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दक्षिण भारत में भी हुआ था जलियांवाला बाग जैसा कांड - flag satyagraha

स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान जहां-जहां कांग्रेस अभियान चलाती थी, वहां स्वतंत्रता का प्रतीक तिरंगा फहराया जाता था. ब्रिटिश सरकार के बैन लगाए जाने के बावजूद, मांड्या के शिवपुर में तिरंगा ध्वज सत्याग्रह सफल रहा.

झंडा सत्याग्रह
झंडा सत्याग्रह
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Published : Aug 14, 2021, 10:37 PM IST

Updated : Aug 15, 2021, 12:42 AM IST

हैदराबाद : भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने जहां भी प्रचार किया, वहां भारतीय तिरंगा फहराया गया क्योंकि यह भारत की स्वतंत्रता की आकांक्षाओं का प्रतीक था. हालांकि, पार्टी को झंडा फहराने के लिए भी काफी संघर्ष का सामना करना पड़ा था. ब्रिटिश शासकों द्वारा प्रतिबंध के बावजूद मांड्या के शिवपुर में एक झंडा अभियान सफल रहा.

कांग्रेस पार्टी ने सोचा कि अगर विदुरश्वाथा में 'झंडा सत्याग्रह' का आयोजन किया जाए, तो कई लोग पार्टी की ओर आकर्षित हो सकते हैं. हालांकि, झंडा सत्याग्रह को रोकने के लिए पुलिस ने एक महीने पहले ही योजना बना ली थी. 1938 के उस दिन स्वतंत्रता सेनानी झंडा फहराने वाले थे. हालांकि पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज करना शुरू कर दिया. प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर पथराव किया. 32 से अधिक लोग मारे गए जिन्हें स्वतंत्रता आंदोलन के लिए जान गंवाने वाला शहीद कहा गया.

झंडा सत्याग्रह

इतिहासकार प्रोफेसर गंगाधर ने इस घटना को याद करते हुए कहा, पहली बार मैसूर के शिवपुरा में ध्वज सत्याग्रह आयोजित किया गया था. ब्रिटिश द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने के बावजूद यह कार्यक्रम सफल रहा. पुराने मैसूर के कांग्रेस कार्यकर्ताओं और नेताओं ने इसमें भागीदारी की थी. इस घटना ने पूरे संघर्ष को नई दिशा दे दी.

पंजाब के जलियांवाला बाग की घटना के 19 साल बाद चिकबल्लापुर के गौरीबिदानुर के पास विदुरश्वाथा में गोलीबारी की घटना हुई. यहां पर जलियांवाला बाग की तरह बाहर निकलने का एकमात्र रास्ता था. इसे बंद करने के बाद लोग बाहर नहीं निकल सकते थे. पुलिस ने हॉल की खिड़कियों से गोली चलाई. विदुरश्वाथा और जलियांवाला बाग के बीच यह एक साम्यता है. बाद में इस जगह का नाम कर्नाटक का जलियांवाला बाग कर दिया गया.

बीबीसी ने विदुरश्वाथा गोलीबारी की घटना की खबर प्रसारित की थी. तब गांधी मुंबई में थे. उन्होंने सरदार पटेल और कृपलानी को विदुरश्वाता भेजा. ब्रिटिश ध्वज के साथ-साथ कांग्रेस का झंडा फहराने का मिर्जा-पटेल समझौता पहले ही हो चुका था. झंडा स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक था. कांग्रेस का उद्देश्य झंडे को आगे रखकर अभियान चलाने का था.

पढ़ें :- 'भारत छोड़ो आंदोलन' देश की आजादी का टर्निंग पॉइंट कहा जाता है... जानें क्यों?

इतिहासकार प्रोफेसर गंगाधर ने कहा, विदुरश्वाथा की घटना के बाद कांग्रेस को यह संदेश दिया गया कि वह सिर्फ ब्रिटिश ही नहीं, बल्कि उनके द्वारा चलाए जा रहे संस्थानों के खिलाफ भी पूरे देश में संघर्ष करे. मैसूर अभियान इसी का एक हिस्सा था. गोलीबारी की घटना से पहले जहां-जहां ब्रिटिश सीधे शासन कर रहे थे, वहां पर कांग्रेस का संघर्ष जारी था. हालांकि, गांधी ने संस्थान के खिलाफ संघर्ष न करने की सलाह दी थी. गांधी मैसूर के महाराजा और मिर्जा इस्माइल के प्रशंसक थे. लेकिन विदुरश्वाथा की घटना के बाद उनकी भी सोच बदल गई.

महात्मा गांधी ने न केवल अंग्रेजों के खिलाफ बल्कि अंग्रेजों के अधीन संस्थानों के खिलाफ भी कड़े संघर्ष का आह्वान किया. यह एक काफी अहम कदम था. गांधी जी ने पूरे भारत में कांग्रेस का अभियान चलाने का फैसला किया. इसका कारण विदुरश्वाथा था.

हैदराबाद : भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने जहां भी प्रचार किया, वहां भारतीय तिरंगा फहराया गया क्योंकि यह भारत की स्वतंत्रता की आकांक्षाओं का प्रतीक था. हालांकि, पार्टी को झंडा फहराने के लिए भी काफी संघर्ष का सामना करना पड़ा था. ब्रिटिश शासकों द्वारा प्रतिबंध के बावजूद मांड्या के शिवपुर में एक झंडा अभियान सफल रहा.

कांग्रेस पार्टी ने सोचा कि अगर विदुरश्वाथा में 'झंडा सत्याग्रह' का आयोजन किया जाए, तो कई लोग पार्टी की ओर आकर्षित हो सकते हैं. हालांकि, झंडा सत्याग्रह को रोकने के लिए पुलिस ने एक महीने पहले ही योजना बना ली थी. 1938 के उस दिन स्वतंत्रता सेनानी झंडा फहराने वाले थे. हालांकि पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज करना शुरू कर दिया. प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर पथराव किया. 32 से अधिक लोग मारे गए जिन्हें स्वतंत्रता आंदोलन के लिए जान गंवाने वाला शहीद कहा गया.

झंडा सत्याग्रह

इतिहासकार प्रोफेसर गंगाधर ने इस घटना को याद करते हुए कहा, पहली बार मैसूर के शिवपुरा में ध्वज सत्याग्रह आयोजित किया गया था. ब्रिटिश द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने के बावजूद यह कार्यक्रम सफल रहा. पुराने मैसूर के कांग्रेस कार्यकर्ताओं और नेताओं ने इसमें भागीदारी की थी. इस घटना ने पूरे संघर्ष को नई दिशा दे दी.

पंजाब के जलियांवाला बाग की घटना के 19 साल बाद चिकबल्लापुर के गौरीबिदानुर के पास विदुरश्वाथा में गोलीबारी की घटना हुई. यहां पर जलियांवाला बाग की तरह बाहर निकलने का एकमात्र रास्ता था. इसे बंद करने के बाद लोग बाहर नहीं निकल सकते थे. पुलिस ने हॉल की खिड़कियों से गोली चलाई. विदुरश्वाथा और जलियांवाला बाग के बीच यह एक साम्यता है. बाद में इस जगह का नाम कर्नाटक का जलियांवाला बाग कर दिया गया.

बीबीसी ने विदुरश्वाथा गोलीबारी की घटना की खबर प्रसारित की थी. तब गांधी मुंबई में थे. उन्होंने सरदार पटेल और कृपलानी को विदुरश्वाता भेजा. ब्रिटिश ध्वज के साथ-साथ कांग्रेस का झंडा फहराने का मिर्जा-पटेल समझौता पहले ही हो चुका था. झंडा स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक था. कांग्रेस का उद्देश्य झंडे को आगे रखकर अभियान चलाने का था.

पढ़ें :- 'भारत छोड़ो आंदोलन' देश की आजादी का टर्निंग पॉइंट कहा जाता है... जानें क्यों?

इतिहासकार प्रोफेसर गंगाधर ने कहा, विदुरश्वाथा की घटना के बाद कांग्रेस को यह संदेश दिया गया कि वह सिर्फ ब्रिटिश ही नहीं, बल्कि उनके द्वारा चलाए जा रहे संस्थानों के खिलाफ भी पूरे देश में संघर्ष करे. मैसूर अभियान इसी का एक हिस्सा था. गोलीबारी की घटना से पहले जहां-जहां ब्रिटिश सीधे शासन कर रहे थे, वहां पर कांग्रेस का संघर्ष जारी था. हालांकि, गांधी ने संस्थान के खिलाफ संघर्ष न करने की सलाह दी थी. गांधी मैसूर के महाराजा और मिर्जा इस्माइल के प्रशंसक थे. लेकिन विदुरश्वाथा की घटना के बाद उनकी भी सोच बदल गई.

महात्मा गांधी ने न केवल अंग्रेजों के खिलाफ बल्कि अंग्रेजों के अधीन संस्थानों के खिलाफ भी कड़े संघर्ष का आह्वान किया. यह एक काफी अहम कदम था. गांधी जी ने पूरे भारत में कांग्रेस का अभियान चलाने का फैसला किया. इसका कारण विदुरश्वाथा था.

Last Updated : Aug 15, 2021, 12:42 AM IST
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