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SPECIAL: ऑनलाइन मार्केट में उतरी सरगुजा की ये कालीन और जशपुर की ये टोकरी

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Published : Jan 14, 2021, 7:53 PM IST

छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के हाथ में बसा हुनर हर किसी का दिल जीत लेता है. यहां की कला हो या संस्कृति हर चीज में आदिवासियों के रंग और उनकी मासूमियत बसती है. कालीन बुनकरों को नियमित रोजगार देने के लिए दो दशक से बंद पड़े मैनपाट के सुप्रसिद्ध तिब्बती पैटर्न के कालीन उद्योग को पुनर्जीवित करने का काम शुरू किया गया है. आकर्षक और प्राकृतिक धागों से तैयार होने के कारण इसकी लोकप्रियता दिनों-दिन बढ़ती जा रही है.

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तिब्बती कालीन

सरगुजा: मैनपाट की कालीन यहां की पहचान बन गई है. ये तिब्बती कालीन जितनी खूबसूरत देखने में लगती है, उतनी ही टिकाऊ भी मानी जाती है. मैनपाट के सुप्रसिद्ध तिब्बती पैटर्न के कालीन आकर्षक और प्राकृतिक धागों से तैयार होने के कारण इसकी लोकप्रियता दिनों-दिन बढ़ती जा रही है. अब इसे नया बाजार भी मिल गया है. ये कालीन खादी इंडिया समेत 4 अन्य ई कॉमर्स वेबसाइट पर मिल रही है.

कालीन और टोकरी मिलेंगी ऑनलाइन

तिब्बत के लोगों ने सिखाया काम

छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में 1959 से बसे तिब्बती लोगों ने आदिवासियों को कालीन बुनाई का काम सिखाया. इन कालीनों में सूत और ऊन का इस्तेमाल किया जा रहा है. स्थानीय लोग ही इसके जरिए गांव में रोजगार का सृजन कर रहे हैं. अच्छी बात ये है कि ये कालीन खादी इंडिया समेत 4 अन्य ई कॉमर्स वेबसाइट पर बिक रही हैं. लिहाजा सरगुज़ा के गांव में बैठे लोग अब अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपना सामान बेच सकेंगे. ग्रामोद्योग विभाग ने मैनपाट के तिब्बती पैटर्न पर आधारित कालीन उद्योग को दोबारा शुरू किया गया है.

पढ़ें: SPECIAL : मैनपाट की खूबसूरत तिब्बती कालीन, जिले को नाम के साथ दे रही रोजगार

दो दशक बाद दोबारा शुरू हुआ उद्योग

ग्रामोद्योग विभाग ने मैनपाट के तिब्बती पैटर्न पर आधारित कालीन उद्योग को दोबारा शुरू किया है. कालीन बुनकरों को नियमित रोजगार देने के लिए दो दशक से बंद पड़े मैनपाट के सुप्रसिद्ध तिब्बती पैटर्न के कालीन उद्योग को पुनर्जीवित करने का काम शुरू किया गया है. आकर्षक और प्राकृतिक धागों से तैयार होने के कारण इसकी लोकप्रियता दिनों-दिन बढ़ती जा रही है.

कारीगरों को मिला रोजगार

बतौली, सीतापुर के सैकड़ों कालीन बुनाई करने वाले कारीगर उत्तरप्रदेश के भदोही और मिर्जापुर जाकर कालीन बुनाई का काम करते थे. कोरोना संक्रमण के कारण अभी वे काम न मिलने की वजह से बेरोजगार थे. इन कारीगरों को मैनपाट के कालीन बुनाई केन्द्र से जोड़कर इन्हें रोजगार देने की पहल बोर्ड ने शुरू की है, ताकि कालीन बुनाई करने वाले स्थानीय कारीगरों को मैनपाट में ही रोजगार मिल सके. फिलहाल वर्तमान में लगभग 15 कालीन बुनाई करने वालों द्वारा कालीन उत्पादन का काम किया जा रहा है. केंद्र के माध्यम से लगभग 100 से अधिक कालीन बुनाई करने वालों कारीगरों को रोजगार से जोड़ा गया है जो जिले के अन्य क्षेत्रों में काम कर रहे हैं.

जशपुर की विकर टोकरी को मिली पहचान
बांस और छींद से जशपुर जिले में ग्रामीण एक टोकरी का निर्माण कर रहे थे, जो उपयोगी होने के साथ-साथ बेहद आकर्षक भी है. पूरे जशपुर के एक ही गांव कोटानपानी में ये टोकरी बनती है. सरगुजा सहित जशपुर का भी प्रभार संभाल रहे हस्त शिल्प बोर्ड के अधिकारी राजेन्द्र राजवाड़े ने टोकरी निर्माण को प्रोत्साहित किया. मैनपाट की तिब्बती कालीन के साथ ही ये विकर टोकरी भी ई कामर्स साइट में जगह बना चुकी है.

सरगुजा: मैनपाट की कालीन यहां की पहचान बन गई है. ये तिब्बती कालीन जितनी खूबसूरत देखने में लगती है, उतनी ही टिकाऊ भी मानी जाती है. मैनपाट के सुप्रसिद्ध तिब्बती पैटर्न के कालीन आकर्षक और प्राकृतिक धागों से तैयार होने के कारण इसकी लोकप्रियता दिनों-दिन बढ़ती जा रही है. अब इसे नया बाजार भी मिल गया है. ये कालीन खादी इंडिया समेत 4 अन्य ई कॉमर्स वेबसाइट पर मिल रही है.

कालीन और टोकरी मिलेंगी ऑनलाइन

तिब्बत के लोगों ने सिखाया काम

छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में 1959 से बसे तिब्बती लोगों ने आदिवासियों को कालीन बुनाई का काम सिखाया. इन कालीनों में सूत और ऊन का इस्तेमाल किया जा रहा है. स्थानीय लोग ही इसके जरिए गांव में रोजगार का सृजन कर रहे हैं. अच्छी बात ये है कि ये कालीन खादी इंडिया समेत 4 अन्य ई कॉमर्स वेबसाइट पर बिक रही हैं. लिहाजा सरगुज़ा के गांव में बैठे लोग अब अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपना सामान बेच सकेंगे. ग्रामोद्योग विभाग ने मैनपाट के तिब्बती पैटर्न पर आधारित कालीन उद्योग को दोबारा शुरू किया गया है.

पढ़ें: SPECIAL : मैनपाट की खूबसूरत तिब्बती कालीन, जिले को नाम के साथ दे रही रोजगार

दो दशक बाद दोबारा शुरू हुआ उद्योग

ग्रामोद्योग विभाग ने मैनपाट के तिब्बती पैटर्न पर आधारित कालीन उद्योग को दोबारा शुरू किया है. कालीन बुनकरों को नियमित रोजगार देने के लिए दो दशक से बंद पड़े मैनपाट के सुप्रसिद्ध तिब्बती पैटर्न के कालीन उद्योग को पुनर्जीवित करने का काम शुरू किया गया है. आकर्षक और प्राकृतिक धागों से तैयार होने के कारण इसकी लोकप्रियता दिनों-दिन बढ़ती जा रही है.

कारीगरों को मिला रोजगार

बतौली, सीतापुर के सैकड़ों कालीन बुनाई करने वाले कारीगर उत्तरप्रदेश के भदोही और मिर्जापुर जाकर कालीन बुनाई का काम करते थे. कोरोना संक्रमण के कारण अभी वे काम न मिलने की वजह से बेरोजगार थे. इन कारीगरों को मैनपाट के कालीन बुनाई केन्द्र से जोड़कर इन्हें रोजगार देने की पहल बोर्ड ने शुरू की है, ताकि कालीन बुनाई करने वाले स्थानीय कारीगरों को मैनपाट में ही रोजगार मिल सके. फिलहाल वर्तमान में लगभग 15 कालीन बुनाई करने वालों द्वारा कालीन उत्पादन का काम किया जा रहा है. केंद्र के माध्यम से लगभग 100 से अधिक कालीन बुनाई करने वालों कारीगरों को रोजगार से जोड़ा गया है जो जिले के अन्य क्षेत्रों में काम कर रहे हैं.

जशपुर की विकर टोकरी को मिली पहचान
बांस और छींद से जशपुर जिले में ग्रामीण एक टोकरी का निर्माण कर रहे थे, जो उपयोगी होने के साथ-साथ बेहद आकर्षक भी है. पूरे जशपुर के एक ही गांव कोटानपानी में ये टोकरी बनती है. सरगुजा सहित जशपुर का भी प्रभार संभाल रहे हस्त शिल्प बोर्ड के अधिकारी राजेन्द्र राजवाड़े ने टोकरी निर्माण को प्रोत्साहित किया. मैनपाट की तिब्बती कालीन के साथ ही ये विकर टोकरी भी ई कामर्स साइट में जगह बना चुकी है.

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