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अनोखी सोच संस्था: 100 से ज्यादा भाइयों ने मिलकर युवती को दिया नया जीवन - अनोखी सोच संस्था की पहल

सरगुजा की अनोखी सोच संस्था (anokhi soch organization ) ने गरीब युवती का विवाह धूमधाम से कराया. इस संस्था ने ना सिर्फ धूमधाम से विवाह कराया बल्कि बारातियों की आवभगत भी की.

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सौ से अधिक भाइयों ने कराया गरीब बहन का ब्याह
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Published : Aug 29, 2021, 9:35 AM IST

सरगुजा: शादियां आपने बहुत सी देखी होगी. खासकर कोरोना काल ने तो एक से एक वैवाहिक आयोजन दिखाये कहीं वर्चुअल विवाह हुआ तो कहीं परिजनों के बिना ही परिणय हुआ. लेकिन आज हम आपको एक ऐसी अनोखी शादी के विषय में बताने जा रहे हैं जिसमे विवाह करने वाली बहन के सौ से भी अधिक भाई बन गये. इस इंसानियत के रिश्ते ने एक निर्धन बहन को 100 से अधिक भाइयों का प्यार दे दिया.

अनोखी सोच संस्था ने गरीब युवती की कराई शादी

बलरामपुर जिले की रहने वाली प्रियंका दास की मां का निधन काफी पहले हो गया था. पिता मानसिक विक्षिप्त हैं. लिहाजा इस सिर पर मां- बाप का साया नहीं था. प्रियंका की उम्र जब विवाह की हुई तो रिश्तेदारों के जरिये एक स्वजातीय लड़के राकेश दास से प्रियंका का विवाह तय कर दिया गया. लेकिन प्रियंका के पास आर्थिक समस्या थी और विवाह की रस्म अदायगी करने वाला भी कोई नहीं था. ऐसे में प्रियंका के किसी रिश्तेदार ने अम्बिकापुर की समाजसेवी संस्था अनोखी सोच से संपर्क किया. फिर अनोखी सोच संस्था (anokhi soch organization) ने प्रियंका का ब्याह कराया. यह विवाह सांड़बार में स्थित वनदेवी मंदिर में कराया गया. संस्था के लोगों ने विधिवत हिन्दू रीतिरिवाज से विवाह कराने का प्रबंध किया. साथ ही टेंट पंडाल लगाकर बारातियों के भोजन का प्रबंध भी किया.

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सौ से अधिक भाइयों ने कराया गरीब बहन का ब्याह

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सौ से अधिक भाइयों ने कराया गरीब बहन का ब्याह

अनोखी सोच संस्था में लगभग सौ से अधिक सदस्य हैं. सभी मिलकर इस तरह की समाज सेवा के कार्य का खर्च वहन करते हैं. विवाह होने से प्रियंका बेहद प्रसन्न हैं और वो अब इस संस्था के सभी सदस्यों को अपना भाई मानती हैं. प्रियंका और राकेश के रिश्ते से ना सिर्फ दो परिवारों का मिलन हुआ बल्कि प्रियंका के जीवन मे इतने सारे भाइयों से रिश्ता बन गया. इन भाइयो को भी एक और बहन का प्यार मिल गया.

किसी ने सच ही कहा है की मानव सेवा ही माधव सेवा है. तभी तो मानव सेवा करते करते माधव इस तरह के रिश्ते बना देते हैं. जिससे कइयों के भविष्य जुड़े होते हैं. फिलहाल अनोखी सोच संस्था लगातार इस तरह की सेवा की मुहिम जारी रखे हुए हैं. अगर आपकी नजर में भी कोई गरीब जरूरतमंद है. जिसे किसी भी तरह के सहयोग की जरूरत है तो आप अम्बिकापुर की संस्था से सम्पर्क कर सकते हैं.

सरगुजा: शादियां आपने बहुत सी देखी होगी. खासकर कोरोना काल ने तो एक से एक वैवाहिक आयोजन दिखाये कहीं वर्चुअल विवाह हुआ तो कहीं परिजनों के बिना ही परिणय हुआ. लेकिन आज हम आपको एक ऐसी अनोखी शादी के विषय में बताने जा रहे हैं जिसमे विवाह करने वाली बहन के सौ से भी अधिक भाई बन गये. इस इंसानियत के रिश्ते ने एक निर्धन बहन को 100 से अधिक भाइयों का प्यार दे दिया.

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बलरामपुर जिले की रहने वाली प्रियंका दास की मां का निधन काफी पहले हो गया था. पिता मानसिक विक्षिप्त हैं. लिहाजा इस सिर पर मां- बाप का साया नहीं था. प्रियंका की उम्र जब विवाह की हुई तो रिश्तेदारों के जरिये एक स्वजातीय लड़के राकेश दास से प्रियंका का विवाह तय कर दिया गया. लेकिन प्रियंका के पास आर्थिक समस्या थी और विवाह की रस्म अदायगी करने वाला भी कोई नहीं था. ऐसे में प्रियंका के किसी रिश्तेदार ने अम्बिकापुर की समाजसेवी संस्था अनोखी सोच से संपर्क किया. फिर अनोखी सोच संस्था (anokhi soch organization) ने प्रियंका का ब्याह कराया. यह विवाह सांड़बार में स्थित वनदेवी मंदिर में कराया गया. संस्था के लोगों ने विधिवत हिन्दू रीतिरिवाज से विवाह कराने का प्रबंध किया. साथ ही टेंट पंडाल लगाकर बारातियों के भोजन का प्रबंध भी किया.

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अनोखी सोच संस्था में लगभग सौ से अधिक सदस्य हैं. सभी मिलकर इस तरह की समाज सेवा के कार्य का खर्च वहन करते हैं. विवाह होने से प्रियंका बेहद प्रसन्न हैं और वो अब इस संस्था के सभी सदस्यों को अपना भाई मानती हैं. प्रियंका और राकेश के रिश्ते से ना सिर्फ दो परिवारों का मिलन हुआ बल्कि प्रियंका के जीवन मे इतने सारे भाइयों से रिश्ता बन गया. इन भाइयो को भी एक और बहन का प्यार मिल गया.

किसी ने सच ही कहा है की मानव सेवा ही माधव सेवा है. तभी तो मानव सेवा करते करते माधव इस तरह के रिश्ते बना देते हैं. जिससे कइयों के भविष्य जुड़े होते हैं. फिलहाल अनोखी सोच संस्था लगातार इस तरह की सेवा की मुहिम जारी रखे हुए हैं. अगर आपकी नजर में भी कोई गरीब जरूरतमंद है. जिसे किसी भी तरह के सहयोग की जरूरत है तो आप अम्बिकापुर की संस्था से सम्पर्क कर सकते हैं.

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