ETV Bharat / bharat

Tribals of Surguja not celebrate Diwali सरगुजा का आदिवासी समाज नहीं मनाता दिवाली, 11 दिन बाद होती है इनकी दीपावली, जानिए क्या है रहस्य

Tribals of Surguja not celebrate Diwali आज पूरे देश में दीपावली का त्यौहार धूमधाम से मनाया जा रहा है. लेकिन छत्तीसगढ़ के सरगुजा संभाग में आदिवासी और जनजातीय समाज आज दिवाली नहीं मना रहा है. यहां का आदिवासी समाज दिवाली के 11 दिन बाद दीपावली का त्यौहार मनाता है. आखिर ये लोग ऐसा क्यों करते हैं, जानने के लिए पढ़िए ये रिपोर्ट Sohrai on Dev Uthni

Tribals of Surguja not celebrate Diwali
सरगुजा का आदिवासी समाज नहीं मनाता दिवाली
author img

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 12, 2023, 8:08 AM IST

Updated : Nov 12, 2023, 11:08 AM IST

सरगुजा का आदिवासी समाज क्यों नहीं मनाता दिवाली ?

सरगुजा: छत्तीसगढ़ में आदिवासी समाज की संस्कृति और मान्यताएं बेहद खास हैं. इनके पर्व और त्यौहार के साथ लोकरंग भी अनूठे हैं. ऐसे में आज हम आपको सरगुजा अंचल के आदिवासी समाज की दिवाली के बारे में बताने जा रहे हैं. यहां के आदिवासी दिवाली के दिन दीपावली नहीं मनाते हैं. यहां के आदिवासी समाज और ग्रामीण दीपावली के 11 दिन बाद एकादशी तिथि को दिवाली मनाते हैं. इसे यहां के आदिवासी देवउठनी सोहराई कहते हैं और इसी दिन यहां सभी ग्रामीण और आदिवासी माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं.

सोहराई की क्या है खासियत: सरगुजा अंचल में सोहराई को विशेष माना जाता है. इस दिन के लिए आदिवासी समाज के लोग साफ सफाई करते हैं और इसी दिन वे माता लक्ष्मी की उपासना करते हैं. सरगुजा के आदिवासी समाज के लोगों के साथ साथ कई ग्रामीण इस परंपरा में शामिल होते हैं, इस तरह यहां के लोगों की दीपावली बेहद अलग होती है.

"हम लोग एकादशी के दिन दिवाली का त्यौहार मनाते हैं, इस दिन गाय के कोठा से घर तक गाय के खुर (पंजे) के निशान को छापते हुये घर तक उस निशान को बनाते हैं. यह लक्ष्मी के आगमन का प्रतीक है": ओम प्रकाश नगेशिया, ग्रामीण

गौमाता को देते हैं लक्ष्मी का दर्जा: सरगुजा अंचल के आदिवासी गौ माता को लक्ष्मी के रूप में पूजते हैं. यही वजह है कि इस दिन यहां के आदिवासी, घर की गौशाला से डेहरी तक गाय के पद चिन्ह को बनाते हैं. घर तक गौमाता के पदों के निशान बनाकर यह मां लक्ष्मी को हर आगमन का न्यौता देते हैं उसके बाद आंगन में चावल की मिठाई चढ़ाते हैं. इसके अलावा कंद मूल, कुम्हड़े का फल इत्यादि चढ़ाकर मां लक्ष्मी की पूजा करते हैं.

"सरगुजा के गांव देहात में दिवाली के दिन हम लोग दीपावली नहीं मनाते हैं. 11 दिन बाद हम लोग दिवाली का त्यौहार मनाते हैं, इस दिन देवउठान होता है. दिवाली के दिन हम लोग पटाखे भी नहीं फोड़ते हैं": सुरेश यादव, ग्रामीण

क्या कहते हैं जानकार: सरगुजा और आदिवासी लोक संस्कृति के जानकार रंजीत सारथी से ईटीवी भारत ने आदिवासियों के इस परंपरा पर बात की है. उन्होंने बताया कि" देवउठनी का मतलब इस दिन देवता उठते हैं. इसी दिन से सारे शुभ काम शुरु होते हैं सरगुजा के गांव में आदिवासी लोग इसी दिन को दिवाली के रूप में सोहराई कहकर मानते हैं, इस दिन गुरु शिष्य परंपरा का भी पालन गांव में होता है. शिष्य गुरु को कुम्हड़ा, कंद मूल भेंट करता है और गुरु शिष्य को इस दिन ज्ञान देते हैं"

Diwali Gifts छत्तीसगढ़ में दीपावली पर स्नैक्स गिफ्ट का बढ़ा प्रचलन, दिवाली उपहार के लिए लोग कर रहे खरीदारी
Deepawali 2023 : दिवाली आज, जाने लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त
Diwali 2023: 10 दिन लंबी दिवाली... दुर्गा माता की तरह विराजती हैं मां लक्ष्मी, जानिए सागर की अनोखी परंपरा

इस तरह सरगुजा में आदिवासियों और ग्रामीणों की दिवाली बेहद अलग होती है. जिस दिन पूरे देश में दीपोत्सव का पर्व मनाया जाता है, उस दिन यहां पर दिवाली नहीं मनाई जाती है. एकादशी यानि की देवउठनी के दिन दीपावली का पर्व मनाया जाता है.

सरगुजा का आदिवासी समाज क्यों नहीं मनाता दिवाली ?

सरगुजा: छत्तीसगढ़ में आदिवासी समाज की संस्कृति और मान्यताएं बेहद खास हैं. इनके पर्व और त्यौहार के साथ लोकरंग भी अनूठे हैं. ऐसे में आज हम आपको सरगुजा अंचल के आदिवासी समाज की दिवाली के बारे में बताने जा रहे हैं. यहां के आदिवासी दिवाली के दिन दीपावली नहीं मनाते हैं. यहां के आदिवासी समाज और ग्रामीण दीपावली के 11 दिन बाद एकादशी तिथि को दिवाली मनाते हैं. इसे यहां के आदिवासी देवउठनी सोहराई कहते हैं और इसी दिन यहां सभी ग्रामीण और आदिवासी माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं.

सोहराई की क्या है खासियत: सरगुजा अंचल में सोहराई को विशेष माना जाता है. इस दिन के लिए आदिवासी समाज के लोग साफ सफाई करते हैं और इसी दिन वे माता लक्ष्मी की उपासना करते हैं. सरगुजा के आदिवासी समाज के लोगों के साथ साथ कई ग्रामीण इस परंपरा में शामिल होते हैं, इस तरह यहां के लोगों की दीपावली बेहद अलग होती है.

"हम लोग एकादशी के दिन दिवाली का त्यौहार मनाते हैं, इस दिन गाय के कोठा से घर तक गाय के खुर (पंजे) के निशान को छापते हुये घर तक उस निशान को बनाते हैं. यह लक्ष्मी के आगमन का प्रतीक है": ओम प्रकाश नगेशिया, ग्रामीण

गौमाता को देते हैं लक्ष्मी का दर्जा: सरगुजा अंचल के आदिवासी गौ माता को लक्ष्मी के रूप में पूजते हैं. यही वजह है कि इस दिन यहां के आदिवासी, घर की गौशाला से डेहरी तक गाय के पद चिन्ह को बनाते हैं. घर तक गौमाता के पदों के निशान बनाकर यह मां लक्ष्मी को हर आगमन का न्यौता देते हैं उसके बाद आंगन में चावल की मिठाई चढ़ाते हैं. इसके अलावा कंद मूल, कुम्हड़े का फल इत्यादि चढ़ाकर मां लक्ष्मी की पूजा करते हैं.

"सरगुजा के गांव देहात में दिवाली के दिन हम लोग दीपावली नहीं मनाते हैं. 11 दिन बाद हम लोग दिवाली का त्यौहार मनाते हैं, इस दिन देवउठान होता है. दिवाली के दिन हम लोग पटाखे भी नहीं फोड़ते हैं": सुरेश यादव, ग्रामीण

क्या कहते हैं जानकार: सरगुजा और आदिवासी लोक संस्कृति के जानकार रंजीत सारथी से ईटीवी भारत ने आदिवासियों के इस परंपरा पर बात की है. उन्होंने बताया कि" देवउठनी का मतलब इस दिन देवता उठते हैं. इसी दिन से सारे शुभ काम शुरु होते हैं सरगुजा के गांव में आदिवासी लोग इसी दिन को दिवाली के रूप में सोहराई कहकर मानते हैं, इस दिन गुरु शिष्य परंपरा का भी पालन गांव में होता है. शिष्य गुरु को कुम्हड़ा, कंद मूल भेंट करता है और गुरु शिष्य को इस दिन ज्ञान देते हैं"

Diwali Gifts छत्तीसगढ़ में दीपावली पर स्नैक्स गिफ्ट का बढ़ा प्रचलन, दिवाली उपहार के लिए लोग कर रहे खरीदारी
Deepawali 2023 : दिवाली आज, जाने लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त
Diwali 2023: 10 दिन लंबी दिवाली... दुर्गा माता की तरह विराजती हैं मां लक्ष्मी, जानिए सागर की अनोखी परंपरा

इस तरह सरगुजा में आदिवासियों और ग्रामीणों की दिवाली बेहद अलग होती है. जिस दिन पूरे देश में दीपोत्सव का पर्व मनाया जाता है, उस दिन यहां पर दिवाली नहीं मनाई जाती है. एकादशी यानि की देवउठनी के दिन दीपावली का पर्व मनाया जाता है.

Last Updated : Nov 12, 2023, 11:08 AM IST

For All Latest Updates

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.