कवर्धा :दुनिया कितने भी आधुनिक क्यों ना हो जाए. लेकिन कवर्धा अपनी पुरानी परंपरा के नाम से आज भी जाना जाता है. यही बरसों पुरानी परंपरा आज भी जारी है. ये परंपरा दशहरा से जुड़ी हुई है.जिसे लोग कवर्धा का शाही दशहरा के नाम से जानते हैं.
कब से मनाया जा रहा दशहरा : कवर्धा का शाही दशहरा 1751 से राज परिवार के राजगद्दी के साथ प्रारंभ हुई थी. जो कि महाराज महाबली के 12 वीं पीढ़ी राजा योगेश्वर राज सिंह निभा रहे हैं. इस शाही दशहरे को देखने दूर दराज से हजारों की संख्या मे ग्रामीण कवर्धा आते हैं. इस दौरान सुबह से मोतीमहल का पट आम लोगों के लिए खोल दिया जाता (King Yogeshwar Raj will ride on chariot ) है. लोग राजमहल में घूमते हैं .इसके बाद राजा और रानी के दर्शन कर उपहार देते हैं. दशहरे के दिन राजा और राजकुमार के अपने पूर्वजों के अस्त्र-शस्त्र की भी विशेष पूजा करते हैं.
राजा करते हैं नगर भ्रमण : शाम 5 बजे मोतीमहल से राजा योगेश्वर राज सिंह और उनके पुत्र युवराज मैक्लेश्वर सिंह शाही रथ में अपने दरबारियों और राज पुरोहित के साथ बाजा-गाजा, बैगा नृत्य छत्तीसगढ़ी नृत्य ,आतिशबाजी करते लोगों जूलुस में शामिल होंगे. इसके बाद नगर के सरदार पटेल मैदान पहुंचेंगे. जहां राम लक्ष्मण के रुप मे नन्हें बच्चों के द्वारा 35 फिट ऊंचे बने रावण का दहन करेंगे.इसके बाद शोभायात्रा नगर भ्रमण करने और मंदिर दर्शन करने सवारी निकलेगी.
चौक-चौराहों पर होता है स्वागत : इस दौरान नगर के चौक चौराहे पर राजा और युवराज का स्वागत अभिनंदन किया जाएगा. शोभायात्रा सरदार पटेल मैदान से आम्बेडकर चौक, सिग्नल चौक, गुरुगोविंद सिंह चौक,आजाद चौक,ऋषभदेव चौक, शीतला मंदिर पहुंचेगी. जहां राजा मंदिर में देवी की पूजा अर्चना कर मंदिर के जोत जवारा के साथ शोभायात्रा नगर भ्रमण करते हुए भोजली तालाब पहुंचेगी. जहां जवारा विसर्जन कर जूलुस समाप्त किया जाएगा.वहीं रात्रि 9 बजे राज महल में राज दरबार लगेगा. जहां राजा रानी आमजन से भेट मुलाकात करेंगे.Kawardha Shahi Dussehra 2022