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इस बात से दुखी थे मुलायम, बनारस की जेल में पड़ी थी समाजवादी पार्टी की नींव

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Published : Oct 10, 2022, 9:50 AM IST

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव का निधन (Mulayam Singh Yadav Passes Away) हो गया है. आज उन्होंने आखिरी सांस ली. क्या आप जानते हैं कि मुलायम सिंह यादव ने वाराणसी के शिवपुर जेल में ही उन्होंने नई पार्टी के गठन की योजना को अंतिम रूप दिया था. अपने साथ जेल में बंद ईशदत्त यादव, बलराम यादव, वसीम अहमद व कुछ अन्य नेताओं से उन्होंने इस संबंध में विस्तार से चर्चा करके अपने मन की बात बतायी थी.....

Samajwadi Party Mulayam singh Rally
मुलायम सिंह यादव एक रैली में

नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव का निधन (Mulayam Singh Yadav Passes Away) आज 10 अक्टूबर 2022 के मेदांता अस्पताल में निधन हो गया. मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी की स्थापना की थी. समाजवादी पार्टी समाजवादी विचारधारा पर आधारित पार्टी है. इसकी स्थापना की कहानी भी काफी दिलचस्प है. कहा जाता है कि मुलायम सिंह यादव ने जनता दल की हालत को देखकर एक नयी पार्टी बनाने का फैसला तो पहले ही कर लिया था, लेकिन इस पर अमली जामा पहनाने की जरूरत थी. कहा जाता है कि मुलायम सिंह यादव ने वाराणसी के शिवपुर जेल में ही उन्होंने नई पार्टी के गठन की योजना को अंतिम रूप दिया था. अपने साथ जेल में बंद ईशदत्त यादव, बलराम यादव, वसीम अहमद व कुछ अन्य नेताओं से उन्होंने इस संबंध में विस्तार से चर्चा करके अपने मन की बात बतायी थी. इस बात की पुष्टि सपा नेता डॉ. केपी यादव भी करते हैं, जो मुलायम सिंह यादव की गिरफ्तारी के विरोध में जेल गए थे.

राजनीतिक गलियारों से जुड़े जानकार बताते हैं कि 1989 के चुनाव में जनता दल की मजबूत उपस्थिति ने उत्तर प्रदेश के साथ साथ केरल, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और पंजाब जैसे राज्यों में बेहतर परिणाम दिया, लेकिन मुलायम सिंह के यूपी के मुख्यमंत्री के रूप में आने बाद भी जनता दल की गुटबाजी से परेशान दिख रहे थे. वह जनता दल में वीपी सिंह और चंद्रशेखर के नेतृत्व वाली गुटबाजी व लड़ाई के शिकार होते जा रहे थे. इसके लिए वह काफी दिनों से कुछ नया करने की सोचते रहे ताकि इन नेताओं की गुटबाजी के झंझट से मुक्ति मिले. जब 1990 में देश भर में जनता दल का विभाजन हुआ, तो मुलायम सिंह ने वी पी सिंह से अलग होने का फैसला किया और चंद्रशेखर सिंह के साथ समाजवादी जनता पार्टी (एसजेपी) के नेतृत्व वाले गुट में शामिल हो गए. मुलायम सिंह ने 1991 के विधानसभा चुनावों के प्रचार के दौरान कांशीराम के साथ भी सौहार्दपूर्ण संबंध स्थापित किए और धीरे धीरे अपनी एक अलग पार्टी के बारे में सोचने लगे.सपा की स्थापना से पहले मुलायम के पास तीन दशक की सक्रिय व मुख्य धारा की राजनीति का अनुभव था. वह 1967 में पहली बार विधायक बने थे और 1977 में पहली बार मंत्री और 1989 में पहली बार मुख्यमंत्री बने चुके थे. समाजवादी पार्टी बनाने के पहले वह चन्द्रशेखर सिंह की अगुवाई वाली समाजवादी जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के रुप में काम कर रहे थे. इसके बाद उन्होंने अगस्त 1992 में ही समाजवादियों को इकट्ठा कर नया दल बनाने का मन बना लिया और इसकी तेजी से तैयारी भी शुरू की.

बताया जाता है कि इसी बीच सितंबर 92 के आखिरी दिनों में देवरिया जिले के रामकोला में किसानों पर गोली चल गई और इस घटना में 2 लोगों की मौत हो गई थी. इस दौरान मुलायम सिंह यादव लखनऊ से देवरिया के लिए रवाना हुए लेकिन उन्हें गिरफ्तार कर वाराणसी के सेंट्रल जेल शिवपुर में भेज दिया गया. वह किसानों पर हुए अत्याचार से आहत थे और किसानों की आवाज किसी भी राजनीतिक दल के द्वारा उठाने की संभावना न के बराबर दिख रही थी. मुलायम सिंह यादव ने किसानों के हक में किसी राजनीतिक दल के खड़े न होने के कारण वाराणसी के शिवपुर जेल में ही उन्होंने नई पार्टी के गठन की योजना को अंतिम रूप दिया था. अपने साथ जेल में बंद ईशदत्त यादव, बलराम यादव, वसीम अहमद व कुछ अन्य नेताओं से उन्होंने इस संबंध में विस्तार से चर्चा करके अपने मन की बात बतायी थी.

कहा जाता है कि मुलायम सिंह यादव 1989 से 1992 तक जनता दल और चंद्रशेखर की सजपा में मची खींचतान और सत्ता पाने की होड़ के कारण मुलायम सिंह कई महीनों तक उलझन में थे. लेकिन पहले वो वीपी सिंह के नेतृत्व वाली जनता दल से नाता तोड़ कर चंद्रशेखर की समाजवादी जनता पार्टी (सजपा) में शामिल हुए और चंद्रशेखर व कांग्रेस की दोस्ती के कारण कांग्रेस का समर्थन लेकर उत्तर प्रदेश में अपनी सरकार बचायी. लेकिन मुलायम सिंह के साथ साथ कई अन्य समाजवादी नेताओं का तालमेल चंद्रशेखर के साथ भी नहीं बैठ पा रहा था. इसका संकेत तब मिला जब चंद्रशेखर से मतभेदों के कारण जब तत्कालीन संचार मंत्री जनेश्वर मिश्र ने चंद्रशेखर के मंत्रिमंडल से अपना इस्तीफा दे दिया. छोटे लोहिया के नाम से चर्चित जनेश्वर मिश्र मुलायम सिंह यादव के से नजदीकियों में गिने जाते थे.

मुलायम को खटकती थी राजीव गांधी की बात

मुलायम सिंह यादव को कांग्रेस के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री की एक बात खटकती रहती थी. राजीव गांधी बार-बार कहा करते थे कि चंद्रशेखर पुराने कांग्रेसी हैं, और वह कभी भी कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं. इसी बात को लेकर वह बेचैन और खुद को असुरक्षित महसूस करते थे. वह चंद्रशेखर के साथ ज्यादा दिन तक टिककर अपने राजनीतिक भविष्य को और अधिक असुरक्षित नहीं करना चाहते थे. इसीलिए वह एक नयी पार्टी बनाने की उधेड़बुन में लगे रहते थे. एक के बाद एक घटनाक्रम में उन्हें राजीव गांधी की भविष्यवाणी सही दिखायी देने लगती थी.

समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह अपने राजनीति एजेंडे में मुस्लिम को शामिल कर चुके थे. वह राम लहर के खिलाफ दूसरी धारा के बड़े नेता बनने की चाह रखते थे. मुलायम सिंह यादव ने पहली बार 30 अक्टबूर 1990 को कारसेवकों पर गोली चलाने की घटना में 5 कार सेवकों की मौत हुई थी. इसके बाद वहां तनाव बना रहा. तीन दिन बाद 2 नवंबर को सुबह का वक्त था अयोध्या के हनुमान गढ़ी के सामने लाल कोठी के सकरी गली में कारसेवक बढ़े चले आ रहे थे. पुलिस ने सामने से आ रहे कारसेवकों पर फायरिंग कर दी, जिसमें करीब दो दर्जन लोगों की मौत होने की बता कही जाती है. इसी दौरान ही कोलकाता से आए कोठारी बंधुओं की भी मौत हुई थी. इसीलिए 1990 के गोलीकांड के बाद हुए विधानसभा चुनाव में मुलायम सिंह बुरी तरह चुनाव हार गए और कल्याण सिंह सूबे के नए मुख्यमंत्री बनकर उभरे, कल्याण सिंह को हिंदुत्व का समर्थन करने वाले नेता कहा जाने लगा तो वहीं मुलायम को ''मुल्ला मुलायम' की उपाधि मिल गयी. कारसेवकों पर गोली चलाने के आदेश के कारण उन्हें हिन्दू विरोधी नेता कहा जाने लगा था.

Samajwadi Party in Loksabha
सपा का लोकसभा में प्रदर्शन

राजनीतिकर गलियारों की चर्चाओं के अनुसार, राजीव की मृत्यु के बाद चंद्रशेखर तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव के काफी करीब होते चले गए. वह प्रधानमंत्री नरसिंह राव के घर अक्सर चाय पीने के बहाने मिलने जाया करते थे. इतना ही नहीं राव सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर उनके चार में से तीन सांसदों ने वोट ही नहीं दिया था. राव व कांग्रेस के हिमायती बनते जा रहे चंद्रशेखर को अकेले छोड़कर मुलायम सिंह यादव ने अपना अलग रास्ता ढूंढ़ने का फैसला कर लिया.

देवीलाल, चंद्रशेखर, वीपी सिंह को करारा जवाब

सपा नेता बताते हैं कि मुलायम सिंह यादव दारुलशफा स्थित अपने मित्र भगवती सिंह के विधायक आवास पर जाकर साथियों के साथ लंबी बैठकें किया करते थे और भविष्य की रूपरेखा भी तैयार करते थे. उनके कई साथियों ने पार्टी बनाने व चलान के तमाम उदाहरण देकर डराने की भी कोशिश की. सहयोगियों ने कहा कि अकेले पार्टी बनाना आसान नहीं है और अगर पार्टी बन भी गई तो उसे चलाना आसान नहीं होगा. फिर भी मुलायम सिंह यादव ने अपना मन बना लिया था.

मुलायम सिंह यादव बोले-

"भीड़ हम उन्हें जुटाकर देते हैं और पैसा भी. फिर वे (देवीलाल, चंद्रशेखर, वीपी सिंह आदि) हमें बताते हैं कि क्या करना है, क्या बोलना है. अब हम अपना रास्ता खुद बनाएंगे."

आखिरकार सितंबर 1992 के खत्म होते होते मुलायम सिंह ने सजपा से नाता तोड़ लिया और 4 अक्टूबर 1992 को लखनऊ में उन्होंने समाजवादी पार्टी बनाने की घोषणा कर दी. इसके बाद 4 और 5 नवंबर को बेगम हजरत महल पार्क में उन्होंने पार्टी का पहला राष्ट्रीय अधिवेशन आयोजित किया गया , जिसमें मुलायम सिंह यादव को समाजवादी पार्टी का अध्यक्ष, जनेश्वर मिश्र को उपाध्यक्ष, कपिल देव सिंह और मोहम्मद आज़म खान को महामंत्री बनाकर पार्टी की आधिकारिक शुरुआत कर दी गयी. इस पार्टी के प्रवक्ता के रुप में मोहन सिंह को जिम्मेदारी दी गयी. यहां पर बेनी प्रसाद वर्मा कोई पद नहीं मिला और वह रूठकर घर में बैठ गए. वह सम्मेलन में भी नहीं आए. फिर मुलायम सिंह ने उन्हें घर जाकर मनाने की कोशिश की और सम्मेलन में लेकर आए.

Samajwadi Party in up Assembly elections
सपा का प्रदर्शन

तब से लेकर अब तक पार्टी ने लगभग 30 सालों का सफर तय किया है और इस दौरान तमाम तरह के प्रयोग भी हुए और कई बार पार्टी सत्ता में आयी. अब यह पार्टी मुलायम सिंह के बेटे अखिलेश के हाथों में है और इनका मार्गदर्शन प्रोफेसर राम गोपाल यादव सहित पार्टी के अन्य बड़े नेता कर रहे हैं, लेकिन पार्टी के कई नेता किनारा भी कर चुके हैं. पार्टी के बड़े नेताओं में नरेश अग्रवाल, अनिल राजभर, मनोज तिवारी, राजब्बर, जयाप्रदा, अमर सिंह जैसे नेता पार्टी में आकर चले गए. वहीं बेनी प्रसाद वर्मा व आजम खान पार्टी में पहले दिन से साथ रहकर काम किया और फिर मतभेद के कारण बाहर चले गए, लेकिन बाद में वह फिर से सपा में शामिल हो गए. वहीं आजम खान कुछ महीने पार्टी से बाहर किए जाने के बाद फिर से सपा में आए और तब से बने हुए हैं.

नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव का निधन (Mulayam Singh Yadav Passes Away) आज 10 अक्टूबर 2022 के मेदांता अस्पताल में निधन हो गया. मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी की स्थापना की थी. समाजवादी पार्टी समाजवादी विचारधारा पर आधारित पार्टी है. इसकी स्थापना की कहानी भी काफी दिलचस्प है. कहा जाता है कि मुलायम सिंह यादव ने जनता दल की हालत को देखकर एक नयी पार्टी बनाने का फैसला तो पहले ही कर लिया था, लेकिन इस पर अमली जामा पहनाने की जरूरत थी. कहा जाता है कि मुलायम सिंह यादव ने वाराणसी के शिवपुर जेल में ही उन्होंने नई पार्टी के गठन की योजना को अंतिम रूप दिया था. अपने साथ जेल में बंद ईशदत्त यादव, बलराम यादव, वसीम अहमद व कुछ अन्य नेताओं से उन्होंने इस संबंध में विस्तार से चर्चा करके अपने मन की बात बतायी थी. इस बात की पुष्टि सपा नेता डॉ. केपी यादव भी करते हैं, जो मुलायम सिंह यादव की गिरफ्तारी के विरोध में जेल गए थे.

राजनीतिक गलियारों से जुड़े जानकार बताते हैं कि 1989 के चुनाव में जनता दल की मजबूत उपस्थिति ने उत्तर प्रदेश के साथ साथ केरल, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और पंजाब जैसे राज्यों में बेहतर परिणाम दिया, लेकिन मुलायम सिंह के यूपी के मुख्यमंत्री के रूप में आने बाद भी जनता दल की गुटबाजी से परेशान दिख रहे थे. वह जनता दल में वीपी सिंह और चंद्रशेखर के नेतृत्व वाली गुटबाजी व लड़ाई के शिकार होते जा रहे थे. इसके लिए वह काफी दिनों से कुछ नया करने की सोचते रहे ताकि इन नेताओं की गुटबाजी के झंझट से मुक्ति मिले. जब 1990 में देश भर में जनता दल का विभाजन हुआ, तो मुलायम सिंह ने वी पी सिंह से अलग होने का फैसला किया और चंद्रशेखर सिंह के साथ समाजवादी जनता पार्टी (एसजेपी) के नेतृत्व वाले गुट में शामिल हो गए. मुलायम सिंह ने 1991 के विधानसभा चुनावों के प्रचार के दौरान कांशीराम के साथ भी सौहार्दपूर्ण संबंध स्थापित किए और धीरे धीरे अपनी एक अलग पार्टी के बारे में सोचने लगे.सपा की स्थापना से पहले मुलायम के पास तीन दशक की सक्रिय व मुख्य धारा की राजनीति का अनुभव था. वह 1967 में पहली बार विधायक बने थे और 1977 में पहली बार मंत्री और 1989 में पहली बार मुख्यमंत्री बने चुके थे. समाजवादी पार्टी बनाने के पहले वह चन्द्रशेखर सिंह की अगुवाई वाली समाजवादी जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के रुप में काम कर रहे थे. इसके बाद उन्होंने अगस्त 1992 में ही समाजवादियों को इकट्ठा कर नया दल बनाने का मन बना लिया और इसकी तेजी से तैयारी भी शुरू की.

बताया जाता है कि इसी बीच सितंबर 92 के आखिरी दिनों में देवरिया जिले के रामकोला में किसानों पर गोली चल गई और इस घटना में 2 लोगों की मौत हो गई थी. इस दौरान मुलायम सिंह यादव लखनऊ से देवरिया के लिए रवाना हुए लेकिन उन्हें गिरफ्तार कर वाराणसी के सेंट्रल जेल शिवपुर में भेज दिया गया. वह किसानों पर हुए अत्याचार से आहत थे और किसानों की आवाज किसी भी राजनीतिक दल के द्वारा उठाने की संभावना न के बराबर दिख रही थी. मुलायम सिंह यादव ने किसानों के हक में किसी राजनीतिक दल के खड़े न होने के कारण वाराणसी के शिवपुर जेल में ही उन्होंने नई पार्टी के गठन की योजना को अंतिम रूप दिया था. अपने साथ जेल में बंद ईशदत्त यादव, बलराम यादव, वसीम अहमद व कुछ अन्य नेताओं से उन्होंने इस संबंध में विस्तार से चर्चा करके अपने मन की बात बतायी थी.

कहा जाता है कि मुलायम सिंह यादव 1989 से 1992 तक जनता दल और चंद्रशेखर की सजपा में मची खींचतान और सत्ता पाने की होड़ के कारण मुलायम सिंह कई महीनों तक उलझन में थे. लेकिन पहले वो वीपी सिंह के नेतृत्व वाली जनता दल से नाता तोड़ कर चंद्रशेखर की समाजवादी जनता पार्टी (सजपा) में शामिल हुए और चंद्रशेखर व कांग्रेस की दोस्ती के कारण कांग्रेस का समर्थन लेकर उत्तर प्रदेश में अपनी सरकार बचायी. लेकिन मुलायम सिंह के साथ साथ कई अन्य समाजवादी नेताओं का तालमेल चंद्रशेखर के साथ भी नहीं बैठ पा रहा था. इसका संकेत तब मिला जब चंद्रशेखर से मतभेदों के कारण जब तत्कालीन संचार मंत्री जनेश्वर मिश्र ने चंद्रशेखर के मंत्रिमंडल से अपना इस्तीफा दे दिया. छोटे लोहिया के नाम से चर्चित जनेश्वर मिश्र मुलायम सिंह यादव के से नजदीकियों में गिने जाते थे.

मुलायम को खटकती थी राजीव गांधी की बात

मुलायम सिंह यादव को कांग्रेस के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री की एक बात खटकती रहती थी. राजीव गांधी बार-बार कहा करते थे कि चंद्रशेखर पुराने कांग्रेसी हैं, और वह कभी भी कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं. इसी बात को लेकर वह बेचैन और खुद को असुरक्षित महसूस करते थे. वह चंद्रशेखर के साथ ज्यादा दिन तक टिककर अपने राजनीतिक भविष्य को और अधिक असुरक्षित नहीं करना चाहते थे. इसीलिए वह एक नयी पार्टी बनाने की उधेड़बुन में लगे रहते थे. एक के बाद एक घटनाक्रम में उन्हें राजीव गांधी की भविष्यवाणी सही दिखायी देने लगती थी.

समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह अपने राजनीति एजेंडे में मुस्लिम को शामिल कर चुके थे. वह राम लहर के खिलाफ दूसरी धारा के बड़े नेता बनने की चाह रखते थे. मुलायम सिंह यादव ने पहली बार 30 अक्टबूर 1990 को कारसेवकों पर गोली चलाने की घटना में 5 कार सेवकों की मौत हुई थी. इसके बाद वहां तनाव बना रहा. तीन दिन बाद 2 नवंबर को सुबह का वक्त था अयोध्या के हनुमान गढ़ी के सामने लाल कोठी के सकरी गली में कारसेवक बढ़े चले आ रहे थे. पुलिस ने सामने से आ रहे कारसेवकों पर फायरिंग कर दी, जिसमें करीब दो दर्जन लोगों की मौत होने की बता कही जाती है. इसी दौरान ही कोलकाता से आए कोठारी बंधुओं की भी मौत हुई थी. इसीलिए 1990 के गोलीकांड के बाद हुए विधानसभा चुनाव में मुलायम सिंह बुरी तरह चुनाव हार गए और कल्याण सिंह सूबे के नए मुख्यमंत्री बनकर उभरे, कल्याण सिंह को हिंदुत्व का समर्थन करने वाले नेता कहा जाने लगा तो वहीं मुलायम को ''मुल्ला मुलायम' की उपाधि मिल गयी. कारसेवकों पर गोली चलाने के आदेश के कारण उन्हें हिन्दू विरोधी नेता कहा जाने लगा था.

Samajwadi Party in Loksabha
सपा का लोकसभा में प्रदर्शन

राजनीतिकर गलियारों की चर्चाओं के अनुसार, राजीव की मृत्यु के बाद चंद्रशेखर तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव के काफी करीब होते चले गए. वह प्रधानमंत्री नरसिंह राव के घर अक्सर चाय पीने के बहाने मिलने जाया करते थे. इतना ही नहीं राव सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर उनके चार में से तीन सांसदों ने वोट ही नहीं दिया था. राव व कांग्रेस के हिमायती बनते जा रहे चंद्रशेखर को अकेले छोड़कर मुलायम सिंह यादव ने अपना अलग रास्ता ढूंढ़ने का फैसला कर लिया.

देवीलाल, चंद्रशेखर, वीपी सिंह को करारा जवाब

सपा नेता बताते हैं कि मुलायम सिंह यादव दारुलशफा स्थित अपने मित्र भगवती सिंह के विधायक आवास पर जाकर साथियों के साथ लंबी बैठकें किया करते थे और भविष्य की रूपरेखा भी तैयार करते थे. उनके कई साथियों ने पार्टी बनाने व चलान के तमाम उदाहरण देकर डराने की भी कोशिश की. सहयोगियों ने कहा कि अकेले पार्टी बनाना आसान नहीं है और अगर पार्टी बन भी गई तो उसे चलाना आसान नहीं होगा. फिर भी मुलायम सिंह यादव ने अपना मन बना लिया था.

मुलायम सिंह यादव बोले-

"भीड़ हम उन्हें जुटाकर देते हैं और पैसा भी. फिर वे (देवीलाल, चंद्रशेखर, वीपी सिंह आदि) हमें बताते हैं कि क्या करना है, क्या बोलना है. अब हम अपना रास्ता खुद बनाएंगे."

आखिरकार सितंबर 1992 के खत्म होते होते मुलायम सिंह ने सजपा से नाता तोड़ लिया और 4 अक्टूबर 1992 को लखनऊ में उन्होंने समाजवादी पार्टी बनाने की घोषणा कर दी. इसके बाद 4 और 5 नवंबर को बेगम हजरत महल पार्क में उन्होंने पार्टी का पहला राष्ट्रीय अधिवेशन आयोजित किया गया , जिसमें मुलायम सिंह यादव को समाजवादी पार्टी का अध्यक्ष, जनेश्वर मिश्र को उपाध्यक्ष, कपिल देव सिंह और मोहम्मद आज़म खान को महामंत्री बनाकर पार्टी की आधिकारिक शुरुआत कर दी गयी. इस पार्टी के प्रवक्ता के रुप में मोहन सिंह को जिम्मेदारी दी गयी. यहां पर बेनी प्रसाद वर्मा कोई पद नहीं मिला और वह रूठकर घर में बैठ गए. वह सम्मेलन में भी नहीं आए. फिर मुलायम सिंह ने उन्हें घर जाकर मनाने की कोशिश की और सम्मेलन में लेकर आए.

Samajwadi Party in up Assembly elections
सपा का प्रदर्शन

तब से लेकर अब तक पार्टी ने लगभग 30 सालों का सफर तय किया है और इस दौरान तमाम तरह के प्रयोग भी हुए और कई बार पार्टी सत्ता में आयी. अब यह पार्टी मुलायम सिंह के बेटे अखिलेश के हाथों में है और इनका मार्गदर्शन प्रोफेसर राम गोपाल यादव सहित पार्टी के अन्य बड़े नेता कर रहे हैं, लेकिन पार्टी के कई नेता किनारा भी कर चुके हैं. पार्टी के बड़े नेताओं में नरेश अग्रवाल, अनिल राजभर, मनोज तिवारी, राजब्बर, जयाप्रदा, अमर सिंह जैसे नेता पार्टी में आकर चले गए. वहीं बेनी प्रसाद वर्मा व आजम खान पार्टी में पहले दिन से साथ रहकर काम किया और फिर मतभेद के कारण बाहर चले गए, लेकिन बाद में वह फिर से सपा में शामिल हो गए. वहीं आजम खान कुछ महीने पार्टी से बाहर किए जाने के बाद फिर से सपा में आए और तब से बने हुए हैं.

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