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छोटी सी उम्र में उठा पिता का साया, मुश्किलें पार कर उर्वशी ने मुकाम पाया

अंबिकापुर में एक बेटी ने मुश्किलों को पार करके मुकाम हासिल किया है. छोटी सी उम्र में पिता का साया सिर से उठ गया. कई चुनौतियां आईं. लेकिन इस बेटी ने हिम्मत ना (Challenge in front of Urvashi of Ambikapur) हारी.

Urvashi of Ambikapur will play for Railways
मुश्किलें पार कर उवर्शी ने पाया मुकाम
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Published : Jun 7, 2022, 12:36 PM IST

Updated : Jun 7, 2022, 2:29 PM IST

सरगुजा : मेहनत और लगन अगर सच्ची है तो फिर कुछ भी नामुमकिन नहीं होता. यूं ही लोग एवरेस्ट फतेह नहीं करते. उनमें जज्बा बेमिसाल होता है. फिर काम चाहे जो भी हो. अगर ईमानदारी से मेहनत की जाए तो हर मंजिल आपके कदमों में होगी. कुछ ऐसा ही किया है सरगुजा की बेटी उर्वशी ने. उर्वशी ने बास्केटबॉल खेल में अपने प्रदर्शन के दम पर रेलवे की टीम में जगह बनाई (Ambikapur basketball player Urvashi) है. अब रेलवे ने ऊर्वशी को नौकरी दी है. वो (SECR) बिलासपुर रेलवे की ओर से बास्केटबॉल खेलेंगी.

अंबिकापुर की उर्वशी ने परिवार का नाम किया रोशन
पेंशन से चलता था घर :
11 वर्ष की छोटी सी उम्र में बीमारी की वजह से पिता की मौत हो गई. परिवार की आर्थिक स्थिति सामान्य थी. पिता घर में अकेले कमाऊ सदस्य थे. ऐसे में पिता की बीमारी का खर्च और अचानक मौत ने इस परिवार को तोड़ दिया. मां अकेले बची. मां पर अपने बच्चों के पालन पोषण की जिम्मेदारी थी. पिता की मौत के बाद मां को मिलने वाली 3 हजार रुपए महीने की पेंशन से ही पूरे परिवार की गाड़ी चल रही (Challenge in front of Urvashi of Ambikapur) थी.

मुश्किलों से भर गया था जीवन : उर्वशी ने 10 वर्ष की उम्र में 2013 में ही बास्केटबॉल खेलना शुरू किया था. 2014 में पिता का निधन हो गया. परिवार की आर्थिक और मानसिक स्थिति दोनों ठीक नहीं थी. लिहाजा 2014 में उर्वशी ने बास्केटबॉल खेलना छोड़ दिया. पिता की मौत के कारण उर्वशी भी सदमे में थी. उसे भी कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ये क्या हो गया? अब क्या होगा?

टूटा हौंसला,लेकिन जुटाई हिम्मत : उवर्शी को परिवार ने सपोर्ट किया. कोच ने उर्वशी को समझाया. उर्वशी ने दोबारा बास्केटबॉल की प्रैक्टिस शुरू की. फिर उर्वशी ने एक के बाद नेशनल गेम में रिकॉर्ड कायम किए. 3 गोल्ड के साथ ब्रॉन्ज भी पाया. कई अन्य प्रतिस्पर्धा में भी उर्वशी ने उत्कृष्ट प्रदर्शन किया. जिसकी बदौलत आज वो रेलवे की नौकरी पाकर SECR (South East Central Railway ) की ओर से (Urvashi of Ambikapur will play for Railways) खेलेंगी.

उवर्शी की उपलब्धि : अम्बिकापुर के नमनाकला में रहने वाली उर्वशी बघेल ने 2015 से लगातार सफलता हासिल की है. सबसे पहले वर्ष 2015 में सब जूनियर नेशनल अंडर 14 में पॉन्डिचेरी में गोल्ड, 2016 में सब जूनियर अंडर 14 में हैदराबाद में गोल्ड, 2017 में यूथ नेशनल अंडर 17 में कप्तान चुनी गईं और हैदराबाद में चौथा स्थान प्राप्त किया. 2018 में SGFI नेशनल अंडर 17 में दिल्ली में खेली. 2019 में खेलो इंडिया के स्कूल गेम्स में अंडर 17 पुणे में खेली. 2019 में ही यूथ नेशनल अंडर 17 कोयंबटूर में खेली. 2019 में ही टीम इंडिया कैम्प बैंगलोर में अंडर 17 में कप्तान चुना गया. 2021 में 3×3 बास्केटबॉल रायपुर में सिल्वर पाया. 2022 में जूनियर नेशनल अंडर 18 में कप्तान चुनी गई और इंदौर में ब्रॉन्ज मेडल प्राप्त किया.

ये भी पढ़ें- सरगुजा के खिलाड़ियों ने इंटर यूनिवर्सिटी मिनी गोल्फ में जीते कांस्य और रजत पदक



इनडोर स्टेडियम से मिलेगी मदद : बास्केटबॉल कोच राजेश प्रताप सिंह कहते हैं कि "सरगुजा में खेल प्रतिभा की कमी नही है, लगातार यहां से खिलाड़ी तैयार किये गये हैं, जिन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया है, बास्केटबॉल इनडोर का खेल है, हम लोग आउटडोर ग्राउंड में प्रैक्टिस करते हैं, जिस कारण यहां के बच्चों को बाहर के ग्राउंड में बहोत दिक्कत होती है, लेकिन अब इनडोर स्टेडियम बन रहा है, अब यहां के खिलाड़ी और भी बेहतर प्रदर्शन करेंगे, इनडोर स्टेडियम में बास्केटबॉल के लिए रबर और लकड़ी के फर्श की जरूरत होगी जिसके बाद यहां की प्रतिभा का प्रदर्शन बाहर जाकर और बेहतर होगा"

सरगुजा : मेहनत और लगन अगर सच्ची है तो फिर कुछ भी नामुमकिन नहीं होता. यूं ही लोग एवरेस्ट फतेह नहीं करते. उनमें जज्बा बेमिसाल होता है. फिर काम चाहे जो भी हो. अगर ईमानदारी से मेहनत की जाए तो हर मंजिल आपके कदमों में होगी. कुछ ऐसा ही किया है सरगुजा की बेटी उर्वशी ने. उर्वशी ने बास्केटबॉल खेल में अपने प्रदर्शन के दम पर रेलवे की टीम में जगह बनाई (Ambikapur basketball player Urvashi) है. अब रेलवे ने ऊर्वशी को नौकरी दी है. वो (SECR) बिलासपुर रेलवे की ओर से बास्केटबॉल खेलेंगी.

अंबिकापुर की उर्वशी ने परिवार का नाम किया रोशन
पेंशन से चलता था घर : 11 वर्ष की छोटी सी उम्र में बीमारी की वजह से पिता की मौत हो गई. परिवार की आर्थिक स्थिति सामान्य थी. पिता घर में अकेले कमाऊ सदस्य थे. ऐसे में पिता की बीमारी का खर्च और अचानक मौत ने इस परिवार को तोड़ दिया. मां अकेले बची. मां पर अपने बच्चों के पालन पोषण की जिम्मेदारी थी. पिता की मौत के बाद मां को मिलने वाली 3 हजार रुपए महीने की पेंशन से ही पूरे परिवार की गाड़ी चल रही (Challenge in front of Urvashi of Ambikapur) थी.

मुश्किलों से भर गया था जीवन : उर्वशी ने 10 वर्ष की उम्र में 2013 में ही बास्केटबॉल खेलना शुरू किया था. 2014 में पिता का निधन हो गया. परिवार की आर्थिक और मानसिक स्थिति दोनों ठीक नहीं थी. लिहाजा 2014 में उर्वशी ने बास्केटबॉल खेलना छोड़ दिया. पिता की मौत के कारण उर्वशी भी सदमे में थी. उसे भी कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ये क्या हो गया? अब क्या होगा?

टूटा हौंसला,लेकिन जुटाई हिम्मत : उवर्शी को परिवार ने सपोर्ट किया. कोच ने उर्वशी को समझाया. उर्वशी ने दोबारा बास्केटबॉल की प्रैक्टिस शुरू की. फिर उर्वशी ने एक के बाद नेशनल गेम में रिकॉर्ड कायम किए. 3 गोल्ड के साथ ब्रॉन्ज भी पाया. कई अन्य प्रतिस्पर्धा में भी उर्वशी ने उत्कृष्ट प्रदर्शन किया. जिसकी बदौलत आज वो रेलवे की नौकरी पाकर SECR (South East Central Railway ) की ओर से (Urvashi of Ambikapur will play for Railways) खेलेंगी.

उवर्शी की उपलब्धि : अम्बिकापुर के नमनाकला में रहने वाली उर्वशी बघेल ने 2015 से लगातार सफलता हासिल की है. सबसे पहले वर्ष 2015 में सब जूनियर नेशनल अंडर 14 में पॉन्डिचेरी में गोल्ड, 2016 में सब जूनियर अंडर 14 में हैदराबाद में गोल्ड, 2017 में यूथ नेशनल अंडर 17 में कप्तान चुनी गईं और हैदराबाद में चौथा स्थान प्राप्त किया. 2018 में SGFI नेशनल अंडर 17 में दिल्ली में खेली. 2019 में खेलो इंडिया के स्कूल गेम्स में अंडर 17 पुणे में खेली. 2019 में ही यूथ नेशनल अंडर 17 कोयंबटूर में खेली. 2019 में ही टीम इंडिया कैम्प बैंगलोर में अंडर 17 में कप्तान चुना गया. 2021 में 3×3 बास्केटबॉल रायपुर में सिल्वर पाया. 2022 में जूनियर नेशनल अंडर 18 में कप्तान चुनी गई और इंदौर में ब्रॉन्ज मेडल प्राप्त किया.

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इनडोर स्टेडियम से मिलेगी मदद : बास्केटबॉल कोच राजेश प्रताप सिंह कहते हैं कि "सरगुजा में खेल प्रतिभा की कमी नही है, लगातार यहां से खिलाड़ी तैयार किये गये हैं, जिन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया है, बास्केटबॉल इनडोर का खेल है, हम लोग आउटडोर ग्राउंड में प्रैक्टिस करते हैं, जिस कारण यहां के बच्चों को बाहर के ग्राउंड में बहोत दिक्कत होती है, लेकिन अब इनडोर स्टेडियम बन रहा है, अब यहां के खिलाड़ी और भी बेहतर प्रदर्शन करेंगे, इनडोर स्टेडियम में बास्केटबॉल के लिए रबर और लकड़ी के फर्श की जरूरत होगी जिसके बाद यहां की प्रतिभा का प्रदर्शन बाहर जाकर और बेहतर होगा"

Last Updated : Jun 7, 2022, 2:29 PM IST

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