रायपुर/हैदराबाद: हसदेव अरण्य में कोयला खनन के मुद्दे पर छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल और केंद्र सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहा है. अब इस मुद्दे पर राहुल गांधी भी सवालों के घेरे में हैं. हसदेव अरण्य का मुद्दा अब छत्तीसगढ़ से निकलकर विदेशों में भी गूंज रहा है. लंदन की कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में यह मसला उठा है. राहुल गांधी जब कैंब्रिज विश्वविद्यालय में पहुंचे तो वहां के छात्रों ने उनसे इस मुद्दे पर सवाल कर दिया. राहुल गांधी ने लंदन में हसदेव अरण्य पर कहा कि इस मुद्दे पर वह पार्टी के अंदर बात कर रहे हैं. इसका जल्द ही समाधान होगा.
कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के कार्यक्रम में पहुंचे थे राहुल गांधी: कांग्रेस सांसद राहुल गांधी लंदन के कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में सोमवार 23 मई को पहुंचे थे. यहां कॉर्पस क्रिस्टी कॉलेज में इंडिया @ 75 नाम का संवाद कार्यक्रम हुआ. इस कार्यक्रम में राहुल गांधी के साथ वहां के छात्रों ने चर्चा की. चर्चा के दौरान वहां मौजूद भारतीय मूल के छात्रों ने हसदेव अरण्य पर राहुल गांधी से सवाल पूछ लिया.
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A follow up question for you @RahulGandhi:
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If you are really standing up for Adivasi rights and are against coal mining in Hasdeo Forest, how come ANOTHER coal block in the forest is now being considered?
Stop the madness! #SaveHasdeo and Adivasi rights@INCIndia @bhupeshbaghel https://t.co/wpG0ty1Bnb
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कांग्रेस की सरकार होते हुए हसेदव अरण्य में क्यों मिली खनन की अनुमति: लंदन की कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में XR यूथ कैंब्रिज से ताल्लुक रखने वाले छात्र ने हसदेव अरण्य में कोयला खनन की अनुमति को लेकर राहुल गांधी पर सवालों की झड़ी लगा दी. स्टूडेंट्स ने पूछा कि साल 2015 में आपने हसदेव अरण्य क्षेत्र के आदिवासियों से वादा किया था कि आप उनके अधिकारों की रक्षा और इस क्षेत्र में कोयला खनन के खिलाफ उनके साथ खड़े रहेंगे. लेकिन छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद यहां पर कोयला खनन की अनुमति दी गई. खदानों के विस्तार को मंजूरी मिली और यहां वनों की कटाई हुई है. ये सब कैसे हुआ है. राहुल गांधी ने छात्र के सवाल पर कहा कि वह जल्द ही इस मुद्दे पर कांग्रेस पार्टी के भीतर बात करेंगे. राहुल गांधी ने कहा जल्द ही इस मुद्दे पर कोई न कोई नतीजा निकलेगा.
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हसदेव अरण्य क्या है ?: छत्तीसगढ़ में हसदेव अरण्य कोरबा, सरगुजा और सूरजपुर जिले का वो जंगल है, जो मध्यप्रदेश के कान्हा के जंगलों से झारखंड के पलामू के जंगलों को जोड़ता है. यह मध्य भारत का सबसे समृद्ध वन है. हसदेव नदी भी खदान के कैचमेंट एरिया में है. हसदेव नदी पर बना मिनी माता बांगो बांध जिससे बिलासपुर, जांजगीर-चांपा और कोरबा के खेतों और लोगों को पानी मिलता है. इस जंगल में हाथी समेत 25 वन्य प्राणियों का रहवास और उनके आवागमन का क्षेत्र है.
हसदेव अरण्य में खनन से क्यों है आपत्ति ?: वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 2010 में हसदेव अरण्य में खनन प्रतिबंधित रखते हुये, इसे नो-गो एरिया घोषित किया था. लेकिन बाद में इसी मंत्रालय के वन सलाहकार समिति ने अपने ही नियम के खिलाफ जाकर यहां परसा ईस्ट और केते बासेन कोयला परियोजना को वन स्वीकृति दे दी थी. समिति की स्वीकृति को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने निरस्त भी कर दिया था. हसदेव अरण्य छत्तीसगढ़ में सरगुजा और कोरबा के सरहदी इलाके में एक लाख 70 हजार हेक्टेयर में फैला विशाल और घना जंगल है. इस क्षेत्र में बहुत से कोल ब्लॉक है. केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने जुलाई 2019 में यहां परसा कोयला खदान को पर्यावरणीय मंजूरी प्रदान की थी. जिसका लगातार यहां के लोग विरोध कर रहे हैं
हसदेव अरण्य में कोल ब्लॉक का आवंटन और स्वीकृति की कहानी : हसदेव अरण्य के जिस परसा और केते एक्सटेंसन कोल ब्लॉक के स्वीकृति को लेकर सरकारों के बीच घमासान चल रहा है. वहां के परसा कोल ब्लॉक से सालाना 5 मिलियन टन कोयले के उत्पादन का लक्ष्य है. जहां से 45 साल तक पावर प्लांटों को कोयला मिलेगा. केंद्र सरकार ने इसकी नीलामी की थी. तब राजस्थान सरकार के विद्युत कंपनी ने इसे खरीद लिया था. जहां उत्खनन प्रारंभ करने के लिए राजस्थान सरकार ने अडानी समूह के साथ एमडीओ भी साइन कर लिया है.केंद्र सरकार द्वारा अनुमति प्रदान किए जाने के बाद राज्य सरकार ने इस प्रोजेक्ट को वन स्वीकृति प्रदान नहीं की थी. जिसके बाद अप्रैल 2022 महीने में ही राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत छत्तीसगढ़ आए थे. फिर गहलोत के अनुरोध पर इसे बघेल सरकार ने अप्रैल 2022 महीने के दूसरे सप्ताह में अनुमति दे दी
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भारतीय वन्य जीव संस्थान ने भी जताया था एतराज: भारतीय वन्य जीव संस्थान ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पहले से संचालित खदानों को नियंत्रित तरीके से चलाना होगा. इसके साथ ही सम्पूर्ण हसदेव अरण्य क्षेत्र को नो गो एरिया घोषित किया गया. इसके साथ ही इस रिपोर्ट में यह चेतावनी भी है कि अगर खनन परियोजनाओं को स्वीकृति दी गई, तो मानव हाथी संघर्ष को संभालना लगभग नामुमकिन हो जायेगा.
राहुल गांधी को छत्तीसगढ़ के ग्रामीण याद दिला रहे वादा: हसदेव अरण्य पर घमासान साल 2014 से जारी है. साल 2015 में जब राहुल गांधी हसदेव अरण्य के गावं मदनपुर आये थे. तब राहुल गांधी ने ग्रामीणों से जंगल बचाने का वादा किया था. लेकिन अब उनके मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कहते हैं कि प्रदेश को तय करना होगा की उन्हें बिजली चाहिये या नहीं. अब ग्रामीण राहुल गांधी का वो वादा याद दिला रहे हैं. हसदेव अरण्य को बचाने का आंदोलन अब विदेश में भी पहुंच गया है. कई संगठन और पर्यावरण से जुड़ी संस्थाएं इस जंगल को बचाने की मांग कर रहे हैं.