बिलासपुर : छत्तीसगढ़ में तेन्दुओं के साथ हो रहे अत्याचार को रोकने को लेकर दायर जनहित याचिका में बुधवार को बिलासपुर हाईकोर्ट में (Bilaspur highcourt news) सुनवाई हुई. चीफ जस्टिस और जस्टिस आरसीएस सामंत की बेंच ने शासन को नोटिस जारी करते हुए 4 सप्ताह में जवाब तलब किया है. याचिकाकर्ता नितिन सिंघवी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कोर्ट को बताया कि वन विभाग के अधिकारी ही मानव और तेंदुआ के बीच संघर्ष बढ़ा रहे हैं.
बिना जानकारी के काम कर रहा विभाग : याचिका में ये कहा गया है कि एक तेंदुए को पकड़कर दूसरे जगह छोड़ दिया जाता है. जिससे अनजान जगह में खाने की तलाश करता है. आखिरकार अवसाद और भूख के कारण पालतू जानवर और कभी-कभी इंसानों पर भी हमला कर देता (Conflict between leopard and human in Bilaspur) है. इसी क्रम में वो अपने मूल स्थान में भी लौट आता है. जैसे मुंबई के संजय गांधी नेशनल पार्क से डेढ़ सौ किलोमीटर दूर जुन्नारदेव में चिप लगाकर छोड़ा गया तेंदुआ वापस संजय गांधी नेशनल पार्क पहुंच गया था.
सरकार का है प्रावधान: भारत सरकार की गाइडलाइन के मुताबिक तेंदुए को 10 किलोमीटर के दायरे में ही छोड़ना चाहिए. इससे पहले उसके गले में रेडियो कॉलर लगाकर मॉनिटिरिंग करनी चाहिए.लेकिन छत्तीसगढ़ में बिना रेडियो कॉलर लगाए.तेंदुए को उसके घर से कई किलोमीटर दूर छोड़ दिया जाता है. जिससे कारण वो घर वापसी के वक्त इंसानी बसाहट में अव्यवस्था पैदा करता है.
बिना आदेश के तेंदुआ पकड़ते हैं DFO : तेंदुआ वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम की अनुसूची 1 के तहत संरक्षित वन्यजीव है. बिना मुख्य वन्यजीव संरक्षक अर्थात प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) के आदेश के इसे पकड़ना अपराध की श्रेणी में आता है. जिसके तहत 3 से 7 साल की सजा का प्रावधान है. कानूनी जानकारी होने के बावजूद वनमंडल अधिकारी मुख्य वन्यजीव संरक्षक की बिना अनुमति के पिंजरा लगाते हैं और तेंदुए को पकड़कर मनमाने स्थान पर छोड़ रहे हैं.
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मुख्य वन्यजीव संरक्षक पर जिम्मेदारी : याचिका में ये कहा गया है कि यदि वनमंडल अधिकारी तेंदुए को पकड़ने के लिए मुख्य वन्यजीव अधिकारी से अनुमति नहीं लेते तो फिर जंगल में वापस छोड़ने की अनुमति कैसे मांगते हैं. किसी भी तेंदुए के पकड़े जाने के 15 दिन बाद तक छोड़ने की अनुमति जारी होती है. तेन्दुओं को कानून के विरुद्ध वनमंडल अधिकारी के पकड़ने को लेकर मुख्य वन्यजीव संरक्षक किसी भी तरह की कोई कार्रवाई नहीं करते.