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Durg Kukurchaba Temple: छत्तीसगढ़ के दुर्ग के इस मंदिर में होती है कुत्ते की पूजा

अब तक आपने सिर्फ देवी-देवताओं के ही मंदिर के बारे में सुना होगा, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि छत्तीसगढ़ के दुर्ग में एक ऐसा भी मंदिर है, जहां कुत्ते की मूर्ति की पूजा होती है. इस मंदिर को कुकुरचबा मंदिर (durg kukurchaba temple ) के नाम से जाना जाता है. यहां की अजीबोगरीब मान्यता और इस मंदिर के निर्माण की कहानी जानकर आप हैरान हो जाएंगे.

Durg Kukurchaba Temple
छत्तीसगढ़ के दुर्ग के इस मंदिर में होती है कुत्ते की पूजा
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Published : Feb 6, 2022, 6:31 AM IST

दुर्ग: जिले के धमधा ब्लॉक के भानपुर गांव के खेतों के बीच में स्थित इस मंदिर के गर्भगृह में कुत्ते की प्रतिमा स्थापित है. 16-17 वीं शताब्दी के समय इस मंदिर का निर्माण (durg kukurchaba temple ) किया गया. एक वफादार कुत्ते की याद में इस मंदिर को बनाया गया था.

80 साल से टीकाराम इस मंदिर की देखरेख कर रहे

80 साल से इस मंदिर की देखरेख कर रहे टीका राम साहू ने मंदिर निर्माण की कहानी बताई. यह मंदिर 16वीं से 17वीं शताब्दी के बीच बना था. सदियों पहले एक व्यक्ति अपने परिवार के साथ इस गांव में आया था. उसके साथ एक कुत्ता भी था. गांव में एक बार अकाल पड़ गया तो उस व्यक्ति ने गांव के साहूकार से कर्ज लिया, लेकिन वो कर्ज वापस नहीं कर पाया. ऐसे में उस व्यक्ति ने अपना वफादार कुत्ता साहूकार के पास गिरवी रख दिया. उसी दौरान एक दिन साहूकार के यहां चोरी हो गई. चोरों ने चोरी कर सारा माल पास के ही तालाब में फेंक दिया और सोचा की बाद में उसे निकाल लेंगे, लेकिन कुत्ते को उस चोरी किये माल के बारे में पता चल गया. कुत्ता रोज तालाब के पास जाकर बैठ जाया करता था. इसकी जानकारी साहूकार को लगी. जिसके बाद तालाब में जाल फेंका गया, जहां से साहूकार का चोरी का सारा सामान मिल गया.

साहूकार ने कुत्ते की वफादारी से खुश होकर गिरवी रखे वफादार कुत्ते को आजाद कर देने का फैसला लिया. साहूकार ने कर्ज लिए व्यक्ति के नाम एक चिट्ठी लिखी और कुत्ते के गले में लटकाकार उसे उसके मालिक के पास भेज दिया. इधर कुत्ता जैसे ही मालिक के पास पहुंचा, उसे लगा कि वो साहूकार के पास से भागकर आया है. इसलिए उसने गुस्से में आकर कुत्ते का सिर काट दिया. कुत्ते को मारने के बाद व्यक्ति ने उसके गले में लटकी साहूकार की चिट्ठी पढ़ी तो वो हैरान हो गया. उसे अपने किए पर बहुत पछतावा हुआ. उसके बाद उसने उसी जगह कुत्ते को दफना दिया और उस पर स्मारक बनवा दिया.

दुर्ग में कुत्ते का मंदिर

ये भी पढ़ें- 'स्टैच्यू ऑफ इक्वैलिटी' संत रामानुजाचार्यजी के ज्ञान, वैराग्य और आदर्शों की प्रतीक : PM मोदी

दूर-दूर से कुकुरचबा मंदिर पहुंचते हैं लोग

इस स्थापित स्मारक को लोगों ने मंदिर का रूप दे दिया. जिसे आज लोग कुकुरचबा मंदिर के नाम से जानते हैं. ऐसी मान्यता है कि किसी को कुत्ता काट ले तो उसे स्मारक की पूजा-पाठ कर निर्माण चबूतरे की परिक्रमा करनी चाहिए. वहां मौजूद मिट्टी को खाने से कुत्ते के काटने से होनेवाली बीमारी खत्म हो जाती है.

दूसरे प्रदेश से भी आते हैं मरीज

कुकुरचबा मंदिर जाने के लिए पैदल ही खेतों के कई मेड़ों को पार कर मंदिर तक पहुंचते हैं. इस मंदिर में छत्तीसगढ़ के अलावा उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र तक के श्रद्धालु आते हैं. इस मंदिर में कुत्ते के काटने पर प्राकृतिक दवाई से इलाज किया जाता है. यहां स्मारक के पास की मिट्टी को खाने से पागल या सामान्य कुत्ते के काटने से फैलने वाली रेबीज जैसे बीमारी पूरी तरह समाप्त हो जाती है.

लोग विधि-विधान से कुत्ते की प्रतिमा की करते हैं पूजा

कुकुरचबा मंदिर में पूजा करने आए अर्पण ताम्रकार और सत्येंद्र कुमार साहू ने बताया कि इस मंदिर में विधि-विधान से कुत्ते की मूर्ति की पूजा की जाती है. उन्होंने बताया कि उन्हें कहीं से पता चला था कि दुर्ग के धमधा में कुत्ते का एक ऐसा मंदिर है, जहां पर किसी को कुत्ता काटता है तो वहां पूजा करने पर ठीक हो जाते हैं. इसलिए हम यहां आए हैं.

दुर्ग: जिले के धमधा ब्लॉक के भानपुर गांव के खेतों के बीच में स्थित इस मंदिर के गर्भगृह में कुत्ते की प्रतिमा स्थापित है. 16-17 वीं शताब्दी के समय इस मंदिर का निर्माण (durg kukurchaba temple ) किया गया. एक वफादार कुत्ते की याद में इस मंदिर को बनाया गया था.

80 साल से टीकाराम इस मंदिर की देखरेख कर रहे

80 साल से इस मंदिर की देखरेख कर रहे टीका राम साहू ने मंदिर निर्माण की कहानी बताई. यह मंदिर 16वीं से 17वीं शताब्दी के बीच बना था. सदियों पहले एक व्यक्ति अपने परिवार के साथ इस गांव में आया था. उसके साथ एक कुत्ता भी था. गांव में एक बार अकाल पड़ गया तो उस व्यक्ति ने गांव के साहूकार से कर्ज लिया, लेकिन वो कर्ज वापस नहीं कर पाया. ऐसे में उस व्यक्ति ने अपना वफादार कुत्ता साहूकार के पास गिरवी रख दिया. उसी दौरान एक दिन साहूकार के यहां चोरी हो गई. चोरों ने चोरी कर सारा माल पास के ही तालाब में फेंक दिया और सोचा की बाद में उसे निकाल लेंगे, लेकिन कुत्ते को उस चोरी किये माल के बारे में पता चल गया. कुत्ता रोज तालाब के पास जाकर बैठ जाया करता था. इसकी जानकारी साहूकार को लगी. जिसके बाद तालाब में जाल फेंका गया, जहां से साहूकार का चोरी का सारा सामान मिल गया.

साहूकार ने कुत्ते की वफादारी से खुश होकर गिरवी रखे वफादार कुत्ते को आजाद कर देने का फैसला लिया. साहूकार ने कर्ज लिए व्यक्ति के नाम एक चिट्ठी लिखी और कुत्ते के गले में लटकाकार उसे उसके मालिक के पास भेज दिया. इधर कुत्ता जैसे ही मालिक के पास पहुंचा, उसे लगा कि वो साहूकार के पास से भागकर आया है. इसलिए उसने गुस्से में आकर कुत्ते का सिर काट दिया. कुत्ते को मारने के बाद व्यक्ति ने उसके गले में लटकी साहूकार की चिट्ठी पढ़ी तो वो हैरान हो गया. उसे अपने किए पर बहुत पछतावा हुआ. उसके बाद उसने उसी जगह कुत्ते को दफना दिया और उस पर स्मारक बनवा दिया.

दुर्ग में कुत्ते का मंदिर

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दूर-दूर से कुकुरचबा मंदिर पहुंचते हैं लोग

इस स्थापित स्मारक को लोगों ने मंदिर का रूप दे दिया. जिसे आज लोग कुकुरचबा मंदिर के नाम से जानते हैं. ऐसी मान्यता है कि किसी को कुत्ता काट ले तो उसे स्मारक की पूजा-पाठ कर निर्माण चबूतरे की परिक्रमा करनी चाहिए. वहां मौजूद मिट्टी को खाने से कुत्ते के काटने से होनेवाली बीमारी खत्म हो जाती है.

दूसरे प्रदेश से भी आते हैं मरीज

कुकुरचबा मंदिर जाने के लिए पैदल ही खेतों के कई मेड़ों को पार कर मंदिर तक पहुंचते हैं. इस मंदिर में छत्तीसगढ़ के अलावा उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र तक के श्रद्धालु आते हैं. इस मंदिर में कुत्ते के काटने पर प्राकृतिक दवाई से इलाज किया जाता है. यहां स्मारक के पास की मिट्टी को खाने से पागल या सामान्य कुत्ते के काटने से फैलने वाली रेबीज जैसे बीमारी पूरी तरह समाप्त हो जाती है.

लोग विधि-विधान से कुत्ते की प्रतिमा की करते हैं पूजा

कुकुरचबा मंदिर में पूजा करने आए अर्पण ताम्रकार और सत्येंद्र कुमार साहू ने बताया कि इस मंदिर में विधि-विधान से कुत्ते की मूर्ति की पूजा की जाती है. उन्होंने बताया कि उन्हें कहीं से पता चला था कि दुर्ग के धमधा में कुत्ते का एक ऐसा मंदिर है, जहां पर किसी को कुत्ता काटता है तो वहां पूजा करने पर ठीक हो जाते हैं. इसलिए हम यहां आए हैं.

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