नई दिल्ली : विपक्षी गठबंधन इंडिया के भीतर अधिक एकता बनाने और 2024 के राष्ट्रीय चुनावों से पहले भाजपा का मुकाबला करने के लिए कांग्रेस जाति जनगणना और 33 प्रतिशत महिला आरक्षण में कोटा के मुद्दों पर भरोसा कर रही है (Congress banks on caste census quota).
हालांकि सबसे पुरानी पार्टी लंबे समय से कल्याण एजेंडे में विभिन्न समूहों की हिस्सेदारी निर्धारित करने के लिए नए सिरे से जाति जनगणना की मांग कर रही है. कांग्रेस ने महिला आरक्षण विधेयक को पारित करने का श्रेय लेने का दावा करने वाली भाजपा का मुकाबला करने के लिए ओबीसी जनगणना के मुद्दे को उछालना शुरू कर दिया है. इस विधेयक के तहत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत कोटा का प्रावधान किया गया है.
विधेयक को शुरुआत में पिछली यूपीए सरकार के दौरान 2010 में राज्यसभा में पारित किया गया था, लेकिन कांग्रेस के सहयोगी दल सपा, राजद और यहां तक कि भाजपा ने भी इस कानून का विरोध किया था, जिसके कारण यह पारित नहीं हो सका.
सपा और राजद कुल 33 प्रतिशत आरक्षण के भीतर एससी, एसटी और ओबीसी महिलाओं के लिए कोटा की मांग कर रहे थे, लेकिन कांग्रेस ने उनके विचार नहीं माने. हालांकि विपक्षी ब्लॉक इंडिया का नेतृत्व कर रही कांग्रेस ने हाल ही में अपना रुख बदला और महिला आरक्षण विधेयक में कोटा के भीतर कोटा की मांग की.
एआईसीसी ओबीसी विभाग के अध्यक्ष अजय यादव ने ईटीवी भारत को बताया, 'समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल और यहां तक कि डीएमके जैसी पार्टियां महिला आरक्षण विधेयक में कुल 33 प्रतिशत कोटा के भीतर एससी, एसटी और ओबीसी के लिए कोटा की हमारी मांग का समर्थन करती हैं.'
उन्होंने कहा कि 'इस मुद्दे पर इंडिया गठबंधन एक है और हम आने वाले दिनों में नए सिरे से जाति जनगणना और कोटा के भीतर कोटा की मांग पर जोर देते रहेंगे. भाजपा भले ही विधेयक पारित करने का श्रेय लेने की कोशिश करे लेकिन हकीकत यह है कि अधिकांश दलों ने संसद में इस कानून का समर्थन किया. अन्यथा बिल को इतना जबरदस्त समर्थन मिलना संभव नहीं था.'
कोटा के भीतर कोटा की मांग : कोटा के भीतर कोटा की मांग सबसे पहले पूर्व कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी ने उठाई थी और लोकसभा में विधेयक पर बहस के दौरान पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी इसे उठाया था. राज्यसभा में एआईसीसी के संगठन प्रभारी केसी वेणुगोपाल ने पार्टी का पक्ष रखा.
गुरुवार को राहुल ने इस बात पर अफसोस जताया कि यूपीए के महिला आरक्षण बिल में कोटा के भीतर कोटा नहीं था. पार्टी के अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि संशोधित स्थिति सबसे पुरानी पार्टी को विपक्षी गठबंधन इंडिया के भीतर अधिक एकता बनाने की अनुमति देगी.
एआईसीसी ओबीसी विभाग के प्रमुख ने कहा कि पार्टी जाति जनगणना और कोटा के भीतर कोटा के मुद्दों पर राजनीति नहीं कर रही है और केवल अपने सामाजिक न्याय के एजेंडे को आगे बढ़ा रही है.
अजय यादव ने कहा कि 'आप देखिए, जाति जनगणना हमारे सामाजिक न्याय एजेंडे में रही है और फरवरी में रायपुर में पूर्ण सत्र में पारित प्रस्ताव में इसे शामिल किया गया था. यदि देश में विभिन्न जाति समूहों की संख्या ही नहीं होगी तो सामाजिक न्याय कैसे मिलेगा? यूपीए ने जाति जनगणना कराई थी लेकिन सरकार ने अब तक आंकड़े प्रकाशित नहीं किए हैं. जब 2024 में इंडिया ब्लॉक सत्ता में आएगा, तो हम ओबीसी के मुद्दों का समाधान सुनिश्चित करने के लिए नए सिरे से जाति जनगणना करवाएंगे.'
उन्होंने कहा कि 'कोटे के भीतर कोटा जरूरी है अन्यथा एससी, एसटी और ओबीसी महिलाओं को लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में 33 फीसदी आरक्षण का लाभ नहीं मिल पाएगा. बीजेपी ने बिल तो पास कर दिया है लेकिन इसके लिए कोई टाइमलाइन नहीं दी है. हम चाहते हैं कि 33 फीसदी कोटा 2024 के लोकसभा चुनाव से लागू हो.'
एआईसीसी पदाधिकारी गुरदीप सप्पल ने कहा, 'राहुलजी द्वारा व्यक्त किए गए विचार बेहद महत्वपूर्ण हैं और यह स्पष्ट रूप से बताते हैं कि पार्टी क्या सोचती है और क्या कल्पना करती है.