बिलासपुर: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण मामले में आदेश दिया है. कोर्ट ने कहा "विशेष विवाह अधिनियम 1954 की धारा 13 के तहत पत्नी के पुनर्विवाह के साक्ष्य उपलब्ध हैं तो दाम्पत्य अधिकारों के पुनर्स्थापन के लिए याचिका स्वीकार करने का कोई औचित्य नहीं है." जस्टिस गौतम भादुड़ी व जस्टिस दीपक कुमार तिवारी की डिवीजन बेंच ने फैमिली कोर्ट के पत्नी के पक्ष में दिए आदेश को निरस्त कर पति की अपील स्वीकार कर ली है. (Hearing in Chhattisgarh High Court on petition for restoration of conjugal rights)
ये है मामला: राजिम के सूरसाबांधा ग्राम निवासी किशोर कुमार की शादी दुर्ग जिले के जुनवानी निवासी माया देवी से 2001 में हुई थी. विवाह के कुछ समय बाद पत्नी कॉलेज की परीक्षा देने मायके चली गई. शादी के कुछ माह बाद ही किशोर को एक अनाम पत्र मिला. जिसमें उसकी पत्नी के पहले से विवाहित होने की जानकारी थी. पहले उसने इस पर विश्वास नहीं किया और पत्नी को घर ले आया. इसी तरह का पत्र पत्नी के माता पिता को भी भेजा गया. इसके बाद पत्र आने का सिलसिला लगातार जारी रहा. इसके बाद किशोर कुमार ने मामले में पतासाजी की तो पत्नी के पहले से शादीशुदा की बात सही पाकर उसे मायके छोड़ आया.
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के आदेश पर नाबालिग रेप पीड़िता का कराया गया गर्भपात
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट का आदेश निरस्त किया: पति के वापस लेकर नहीं जाने पर पत्नी माया देवी ने फैमिली कोर्ट में विवाह के सम्बन्धों की पुनर्स्थापना का वाद लगाया. उसने आरोपों को गलत बताते हुए पति के साथ रहने की बात कही. फैमिली कोर्ट ने पत्नी की याचिका स्वीकार कर उसके पक्ष में आदेश जारी कर दिया. पति ने इसके खिलाफ हाईकोर्ट में अपील पेश की. पति ने अपनी अपील के साथ साक्ष्य प्रस्तुत किए. साक्ष्य से पता चला कि माया ने मुस्लिम बनकर जुबैर से निकाह किया है. इस आधार पर फैमिली कोर्ट का आदेश निरस्त करने की मांग पति ने की. हाईकोर्ट ने उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर अपील स्वीकार कर ली और पत्नी के वाद के साथ फैमिली कोर्ट का आदेश भी निरस्त कर दिया.