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Odisha Train Tragedy: पिता ने फरिश्ता बनकर बचाई बेटे की जान, मुर्दाघर से निकालकर दी नई जिंदगी

ओडिशा के बालासोर ट्रेन हादसे में कई परिवारों ने अपनों को खोया है. मौतों की संख्या 288 हो चुकी है, जिनमें से कई शवों की पहचान करना मुश्किल हो रहा है. पश्चिम बंगाल से एक पिता भी अपने बेटे की तलाश में बालासोर पहुंचा और जब वह मुर्दाघर जाकर बेटे की पहचान करने लगे तो वह जीवित मिला.

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Published : Jun 6, 2023, 9:06 PM IST

कोलकाता : ओडिशा के बालासोर में दो जून की शाम को हुए भयावह ट्रेन हादसे में मौतों की संख्या 288 हो चुकी है. शवों की पहचान करना मुश्किल ही नहीं, नामुमकीन हो गया है. यह भी देखा गया है कि दो परिवार एक लाश पर दावा करने पहुंच जाते हैं. ऐसे में पश्चिम बंगाल के हावड़ा जिले में रहने वाले हेलाराम मलिक भी अपने बेटे की तलाश में 253 किलोमीटर सफर करने के बाद ओडिशा के बालासोर जिले पहुंचे. यहां पहुंचने के बाद हेलाराम मुर्दाघर में पड़े अपने बेटे की पहचान करने पहुंच गए, लेकिन यहां हेलाराम ने अपने बेटे को मौत के मुंह से निकालकर नई जिंदगी बख्श दी. मलिक ने अपने 24 साल के बेटे विश्वजीत को बाहानगा हाई स्कूल में बने अस्थायी मुर्दाघर से निकाला और बालासोर अस्पताल ले गए, इसके बाद वह उसे कोलकाता के एसएसकेएम अस्पताल ले आए. विश्वजीत की कई हड्डियों में चोट लगी थी और यहां एसएसकेएम अस्पताल के ट्रॉमा केयर सेंटर में उसकी दो सर्जरी की गईं.

हावड़ा में किराना की दुकान चलाने वाले हेलाराम ने कहा, "मैंने टीवी पर खबर देखी, तो मुझे लगा कि विश्वजीत को फोन करके पूछना चाहिए कि वह सही है या नहीं. शुरुआत में तो उसने फोन नहीं उठाया, लेकिन जब उठाया तो, मुझे दूसरी ओर से मुरझाई हुई सी आवाज सुनाई दी." दुर्घटना वाली रात (दो जून) को ही हेलाराम और उनके बहनोई दीपक दास एक एम्बुलेंस में बालासोर के लिए रवाना हो गए. हेलाराम ने कहा, "हम उसका पता नहीं लगा पाए, क्योंकि उसके मोबाइल फोन पर की जा रहीं कॉल का कोई जवाब नहीं मिल रहा था. हम कई अस्पताल गए, लेकिन विश्वजीत का कोई पता नहीं चल पाया. इसके बाद हम बाहानगा हाईस्कूल में बने अस्थायी मुर्दाघर पहुंचे, लेकिन शुरुआत में हमें उसमें जाने नहीं दिया गया. देखते ही देखते कुछ लोगों में कहासुनी हो गई और फिर हंगामा खड़ा हो गया. अचानक मुझे एक हाथ दिखा और मुझे पता था कि यह मेरे बेटे का हाथ है. वह जिंदा था."

हेलाराम बिना वक्त गंवाए अपने लगभग बेसुध बेटे को बालासोर अस्पताल ले गए, जहां उसे कुछ इंजेक्शन लगाने के बाद कटक मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल भेज दिया गया. हेलाराम ने कहा, "उसके शरीर में कई फ्रैक्चर थे और वह कुछ बोल नहीं पा रहा था. मैंने वहां एक बांड पर हस्ताक्षर किए और सोमवार सुबह विश्वजीत को एसएसकेएम अस्पताल के ट्रॉमा केयर सेंटर ले आया." एसएसकेएम अस्पताल के एक डॉक्टर से जब यह पूछा गया कि लोगों ने विश्वजीत को मृत क्यों समझ लिया था, तो उन्होंने कहा कि विश्वजीत के शरीर ने शायद हरकत करनी बंद कर दी होगी, जिसकी वजह से लोगों ने समझ लिया कि उसकी मौत हो चुकी है.

पढ़ें : Odisha Train Accident: चेतावनी पर नहीं दिया ध्यान, 3 महीने पहले सिग्नलन सिस्टम में आई थी खराबी

हेलाराम ने कहा, "मैं अपने बेटे को वापस पाने के लिए भगवान का शुक्रिया अदा करता हूं. जब मैंने सुना कि विश्वजीत की मौत हो चुकी है, तो मेरे दिमाग में जो चल रहा था, मैं समझा नहीं सकता. मैं यह मानने के लिए तैयार नहीं था कि वह अब इस दुनिया में नहीं है और उसे ढूंढता रहा." विश्वजीत ने अस्पताल के बिस्तर से पीटीआई-भाषा से कहा, "मुझे नया जीवन मिला है. मैं अपने पिता का कर्जदार हूं. वह मेरे लिए भगवान हैं और उन्हीं की वजह से मुझे यह जिंदगी वापस मिली है. मेरे लिए बाबा ही सबकुछ हैं."

बता दें कि विश्वजीत कोरोमंडल एक्सप्रेस में सफर कर रहा था, जो दो जून को शाम सात बजे एक मालगाड़ी से टकरा गई थी, जिसके बाद उसके ज्यादातर डिब्बे पटरी से उतर गए थे. उसी समय वहां से गुजर रही बेंगलुरु हावड़ा एक्सप्रेस के कुछ डिब्बे भी कोरोमंडल एक्सप्रेस से टकराने के बाद पटरी से उतर गए थे. इस दुर्घटना में कुल 288 यात्रियों की मौत हुई है, जबकि 1,200 से अधिक लोग घायल हुए हैं.

(पीटीआई-भाषा)

कोलकाता : ओडिशा के बालासोर में दो जून की शाम को हुए भयावह ट्रेन हादसे में मौतों की संख्या 288 हो चुकी है. शवों की पहचान करना मुश्किल ही नहीं, नामुमकीन हो गया है. यह भी देखा गया है कि दो परिवार एक लाश पर दावा करने पहुंच जाते हैं. ऐसे में पश्चिम बंगाल के हावड़ा जिले में रहने वाले हेलाराम मलिक भी अपने बेटे की तलाश में 253 किलोमीटर सफर करने के बाद ओडिशा के बालासोर जिले पहुंचे. यहां पहुंचने के बाद हेलाराम मुर्दाघर में पड़े अपने बेटे की पहचान करने पहुंच गए, लेकिन यहां हेलाराम ने अपने बेटे को मौत के मुंह से निकालकर नई जिंदगी बख्श दी. मलिक ने अपने 24 साल के बेटे विश्वजीत को बाहानगा हाई स्कूल में बने अस्थायी मुर्दाघर से निकाला और बालासोर अस्पताल ले गए, इसके बाद वह उसे कोलकाता के एसएसकेएम अस्पताल ले आए. विश्वजीत की कई हड्डियों में चोट लगी थी और यहां एसएसकेएम अस्पताल के ट्रॉमा केयर सेंटर में उसकी दो सर्जरी की गईं.

हावड़ा में किराना की दुकान चलाने वाले हेलाराम ने कहा, "मैंने टीवी पर खबर देखी, तो मुझे लगा कि विश्वजीत को फोन करके पूछना चाहिए कि वह सही है या नहीं. शुरुआत में तो उसने फोन नहीं उठाया, लेकिन जब उठाया तो, मुझे दूसरी ओर से मुरझाई हुई सी आवाज सुनाई दी." दुर्घटना वाली रात (दो जून) को ही हेलाराम और उनके बहनोई दीपक दास एक एम्बुलेंस में बालासोर के लिए रवाना हो गए. हेलाराम ने कहा, "हम उसका पता नहीं लगा पाए, क्योंकि उसके मोबाइल फोन पर की जा रहीं कॉल का कोई जवाब नहीं मिल रहा था. हम कई अस्पताल गए, लेकिन विश्वजीत का कोई पता नहीं चल पाया. इसके बाद हम बाहानगा हाईस्कूल में बने अस्थायी मुर्दाघर पहुंचे, लेकिन शुरुआत में हमें उसमें जाने नहीं दिया गया. देखते ही देखते कुछ लोगों में कहासुनी हो गई और फिर हंगामा खड़ा हो गया. अचानक मुझे एक हाथ दिखा और मुझे पता था कि यह मेरे बेटे का हाथ है. वह जिंदा था."

हेलाराम बिना वक्त गंवाए अपने लगभग बेसुध बेटे को बालासोर अस्पताल ले गए, जहां उसे कुछ इंजेक्शन लगाने के बाद कटक मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल भेज दिया गया. हेलाराम ने कहा, "उसके शरीर में कई फ्रैक्चर थे और वह कुछ बोल नहीं पा रहा था. मैंने वहां एक बांड पर हस्ताक्षर किए और सोमवार सुबह विश्वजीत को एसएसकेएम अस्पताल के ट्रॉमा केयर सेंटर ले आया." एसएसकेएम अस्पताल के एक डॉक्टर से जब यह पूछा गया कि लोगों ने विश्वजीत को मृत क्यों समझ लिया था, तो उन्होंने कहा कि विश्वजीत के शरीर ने शायद हरकत करनी बंद कर दी होगी, जिसकी वजह से लोगों ने समझ लिया कि उसकी मौत हो चुकी है.

पढ़ें : Odisha Train Accident: चेतावनी पर नहीं दिया ध्यान, 3 महीने पहले सिग्नलन सिस्टम में आई थी खराबी

हेलाराम ने कहा, "मैं अपने बेटे को वापस पाने के लिए भगवान का शुक्रिया अदा करता हूं. जब मैंने सुना कि विश्वजीत की मौत हो चुकी है, तो मेरे दिमाग में जो चल रहा था, मैं समझा नहीं सकता. मैं यह मानने के लिए तैयार नहीं था कि वह अब इस दुनिया में नहीं है और उसे ढूंढता रहा." विश्वजीत ने अस्पताल के बिस्तर से पीटीआई-भाषा से कहा, "मुझे नया जीवन मिला है. मैं अपने पिता का कर्जदार हूं. वह मेरे लिए भगवान हैं और उन्हीं की वजह से मुझे यह जिंदगी वापस मिली है. मेरे लिए बाबा ही सबकुछ हैं."

बता दें कि विश्वजीत कोरोमंडल एक्सप्रेस में सफर कर रहा था, जो दो जून को शाम सात बजे एक मालगाड़ी से टकरा गई थी, जिसके बाद उसके ज्यादातर डिब्बे पटरी से उतर गए थे. उसी समय वहां से गुजर रही बेंगलुरु हावड़ा एक्सप्रेस के कुछ डिब्बे भी कोरोमंडल एक्सप्रेस से टकराने के बाद पटरी से उतर गए थे. इस दुर्घटना में कुल 288 यात्रियों की मौत हुई है, जबकि 1,200 से अधिक लोग घायल हुए हैं.

(पीटीआई-भाषा)

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