हैदराबाद : पंचशील सिद्धान्तों पर सहमति जताने के बावजूद चीन ने भारत की पीठ में छूरा भोंका था. आठ सितंबर 1962 को चीन ने मैकमोहन लाइन पार कर भारतीय चौकियों पर हमला कर दिया था. चीन ने नेफा (आज का अरुणाचल प्रदेश) के कई इलाकों को अपने मैप पर दिखाया था. भारत ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई थी. चीन के तत्कालीन पीएम झाऊ एनलाई और भारत के तत्कालीन पीएम प. जवाहर लाल नेहरू के बीच बातचीत हुई, इसके बावजूद चीन ने धोखे की राजनीति अपनाई.
चीन बार-बार दावा कर रहा था कि दोनों देशों के बीच बातचीत होनी चाहिए. और वह इस तरह से भारत को बातों में उलझाता रहा. चीन ने बहुत ही सोची-समझी रणनीति के तहत भारत को बातचीत में उलझाया था. इसकी आड़ में अपने सैनिकों को सीमा पर जुटाता रहा. वह युद्ध की तैयारी में व्यस्त था. भारतीय राजनीतिक नेतृत्व ने कभी भी इसकी कल्पना ही नहीं की थी कि चीन ऐसा करेगा.
आप अंदाजा लगा सकते हैं कि छह दिसंबर 1950 को भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने संयुक्त राष्ट्र में चीन की सदस्यता की वकालत की थी. इससे पहले कोरिया युद्ध के दौरान भी नवंबर 1950 में भारत चीन के पक्ष में मजबूती के साथ खड़ा था. संयुक्त राष्ट्र में भारत ने चीन के पक्ष में आवाज उठाई थी. इसके बावजूद चीन ने भारत के साथ छल किया.
कैसे शुरू हुई थी तनाव की शुरुआत
दरअसल, दोनों देशों के बीच छोटे-छोटे मुद्दे सामने आ रहे थे. लेकिन तिब्बत पर चीन के कब्जे से पहले जब दलाई लामा वहां से भागे, तो उन्होंने भारत में शरण ली थी. इससे चीन बौखला गया. वह भारत के प्रति अधिक आक्रामक हो गया. 1959 से लेकर 1962 तक छोटे स्तर पर कई संघर्ष हुए.
दोनों देशों के बीच किस तरह से घटनाक्रम बदला, इस पर एक नजर डालें.
भारत-चीन : 1950 से 1962 तक के घटनाक्रम पर एक नजर
01 अप्रैल 1950 : भारत ने केएम पानिकर को चीन में अपना पहला राजदूत नियुक्त किया.
अक्टूबर 1950 : चीन तिब्बत की सीमा में घुसा, ल्हासा की ओर चीनी सैनिक बढ़ने लगे.
नवंबर 1950 : कोरिया युद्ध के दौरान संयुक्त राष्ट्र में भारत ने चीन के पक्ष में आवाज उठाई. यूएन के प्रस्ताव में पेइचिंग को आक्रमणकारी घोषित किया गया था.
06 दिसंबर 1950 : देश के पहले प्रधानमंत्री प. जवाहरलाल नेहरू ने यूएन में चीन की सदस्यता की वकालत की
मई 1951 : तिब्बत चीन के पूरे नियंत्रण में आ गया.
15 मई 1954 : भारत और चीन के बीच ऐतिहासिक पंचशील समझौता.
जून 1954 : चीन के पहले प्रधानमंत्री का भारत दौरा. झाऊ एनलाई चीन के पीएम थे. पंचशील सिद्धान्तों को दोहराया.
फरवरी 1955 : भारत ने ताइवान पर चीन के आधिपत्य को स्वीकार कर लिया.
02 मार्च 1955 : पहली बार चीन और भारत के बीच तल्खी. चीन ने अपने मैप पर भारत के पूर्वोत्तर के कुछ इलाकों को दिखाया.
नवंबर 1956 : झाऊ एनलाई दोबारा भारत आए.
04 सितंबर 1958 : भारत ने आधिकारिक रूप से मैप पर आपत्ति जताई. मैप में नेफा (अरुणाचल प्रदेश) और उत्तरी असम को चीन का हिस्सा दिखाया गया था.
23 जनवरी 1959 : चीन ने औपचारिक रूप से भारत के कुछ क्षेत्रों पर दावा किया.
मार्च 1959 : दलाई लामा तिब्बत से निकल गए. उन्होंने भारत में शरण ली. चीन बौखला गया.
25 अगस्त 1959 : चीनी सैनिकों ने लद्दाख स्थित भारतीय चौकियों पर हमला किया.
08 सितंबर 1959 : चीन ने साफ किया कि वह मैकमोहन लाइन को नहीं मानता है.
20 अक्टूबर 1959 : अक्साई चीन में चीनी सैनिकों की गोलीबारी में नौ भारतीय जवानों की शहादत.
07 नवंबर 1959: झाऊ इनलाई ने मैकमोहन लाइन से 20 किलोमीटर पीछे हटने का प्रस्ताव रखा. भारत से भी ऐसी ही अपेक्षा की.
19 अप्रैल 1960 : नेहरू और इनलाई के बीच तीसरी बार बातचीत हुई.
25 अप्रैल 1960 : चीन ने विवादित क्षेत्रों पर भारत के दस्तावेज को अस्वीकार कर दिया.
03 जून 1960 : नेफा में चीनी सैनिकों ने सीमा लांघी.
31 अक्टूबर 1961: सीमा पर चीनी सैनिक आक्रामक हो गए.
नवंबर 1961 : भारत ने फॉरवर्ड नीति अपनाई. यानी आगे बढ़कर हमला करना.
अप्रैल 1962 : चीन बौखलाया. भारत से सैनिकों को वापस लौटाने को कहा.
10 जून 1962 : दोनों देशों के सैनिक आमने-सामने खड़े थे.
08 सितंबर 1962 : चीनी सैनिकों ने मैकमोहन लाइन क्रॉस की. भारतीय चौकियों पर हमला किया.
13 सितंबर, 1962 : चीन ने 20 किलोमीटर पीछे लौटने का प्रस्ताव दिया. लेकिन खुद उसका पालन नहीं किया.
20 सितंबर 1962 : चीनी सैनिकों ने नेफा में भारतीय चौकियों पर फिर से हमला कर दिया.
20 अक्टूबर 1962 : लद्दाख की सीमा की ओर से भी चीन का हमला.
24 अक्टूबर 1962 : चीन ने संघर्षविराम की घोषणा की, लेकिन खुद ही उसे तोड़ भी दिया.
26 अक्टूबर 1962 : भारत ने इमरजेंसी घोषित किया.
15 नवंबर 1962 : चीन ने फिर किया विश्वासघात, पूर्वी और पश्चिमी क्षेत्रों पर किया हमला.
18 नवंबर 1962 : चीन का नेफा के बोमडिला पर कब्जा.
08 दिसंबर, 1962 : दोनों देशों के बीच संघर्षविराम की घोषणा.
10 दिसंबर 1962 : दोनों देशों के बीच कोलंबो प्रस्ताव पर सहमति.
भारत और चीन के बीच युद्ध को लेकर कई किताबें लिखी गई हैं. सबका अपना-अपना नजरिया है. एक किताब सीआईए के एक पूर्व अधिकारी ब्रूस रिडेल ने भी लिखी है. इसमें उन्होंने दावा किया कि चीन के संस्थापक माओ त्से तुंग ने नेहरू को नीचा दिखाने के लिए यह युद्ध किया था.
उनके अनुसार क्योंकि उस समय नेहरू तीसरी दुनिया के देशों में बहुत अधिक लोकप्रिय हो रहे थे, इसलिए उनकी छवि को धक्का पहुंचाने के लिए चीन ने जाल बुना था.
'जेएफकेज फॉर्गेटन क्राइसिस-तिब्बत, सीआईए एंड इंडो-चाइना वार' में लिखा गया है कि भारत की फॉरवर्ड नीति से चीन भड़क गया था. इतना नही नहीं, नवंबर 1962 में भारत ने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति को भी पत्र लिखा था. उनसे परिवहन और लड़ाकू विमानों की मांग की थी. इसमें बी-47 बम वर्षक विमान भी शामिल है. नेहरू ने ब्रिटिश पीएम को भी चिट्ठी लिखी थी.
भारत की बदलती नीति की वजह से चीन ने तुरंत ही युद्ध विराम की घोषणा कर दी.
नेहरू ने भी युद्ध के बाद संसद में बयान दिया था. उन्होंने कहा था कि हम आधुनिक दुनिया की सच्चाई से दूर हो गए थे और हम एक बनावटी माहौल में रहने लगे थे, जिसे हमने ही तैयार किया था.
जब भी भारत और चीन के बीच 1962 के युद्ध की बात होती है, तो तत्कालीन रक्षा मंत्री कृष्ण मेनन और तब के लफ्टिनेंट जनरल बीएम कौल का नाम बार-बार सामने आता है. कौल पूर्वोत्तर के पूरे युद्ध क्षेत्र के कमांडर थे. वह एक ऐसे अधिकारी थे, जिन्हें युद्ध का अनुभव नहीं था.
कहा जाता है कि ऊंचाई पर जाने की वजह से कौल बीमार हो गए थे, इसके बावजूद रक्षा मंत्री मेनन ने कौल को कमांडर बनाए रखा.
बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिकी सीनेटरों के एक प्रतिनिधि मंडल ने जब तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राधाकृष्णन से मुलाकात की थी, तो उन्होंने पूछा था कि क्या कौल को बंदी बना लिया गया है. इसके जवाब में राष्ट्रपति ने कहा था, दुर्भाग्य से यह सच नहीं है.
आप अंदाजा लगाइए किस हद तक कौल को लेकर गुस्सा रहा होगा.
इसी तरह से खुफिया विभाग की नाकामी भी बहुत बड़ी वजह रही.
25 अक्टूबर 1962 को रूस ने चीन को अपना भाई और भारत को दोस्त बता दिया. इससे भारतीय कैंप में निराशा फैल गई थी.
रूस और अमेरिका दोनों क्यूबा मिसाइल संकट को लेकर एक-दूसरे से उलझे हुए थे.
ऐसे में भारत को दूसरे देशों से बहुत अधिक मदद की उम्मीद भी नहीं थी. हालांकि भारत ने 1962 के बाद तेजी से अपनी प्राथमिकताएं बदली और उसके बाद कभी भी चीन को उस तरह से हावी होने नहीं दिया. 1967 में तो चीन को बैकफुट पर आना पड़ गया था. उसके कई सैनिक मारे गए थे.