शिमला: विलुप्त हो रही प्रजाति चीड़ फिजेंट (Endangered Cheer pheasant) को बचाने के लिए हिमाचल में एक बड़ा प्रोजेक्ट चलाया जा रहा है. इस प्रोजेक्ट के तहत चीड़ फिजेंट को फिजेंटरी (पक्षीशाला) में तैयार करने के बाद अब इन्हें जंगलों में छोड़ा जा रहा है, ताकि इनकी संख्या बढ़ सके. इसी प्रोजेक्ट के तहत अब वन विभाग ने 9 चीड़ फिजेंट को शिमला के साथ लगते चियोग के शिल्ली मैहला जंगल में छोड़ा है. यह तीसरी दफा है जब वन विभाग इन परिंदों को जंगल के प्राकृतिक वातारवण में प्रजनन के लिए छोड़ा है. (Pheasant birds released in Shilli forest of Theog) (Cheer pheasant bird in Himachal)
जंगल में खुला छोड़ने से पहले इनको यहां एक बाड़े में रखा गया था. जहां करीब ढाई से अधिक समय तक इनकी गतिविधियों पर नजर रखी गई. इस दौरान उनको जंगल में उगने वाली जड़ी-बूटियों और अन्य वनस्पतियों का आदी बनाया गया. इसके साथ ही फिजेंट को जंगली जानवरों के खतरों से भी अवगत करवाया गया. जिसके बाद अब 2 जोड़े व्यस्क (4 व्यस्क) और 5 छोटे परिदों को जंगल में छोड़ा गया हैं. (Cheer pheasant breeding in Himachal)
रेडियो कॉलर लगाकर की जा रही है ट्रैकिंग: जंगल में छोड़े गए चीड़ फिजेंट की वन विभाग द्वारा ट्रैकिंग की जा रही है. इसके लिए इनमें रेडियो कॉलर लगाए गए हैं, जिससे इनकी लोकेशन का पता चलता रहे. इसके लिए विभाग की ओर से जंगल में कर्मचारियों को तैनात किया गया है. करीब एक साल तक इन फिजेंट पर नजर रखी जाएगी. जंगल में जानवरों का खतरा रहता है, जो कि इन परिंदों को अपना शिकार बना सकते हैं. ऐसे में चीड़ फिजेंट की लगातार मॉनीटरिंग की जा रही है. (cheer pheasant birds)
पहले भी जंगल में छोड़े गए थे 18 फिजेंट: चीड़ फिजेंट को बचाने की पहल हिमाचल में चल रही है. इससे पहले साल 2019 के अक्टूबर महीने में वन विभाग ने 18 चीड़ फिजेंट जंगल में छोड़े थे. जिसमें 6 बड़े और 12 छोटे फिजेंट थे. जिनकी एक साल तक ट्रैकिंग की जाती रही. इनमें 2 व्यस्कों की ट्रैकिंग होती रही. हालांकि छोटे परिंदों में रेडियो कॉलर नहीं लगाया जाता है. यह माना जाता है कि वे व्यस्कों के साथ ही रहते हैं. इसके एक साल बाद अक्टूबर 2020 में भी चीड़ फिजेंट को फिर से सेरी जंगल में छोड़ा गया था. वन विभाग तब 11 चीड़ फिजेंट जंगल में छोड़े थे. जिनमें दो जोड़े यानि 4 व्यस्क थे, जबकि 7 छोटे परिंदे थे. इनमें भी दो व्यस्क फिजेंट की एक साल तक ट्रैकिंग होती रही.
20 फीसदी से अधिक सर्वाइवल रेट: एडिशनल प्रिंसिपल चीफ कंजरवेटर ऑफ फॉरेस्ट (वाइल्ड लाइफ) अनिल ठाकुर का कहना है कि चीड़ फिजेंट को जंगल में छोड़ने का मकसद इनकी नैचुरल ब्रीडिंग करवाना है, ताकि इनकी संख्या बढ़ सके. पूर्व में दो बार जंगल में छोड़ना की मुहिम सफल रही है. इनका सर्वाइल रेट या जीवित रहने की दर 20 फीसदी से अधिक है, जो कि सफल मानी जाती है. इस बार विभाग ने शिल्ली मैहला जंगल में 9 फिजेंट जंगल में छोड़े हैं. इन परिदों की रेडियो कॉलर से निगरानी की जा रही है.
विलुप्त की कगार पर है चीड़ फिजेंट: अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ आईसीयूएन की रेड डाटा बुक में शामिल चीड़ फिजेंट के संरक्षण के लिए हिमाचल में एक प्रोजेक्ट चलाया जा रहा है. साल 2008 से चायल स्थित खड़ीऊण फिजेंटरी में चीड़ फिजेंट के संरक्षण का यह प्रोजेक्ट चल रहा है. प्रोजेक्ट का मकसद इनकी संख्या बढ़ाना और इसके लिए इनको जंगलों में छोड़ना है. जिससे कि ये नैचुरल ब्रीडिंग कर अपनी संख्या जंगलों में बढ़ा सके. चीड़ फिजेंट विलुप्त होने की कगार पर है, जिसकी संख्या लगातार घट रही है. इसके चलते इनके संरक्षण किया जा रहा है. वर्तमान में इस फिजेंटरी में 66 फिजेंट हैं, जिनमें 22 नर, 39 मादा और 5 चूजे हैं. (Endangered bird species in Himachal) (Endangered bird Cheer Pheasant)
नेपाल और पाकिस्तान में भी पाया जाता है चीड़ फिजेंट: विलुप्त होने की कगार पर दुर्लभ प्रजाति के पक्षी चीड़ फिजेंट भारत के अलावा नेपाल और पाकिस्तान के हिमालयी क्षेत्र में 1500-3000 हजार मीटर के बीच की ऊंचाई पर पाया जाता है. यह मुख्यतः पश्चिमी नेपाल, उतराखंड, हिमाचल और जम्मू कश्मीर में पाया जाता है. पाकिस्तान के हजारा, खेबर, पखतुनखवा में भी यह पक्षी रहता है. इस प्रजाति के नर और मादा एक समान दिखते है. विश्व में फीजेंट की 51, भारत में 17, जबकि प्रदेश में 7 प्रजातियां पाई जाती हैं. प्रजनन के मौसम के दौरान मादा चीड़ 5 से 10 अंडे (कभी-कभी 12) तक देती है और लगभग 28 दिनों से उन्हें सेती है. नर और मादा दोनों ही अगले प्रजनन काल तक चूजों की देखभाल करते हैं.
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