नई दिल्ली/रायपुर: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को प्रिवेंशन ऑफ मनी लांड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली छत्तीसगढ़ सरकार की याचिका पर सुनवाई स्थगित कर दी है. छत्तीसगढ़ सरकार ने याचिका में आरोप लगाया है कि केंद्रीय जांच एजेंसियों का दुरुपयोग किया जा रहा है. राज्य सरकार की ओर से स्थगन के लिए पत्र जारी होने के बाद जस्टिस संजीव खन्ना और एमएम सुंदरेश की बेंच ने सुनवाई को अगस्त तक के लिए स्थगित कर दिया है.
केंद्रीय जांच एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप: याचिका में प्रदेश की भूपेश सरकार की ओर से कहा गया है कि "अधिकारियों के साथ-साथ प्रदेश के निवासियों की ओर से कई शिकायतें मिल रही हैं, जिसमें ईडी पर उन्हें प्रताड़ित करने और उनके साथ मारपीट करने का आरोप लगाया जा रहा है. शक्तियों के अत्यधिक दुरूपयोग के कारण छत्तीसगढ़ सरकार को अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए मजबूर होना पड़ा है." याचिका के जरिए प्रदेश सरकार ने पीएमएलए की धारा 17, धारा 50, धारा 63 और धारा 71 पर सवाल उठाते हुए इसे संविधान के विपरीत बताया है.
पीएमएलए की किस धारा का क्या मतलब है यहां समझिए
धारा 17: खोज और जब्ती
धारा 50: समन दस्तावेजों को पेश करने और सबूत देने आदि के बारे में अधिकारियों की शक्तियां
धारा 63: गलत सूचना या सूचना देने में विफलता आदि के लिए सजा
धारा 71: ओवरराइडिंग प्रभाव
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मार्च में याचिका पर विचार करने की दी मंजूरी: ईडी की कार्रवाई को लेकर पिछले साल भी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी. जुलाई 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने प्रिवेंशन ऑफ मनी लांड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) पर बड़ा फैसला सुनाते हुए ईडी के कई अधिकारों की पुष्टि की थी. साथ ही पीएमएलए कानून के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया था. कोर्ट ने कहा था कि "साल 2018 में कानून में किए गए संशोधन सही हैं." इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने प्रवर्तन निदेशालय ईडी के सभी अधिकारों को बरकरार रखा है. मार्च 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश के विधायक गोविंद सिंह की अर्जी पर पीएमएलए की धारा 17, 50, 63 और 71 को दी गई चुनौती वाली याचिका पर विचार करने के लिए अपनी मंजूरी दी.