रायपुर: छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में स्थित शहीद वीर नारायण सिंह क्रिकेट स्टेडियम भारत का तीसरा सबसे बड़ा स्टेडियम है. इसमें करीब 65 हजार लोगों के बैठने की क्षमता है. चलिए जानते हैं कौन है शहीद वीर नारायण सिंह. उनके नाम पर बने स्टेडियम की आखिर क्या है खासियत.
कौन है शहीद वीर नारायण सिंह: ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ क्रांति शुरू हुई, तो उसकी चिंगारी छत्तीसगढ़ में भी भड़की. यहां की सरजमीं पर छत्तीसगढ़ के माटी पुत्रों ने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था. उन्ही में एक थे छत्तीसगढ़ के पहले वीर सपूत वीर नारायण सिंह, जिन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई लड़ते-लड़ते अपनी कुर्बानी दी थी. गरीबों के मसीहा कहे जाने वाले शहीद वीर नारायण सिंह बिंझवार को 10 दिसंबर, 1857 को रायपुर में फांसी दे गई थी.
वीर नारायण सिंह का जन्म 1795 में हुआ था. वे सोनाखान रियासत के जमींदार थे, जो आज बलौदा बाजार जिले में आता है. बचपन से ही वह धनुष बाण, मल्लयुद्ध, तलवारबाजी, घुड़सवारी और बंदूक चलाने में महारत हासिल कर चुके थे. अंग्रेज उनके शौर्य से डरे हुए थे.
क्या कहते हैं इतिहासकार: इतिहासकार आचार्य रमेन्द्र नाथ मिश्र कहते हैं कि "1857 की क्रांति में छत्तीसगढ़ के प्रथम शहीद सोनाखान के जमींदार क्रांति वीर नारायण सिंह हैं. इन्होंने 1856 में ही भूख पीड़ित जनता के दुःख दर्द को दूर करने के लिए जनआंदोलन शुरू कर दिया था. अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और रायपुर जेल में रखा था. भारतीय राष्ट्रीय स्तर पर मेरठ की क्रांति के बाद में रायपुर जेल के सैनिकों ने इन्हें नेता चुना. बाद में सोनाखान जाकर अंग्रेजों से संघर्ष करते हुए जनता के हित में इन्हेंने अपने आप को समर्पित कर दिया.
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वीर नारायण सिंह खौफ में रहते थे अंग्रेज: अंग्रेजों ने किसी तरह उन्हें गिरफ्तार कर रायपुर ले आए थे. 9 दिसंबर 1857 का एक पत्र मेरे पास है. उसमें दिया है कि कल सुबह उन्हें फांसी दिया जाए. 10 दिसंबर 1857 को सुबह जेल के समक्ष उन्हें फांसी दे दी गई. चूंकि भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का जो इतिहास है, वह 1857 से लेकर 1947 ईसवी तक माना जाता है. ऐसे में 1857 की क्रांति में छत्तीसगढ़ की माटी को गौरवांवित करने वाले क्रांतिवीर नारायण सिंह है.
जनजातिय गौरव थे वीर नारायण: शहीद वीर नारायण सिंह जनजातिय गौरव के साथ ही साथ सर्वजनिय राष्ट्रीयता के प्रणेता थे. वे बचपन से ही खेल कुद, तिरंदाजी, घुड़सवारी और तैराकी में उनकी काफी रुची थी. इन्होंने अपने सोनाखान जमीदारी में जनता को प्रोत्साहित करके एक टीम तैयार की थी. इनके 500 युवक साथी 1857 की क्रांति में अंग्रेजों से संघर्ष लेने में सहायक सिद्ध हुए. उनके टीम से अंग्रेजों में भय का माहौल बना हुआ था. उन्हीं के नाम पर बने स्टेडियम पर भारत न्यूजीलैंड का मैच होने जा रहा है.
क्या है मैदान की खासियत: छत्तीसगढ़ स्टेट क्रिकेट संघ के अध्यक्ष जुबिन शाह ने बताया कि "यह स्टेडियम देश का तीसरा सबसे बड़ा स्टेडियम है. यहां लगभग 65,000 लोगों की बैठने की क्षमता है. इस स्टेडियम को दो बार पुरस्कार मिल चुका है. यहां कई आयोजन भी हो चुके हैं. स्टेडियम में बैठने से आसपास का पूरा नजारा दिखाई देता है. स्टेडियम से लगा हुआ एक लेक भी है, जो काफी बड़ा है.