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डिलिस्टिंग के मसले पर आदिवासी समाज में क्यों है रार ? - Politics over delisting in Surguja

सरगुजा में डिलिस्टिंग को लेकर आदिवासी समाज दो भागों में बंटा हुआ दिख रहा (Tribal society divided over delisting in Surguja) है. एक वर्ग इसके पक्ष में है तो दूसरा इसे संविधान का हक बता रहा है.

डिलिस्टिंग के मसले पर आदिवासी समाज में क्यों है रार
डिलिस्टिंग के मसले पर आदिवासी समाज में क्यों है रार
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Published : Jun 21, 2022, 6:06 PM IST

Updated : Jun 22, 2022, 1:08 AM IST

सरगुजा : इन दिनों जनजातीय बाहुल्य इलाकों से डिलिस्टिंग की मांग तेज हो रही है.जनजातीय समाज के लोग ही डिलिस्टिंग कानून बनाने पर जोर दे रहे हैं. वहीं दूसरी ओर इसी समाज का दूसरा धड़ा डिलिस्टिंग के विरोध में खड़ा हो गया है. एक धड़ा डिलिस्टिंग को जनजातीय लोगों के हित में बता रहा है तो वहीं दूसरा धड़ा इसे आपसी फूट डालने की राजनीति बता रहा (Tribal society divided over delisting in Surguja) है.

डिलिस्टिंग के मसले पर आदिवासी समाज में क्यों है रार

क्या है डिलिस्टिंग :असल में ऐसे लोग जो जनजातीय समाज के हैं लेकिन वो मुस्लिम या ईसाई धर्म में आस्था रखते (issue of delisting heated up in Surguja) हैं. ऐसे लोगों को चिन्हित कर आरक्षण की श्रेणी से बाहर करना ही डिलिस्टिंग का मुख्य उद्देश्य है. डिलिस्टिंग का हिंदी अनुवाद है असूचीबद्ध. जो लोग सूची बद्ध हैं उन्हें असूची बद्ध किया जाना. डिलिस्टिंग की मांग कर रहा जनजातीय गौरव मंच मुख्य रूप से ऐसे आदिवासियों को डिलिस्ट किये जाने की मांग कर रहा है जिन्होंने अपना धर्म छोड़कर अन्य धर्मों में आस्था रखी है. या धर्मांतरण किया है.


दो धड़े में बंटे लोग : वहीं दूसरी ओर इसी समाज के एक धड़ा इसे राजनीतिक साजिश बता रहा है. डिलिस्टिंग की मांग से आदिवासी समाज में बिखराव की बात हो रही है. क्योंकि संविधान में भारत के हर नागरिक को किसी भी धर्म में आस्था रखने की आजादी (Politics over delisting in Surguja) है. ऐसे में सरगुजा में आदिवासी समाज में रार साफ देखी जा रही है. आदिवासी समाज इस मसले पर दो धड़े में बंट गया है. एक डिलिस्टिंग की मांग कर रहा है तो दूसरा समाज इसके खिलाफ खड़ा है.


कब से उठ रही डिलिस्टिंग की मांग : जनजातीय सुरक्षा मंच केंद्र प्रान्त जशपुर के सह संयोजक इंदर भगत कहते हैं की " डिलिस्टिंग आदिवासी समाज के हक और अधिकार का विषय है. यह विषय अभी से नही बल्कि 1967 से लोहरदगा बिहार के सांसद कार्तिक उरांव ने उठाया था. उन्होंने ने ही इस पर काफी काम किया. जेपीसी का गठन हुआ. हालांकि उस समय सरकार की मंशा डिलिस्टिंग के कानून को पास करने की नही थी. हम लोग 2006 में जनजातीय सुरक्षा मंच का गठन (Tribal Security Forum formed in Surguja) कर तब से इस विषय पर काम कर रहे हैं. डीलिस्टिंग से जनजातीय समाज को फायदा होगा क्योंकि समाज के ऐसे लोग जो अपनी जाति के अपने माता पिता के रीति रिवाजों को छोड़ दिया है और दूसरा धर्म अपना लिया है. इनकी संख्या 18% है."

ये भी पढ़ें- डिलिस्टिंग के विरोध में एकजुट हुआ ईसाई आदिवासी समाज

राजनीतिक स्वार्थ में वैमनस्यता फैला रहे : वहीं सर्व आदिवासी समाज के संभागीय अध्यक्ष अनूप टोप्पो डिलिस्टिंग का विरोध करते हैं अनूप कहते हैं कि " हम लोगों ने विरोध में जो रैली निकाली इसके पीछे मंशा ये है कि कुछ लोग राजनीतिक स्वार्थ के लिये आदिवासी समाज के आपसी भाई चारे में वैमनस्यता फैलाने की कोशिश कर रहे हैं. हम इसका विरोध करते हैं. 1950 से ही सभी को हम आदिवासियों को भी जीवन जीने का अधिकार प्राप्त है.आदिवासी धर्म पूर्वी है. लेकिन संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत हमें सभी धर्मो का आदर करना या सभी धर्मों में आस्था रखने की आजादी देता है.''

सरगुजा : इन दिनों जनजातीय बाहुल्य इलाकों से डिलिस्टिंग की मांग तेज हो रही है.जनजातीय समाज के लोग ही डिलिस्टिंग कानून बनाने पर जोर दे रहे हैं. वहीं दूसरी ओर इसी समाज का दूसरा धड़ा डिलिस्टिंग के विरोध में खड़ा हो गया है. एक धड़ा डिलिस्टिंग को जनजातीय लोगों के हित में बता रहा है तो वहीं दूसरा धड़ा इसे आपसी फूट डालने की राजनीति बता रहा (Tribal society divided over delisting in Surguja) है.

डिलिस्टिंग के मसले पर आदिवासी समाज में क्यों है रार

क्या है डिलिस्टिंग :असल में ऐसे लोग जो जनजातीय समाज के हैं लेकिन वो मुस्लिम या ईसाई धर्म में आस्था रखते (issue of delisting heated up in Surguja) हैं. ऐसे लोगों को चिन्हित कर आरक्षण की श्रेणी से बाहर करना ही डिलिस्टिंग का मुख्य उद्देश्य है. डिलिस्टिंग का हिंदी अनुवाद है असूचीबद्ध. जो लोग सूची बद्ध हैं उन्हें असूची बद्ध किया जाना. डिलिस्टिंग की मांग कर रहा जनजातीय गौरव मंच मुख्य रूप से ऐसे आदिवासियों को डिलिस्ट किये जाने की मांग कर रहा है जिन्होंने अपना धर्म छोड़कर अन्य धर्मों में आस्था रखी है. या धर्मांतरण किया है.


दो धड़े में बंटे लोग : वहीं दूसरी ओर इसी समाज के एक धड़ा इसे राजनीतिक साजिश बता रहा है. डिलिस्टिंग की मांग से आदिवासी समाज में बिखराव की बात हो रही है. क्योंकि संविधान में भारत के हर नागरिक को किसी भी धर्म में आस्था रखने की आजादी (Politics over delisting in Surguja) है. ऐसे में सरगुजा में आदिवासी समाज में रार साफ देखी जा रही है. आदिवासी समाज इस मसले पर दो धड़े में बंट गया है. एक डिलिस्टिंग की मांग कर रहा है तो दूसरा समाज इसके खिलाफ खड़ा है.


कब से उठ रही डिलिस्टिंग की मांग : जनजातीय सुरक्षा मंच केंद्र प्रान्त जशपुर के सह संयोजक इंदर भगत कहते हैं की " डिलिस्टिंग आदिवासी समाज के हक और अधिकार का विषय है. यह विषय अभी से नही बल्कि 1967 से लोहरदगा बिहार के सांसद कार्तिक उरांव ने उठाया था. उन्होंने ने ही इस पर काफी काम किया. जेपीसी का गठन हुआ. हालांकि उस समय सरकार की मंशा डिलिस्टिंग के कानून को पास करने की नही थी. हम लोग 2006 में जनजातीय सुरक्षा मंच का गठन (Tribal Security Forum formed in Surguja) कर तब से इस विषय पर काम कर रहे हैं. डीलिस्टिंग से जनजातीय समाज को फायदा होगा क्योंकि समाज के ऐसे लोग जो अपनी जाति के अपने माता पिता के रीति रिवाजों को छोड़ दिया है और दूसरा धर्म अपना लिया है. इनकी संख्या 18% है."

ये भी पढ़ें- डिलिस्टिंग के विरोध में एकजुट हुआ ईसाई आदिवासी समाज

राजनीतिक स्वार्थ में वैमनस्यता फैला रहे : वहीं सर्व आदिवासी समाज के संभागीय अध्यक्ष अनूप टोप्पो डिलिस्टिंग का विरोध करते हैं अनूप कहते हैं कि " हम लोगों ने विरोध में जो रैली निकाली इसके पीछे मंशा ये है कि कुछ लोग राजनीतिक स्वार्थ के लिये आदिवासी समाज के आपसी भाई चारे में वैमनस्यता फैलाने की कोशिश कर रहे हैं. हम इसका विरोध करते हैं. 1950 से ही सभी को हम आदिवासियों को भी जीवन जीने का अधिकार प्राप्त है.आदिवासी धर्म पूर्वी है. लेकिन संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत हमें सभी धर्मो का आदर करना या सभी धर्मों में आस्था रखने की आजादी देता है.''

Last Updated : Jun 22, 2022, 1:08 AM IST

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