ETV Bharat / bharat

कांग्रेस का दावा, दाल की नीलामी में हुआ 4600 करोड़ रु. का घोटाला

कांग्रेस ने दावा किया है कि मोदी सरकार की नीतियों की वजह से दाल जैसे खाद्य आइटम में भी घोटाला हो रहा है. कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि यह घोटाला 4600 करोड़ का है. उन्होंने कहा कि सरकार के पास दाल का स्टॉक अधिक है, इसलिए उसने नीलामी प्रक्रिया ऐसी रखी है, जिसकी वजह से सरकार के खजाने को चूना लग रहा है.

abhishek manu singhvi
अभिषेक मनु सिंघवी
author img

By

Published : Apr 28, 2022, 10:58 PM IST

नई दिल्ली : कांग्रेस ने केंद्र पर गरीबों और सेना को नाफेड के माध्यम से दी जाने वाली दाल का भ्रष्टाचार कर 4,600 करोड़ रु. का घोटाला करने का आरोप लगाते हुए सवाल उठाए हैं. कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने गुरुवार को कहा कि नेशनल एग्रीकल्चर को-ऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया के पास जब दालों का बहुत ज्यादा स्टॉक हो गया, तब नाफेड ने सरकार से सिफारिश की कि ये दाल देश भर में कल्याणकारी योजनाओं और रक्षा सेवाओं के लाभार्थियों को दी जाए.

सिंघवी ने कहा कि ऐसे समय में जबकि नाफेड का दाल का स्टॉक साबुत दलहन के रूप में होता है. उन्हें वितरित करने से पहले दाल बनाने की प्रोसेसिंग के लिए दाल मिलों को दिया जाता है. दाल दलने से लेकर पॉलिश तथा ढुलाई का खर्च केंद्र सरकार उठाती है. इतनी बड़ी मात्रा में इन दालों को बाकायदा नीलामी प्रक्रिया के तहत मिलों को दिया जाता है. उन्होंने कहा, "पहले सरकार की कोशिश होती थी कि जो मिल सबसे सस्ते में यह काम करे, उसे ठेका दिया जाता था. नीलामी की इस प्रक्रिया को फ्लोअर रेट या लोअर रेट प्रोसेस के नाम से भी जाना जाता था. लेकिन साल 2018 के बाद से नाफेड ने नीलामी प्रक्रिया को भी बिल्कुल बदल दिया. अब सरकार ने यह बंदिश नहीं लगाई कि न्यूनतम इतने किलो से कम बोली नहीं लगाई जा सकती. एक अनुमान के तहत 2018 के बाद चार सालों में दाल मिलों ने 5.4 लाख टन दालों की प्रोसेसिंग में लगभग 4,600 करोड़ रु. का चूना सरकार को लगाया."

  • यह ₹4,600 करोड़ लगभग 5.4 लाख टन की दालों का मामला था। इसमें आप हिसाब लगा लीजिए कि दाल में कितना काला है, कितना चोर की दाढ़ी में तिनका है: श्री @DrAMSinghvi pic.twitter.com/hBfD1MPEzR

    — Congress (@INCIndia) April 28, 2022 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

उन्होंने कहा, "बीते दिनों नेशनल प्रोडक्टिविटी काउंसिल, जो कि दाल और अन्य ऑयल सीड्स के प्राईज स्टेब्लाईजेशन की निगरानी करती है और भारत सरकार की एक ऑटोनोमस रिसर्च एजेंसी है, ने अपनी प्राथमिक जांच में पाया कि मोदी सरकार की नाफेड ने अपनी ऑक्शन प्रक्रिया में बदलाव करके उसे इस प्रकार निर्धारित किया कि निजी दाल मिल मालिकों ने सरकार को 4,600 करोड़ रु. का चूना लगा दिया. इतना ही नहीं, 11 अक्टूबर, 2021 को नेशनल प्रोडक्टिविटी काउंसिल ने इस प्रक्रिया को तुरंत बंद करने को कहा था. काउंसिल की इस गंभीर आपत्ति के बावजूद सरकार ने नेशनल एग्रीकल्चर को-ऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन (नाफेड) के माध्यम से 137,509 मीट्रिक टन दाल, जो कि 875.47 करोड़ रु. की थी, उसे इसी प्रक्रिया के तहत ऑक्शन किया."

इससे पहले साल 2015 में ही चावल मिल मालिकों के मामले में कंट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ने इस ओटीआर प्रणाली को संदेह के घेरे में खड़ा कर दिया था और यह बताया था कि कम ओटीआर के चलते मिल मालिक बाकी बचे चावल को अलग से बेचते हैं, जिसके कारण सरकार को 2,000 करोड़ रु. का घाटा हुआ है. उन्होंने कहा कि सरकार के प्रमुख शोध संस्थान, सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट हार्वेस्ट इंजीनियरिंग एंड टेक्नॉलॉजी ने भी नीलामी पर सरकार को एक रिपोर्ट सौंपी है, जिसमें इन प्रक्रियाओं की खामी का उल्लेख किया है.

नई दिल्ली : कांग्रेस ने केंद्र पर गरीबों और सेना को नाफेड के माध्यम से दी जाने वाली दाल का भ्रष्टाचार कर 4,600 करोड़ रु. का घोटाला करने का आरोप लगाते हुए सवाल उठाए हैं. कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने गुरुवार को कहा कि नेशनल एग्रीकल्चर को-ऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया के पास जब दालों का बहुत ज्यादा स्टॉक हो गया, तब नाफेड ने सरकार से सिफारिश की कि ये दाल देश भर में कल्याणकारी योजनाओं और रक्षा सेवाओं के लाभार्थियों को दी जाए.

सिंघवी ने कहा कि ऐसे समय में जबकि नाफेड का दाल का स्टॉक साबुत दलहन के रूप में होता है. उन्हें वितरित करने से पहले दाल बनाने की प्रोसेसिंग के लिए दाल मिलों को दिया जाता है. दाल दलने से लेकर पॉलिश तथा ढुलाई का खर्च केंद्र सरकार उठाती है. इतनी बड़ी मात्रा में इन दालों को बाकायदा नीलामी प्रक्रिया के तहत मिलों को दिया जाता है. उन्होंने कहा, "पहले सरकार की कोशिश होती थी कि जो मिल सबसे सस्ते में यह काम करे, उसे ठेका दिया जाता था. नीलामी की इस प्रक्रिया को फ्लोअर रेट या लोअर रेट प्रोसेस के नाम से भी जाना जाता था. लेकिन साल 2018 के बाद से नाफेड ने नीलामी प्रक्रिया को भी बिल्कुल बदल दिया. अब सरकार ने यह बंदिश नहीं लगाई कि न्यूनतम इतने किलो से कम बोली नहीं लगाई जा सकती. एक अनुमान के तहत 2018 के बाद चार सालों में दाल मिलों ने 5.4 लाख टन दालों की प्रोसेसिंग में लगभग 4,600 करोड़ रु. का चूना सरकार को लगाया."

  • यह ₹4,600 करोड़ लगभग 5.4 लाख टन की दालों का मामला था। इसमें आप हिसाब लगा लीजिए कि दाल में कितना काला है, कितना चोर की दाढ़ी में तिनका है: श्री @DrAMSinghvi pic.twitter.com/hBfD1MPEzR

    — Congress (@INCIndia) April 28, 2022 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

उन्होंने कहा, "बीते दिनों नेशनल प्रोडक्टिविटी काउंसिल, जो कि दाल और अन्य ऑयल सीड्स के प्राईज स्टेब्लाईजेशन की निगरानी करती है और भारत सरकार की एक ऑटोनोमस रिसर्च एजेंसी है, ने अपनी प्राथमिक जांच में पाया कि मोदी सरकार की नाफेड ने अपनी ऑक्शन प्रक्रिया में बदलाव करके उसे इस प्रकार निर्धारित किया कि निजी दाल मिल मालिकों ने सरकार को 4,600 करोड़ रु. का चूना लगा दिया. इतना ही नहीं, 11 अक्टूबर, 2021 को नेशनल प्रोडक्टिविटी काउंसिल ने इस प्रक्रिया को तुरंत बंद करने को कहा था. काउंसिल की इस गंभीर आपत्ति के बावजूद सरकार ने नेशनल एग्रीकल्चर को-ऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन (नाफेड) के माध्यम से 137,509 मीट्रिक टन दाल, जो कि 875.47 करोड़ रु. की थी, उसे इसी प्रक्रिया के तहत ऑक्शन किया."

इससे पहले साल 2015 में ही चावल मिल मालिकों के मामले में कंट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ने इस ओटीआर प्रणाली को संदेह के घेरे में खड़ा कर दिया था और यह बताया था कि कम ओटीआर के चलते मिल मालिक बाकी बचे चावल को अलग से बेचते हैं, जिसके कारण सरकार को 2,000 करोड़ रु. का घाटा हुआ है. उन्होंने कहा कि सरकार के प्रमुख शोध संस्थान, सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट हार्वेस्ट इंजीनियरिंग एंड टेक्नॉलॉजी ने भी नीलामी पर सरकार को एक रिपोर्ट सौंपी है, जिसमें इन प्रक्रियाओं की खामी का उल्लेख किया है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.