

ये भी पढ़ें- एटीआर में मादा बाघ की मौत



2016 से 22 मई 22 तक कितने टाइगर की ट्रैप कैमरे में आई तस्वीर : टाइगर और अन्य जानवरों की संख्या जानने और शिकारियों की चहल कदमी की. तस्वीर कैद करने के लिए एटीआर में ट्रैक कैमरे लगाए गए हैं. इससे जानवरों की गिनती के साथ ही उनकी पहचान की जाती है. इसमें शिकारियों के जंगल में प्रवेश करने के दौरान उनकी तस्वीर आ जाती है, जिससे जंगल की सुरक्षा की जाती है. एटीआर कैमरे में साल दर साल दिखे टाइगर की तस्वीर ली गई थी. जिसमें 2016 से अब तक कितने टाइगर देखें उसकी जानकारी भी दी गई है.

2016 5 टाइगर

2017 4 टाइगर

2018 6 टाइगर

2019 डाटा उपलब्ध नही

2020 4 टाइगर

2021 6 टाइगर

2022 5 टाइगर 22मई तक

6 साल के रिकॉर्ड के मुताबिक अधिकतम 6 टाइगर ही ट्रैप कैमरे में कैद हुए हैं.

बिलासपुर : अचानकमार टाइगर रिजर्व में हर साल करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी टाइगर को यहां रोक पाने में वन विभाग फेल हो रहा है. 6 साल के रिकॉर्ड में 6 टाइगर और इस साल 22 मई तक मात्र 6 टाइगर ही एटीआर में दिखे (no shelter of tigers in Achanakmar Tiger Reserve) हैं. जिसमे से 4 टाइगर का रहवास एटीआर है. बाकी के दो टाइगर विचरण करते आए थे. ट्रैप कैमरे में लिए गए फोटो और वीडियो ने साबित कर दिया कि टाइगर के लिए व्यवस्था बनाने वन विभाग पूरी तरह से फेल साबित हो रहा है. करोड़ों रूपए टाइगर रिजर्व के नाम से केंद्र और राज्य सरकार यहां खर्च करती है, लेकिन सब व्यर्थ साबित हो रहा है.

करोड़ों खर्च करने के बाद भी अचानकमार से टाइगर हैं दूर जानिए क्यों
कहां पर है अचानकमार टाइगर रिजर्व : बिलासपुर मुंगेली और पेंड्रा जिला के बीच में अचानकमार टाइगर रिजर्व बसा (Tigers in Achanakmar Tiger Reserve) है. यह टाइगर रिजर्व 6 साल में मात्र 4 टाइगर का ही रहवास बन सका है. 6 साल में दो टाइगर यहां विचरण करते कान्हा नेशनल पार्क और बांधवगढ़ नेशनल पार्क से पहुंचे थे. एटीआर में समतल जमीन नहीं होने की वजह से टाइगर के लिए भोजन की व्यवस्था नहीं हो पाती, जिसका कारण है कि टाइगर यहां अपना रहवास नहीं बनाते है. करोड़ों रुपए एटीआर के लिए खर्च किया जाता है, बावजूद इसके 6 साल में केवल 6 बाघ ही यहां देखे गए. उनमें से भी दो विचरण करते पहुंचे थे. क्यों नहीं रहते एटीआर में बाघ : राज्य बनने के बाद से एटीआर में मौजूद गांव के विस्थापन की प्रक्रिया शुरू की गई थी, लेकिन मात्र 3 गांव को ही अब तक स्थापित किया जा सका है. जबकि 19 गांव के लिए वन विभाग ने विस्थापन की प्रक्रिया तो शुरू कर दी है. लेकिन विस्थापित नहीं करा पाया है. ऐसे में करोड़ों रुपए हर साल एटीआर के नाम से खर्च किए जा रहे हैं. जो यूं ही बर्बाद हो रहे हैं. एटीआर में करोड़ों रुपए खर्च तो किया जा रहा है लेकिन जिस उद्देश्य से टाइगर रिजर्व बनाया गया है उसका लाभ नही मिल रहा है. क्या है विस्थापन की प्रक्रिया : टाइगर रिजर्व में बसे गांव को विस्थापित करने के लिए केंद्र सरकार के कड़े नियम हैं. गांव में बसे परिवारों को ऐसी जगह में विस्थापित करना है जहां आसपास उन्हें रोजगार मिल सके, इसके अलावा विस्थापित परिवारों के लिए मकान बनाकर देना है. जहां पानी से लेकर अन्य व्यवस्थाएं भी होनी चाहिए. विस्थापित परिवारों में जितने भी व्यस्क हैं. उन्हें दस-दस लाख रुपए मुआवजा दिया जाना होता है. यानी यदि किसी परिवार में 5 वयस्क है तो एक ही परिवार वालों को 50 लाख रुपए देने होंगे. यही कारण है कि विस्थापन में सरकार की भारी भरकम राशि खर्च होगी.जिसकी वजह से राज्य सरकार भी एटीआर में बसे 19 गांव को विस्थापित करने में अपनी रूचि नहीं ले रहा (Displacement problem of villages from Achanakmar Tiger Reserve) है.अधिकारियों ने बताई वजह : अधिकारियों की मानें तो टाइगर के यहां नहीं रुकने का मुख्य कारण भोजन की व्यवस्था नहीं होना हैं. अचानकमार टाइगर रिजर्व के असिस्टेंट डायरेक्टर, बफर जोन ने इसके पीछे का कारण बताया कि '' एटीआर में समतल जमीन टाइगर के शिकार के लिए बहुत कम हैं. टाइगर का शिकार समतल जमीन में घास के मैदान बनते है और वो घास खाने आते है. जिसका शिकार टाइगर करते हैं. एटीआर में ज्यादातर समतल जमीन में गांव बसे हैं. यही कारण है कि बाघ का शिकार वाले जानवरों को यहां घास नहीं मिल (No hunting for tigers in Achanakmar Tiger Reserve) पाता.ऐसे में हर साल केंद्र और राज्य सरकार के करोड़ों रुपए वन विभाग बर्बाद कर रहा है. जबकि टाइगर रिजर्व में मानव बस्ती होना ही नहीं चाहिए. लेकिन वन विभाग एटीआर को मानव विहीन कर ही नहीं पा रहा है.''

ये भी पढ़ें- एटीआर में मादा बाघ की मौत



2016 से 22 मई 22 तक कितने टाइगर की ट्रैप कैमरे में आई तस्वीर : टाइगर और अन्य जानवरों की संख्या जानने और शिकारियों की चहल कदमी की. तस्वीर कैद करने के लिए एटीआर में ट्रैक कैमरे लगाए गए हैं. इससे जानवरों की गिनती के साथ ही उनकी पहचान की जाती है. इसमें शिकारियों के जंगल में प्रवेश करने के दौरान उनकी तस्वीर आ जाती है, जिससे जंगल की सुरक्षा की जाती है. एटीआर कैमरे में साल दर साल दिखे टाइगर की तस्वीर ली गई थी. जिसमें 2016 से अब तक कितने टाइगर देखें उसकी जानकारी भी दी गई है.

2016 5 टाइगर

2017 4 टाइगर

2018 6 टाइगर

2019 डाटा उपलब्ध नही

2020 4 टाइगर

2021 6 टाइगर

2022 5 टाइगर 22मई तक

6 साल के रिकॉर्ड के मुताबिक अधिकतम 6 टाइगर ही ट्रैप कैमरे में कैद हुए हैं.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.