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Sarv Adivasi Samaj Against UCC: समान नागरिक संहिता के खिलाफ छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज, UCC को आदिवासियों के लिए बताया खतरा - यूसीसी समाज के परंपराओं और रीति को प्रभावित

Sarv Adivasi Samaj Against UCC छत्तीसगढ़ में आदिवासी समूहों की एक प्रमुख संस्था, छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज (सीएसएएस) ने यूसीसी पर मोर्चा खोल दिया है. सर्व आदिवासी समाज ने कहा है कि केंद्र सरकार को समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लागू करने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए. यह कानून उन आदिवासियों के अस्तित्व के लिए खतरा होगा, जिनके पास अपने समाज को संचालित करने के लिए अपने स्वयं की प्रथाएं और नियम हैं.

Sarv Adivasi Samaj Against UCC
छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज के प्रमुख अरविंद नेताम
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Published : Jul 4, 2023, 10:25 PM IST

रायपुर: छत्तीसगढ़ में सर्व आदिवासी समाज ने यूसीसी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. आदिवासी समाज की तरफ से अरविंद नेताम ने हल्ला बोला है. छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने रायपुर में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया. इस सम्मेलन में उन्होंने समान नागरिक संहिता और यूसीसी को लेकर अपनी बातें रखी.

आदिवासी समाज की अपनी अलग प्रथाएं और नियम हैं: समान नागरिक संहिता को लेकर आदिवासी समाज लगातार कह रहा है कि उनकी अपनी प्रथाएं और नियम हैं. जिसे वह नहीं छोड़ सकता. यही प्रथाएं उन्हें सबसे अलग और खास बनाती है. ऐसे में केंद्र सरकार और विधि आयोग को भी इस ओर सोचने की जरूरत है.

"सर्व आदिवासी समाज समान नागरिक संहिता को लेकर पूरी तरह आपत्ति नहीं करता है. लेकिन केंद्र को इसे सामने लाने से पहले सभी को विश्वास में लेना चाहिए. क्योंकि इसे लागू करना अव्यावहारिक है. भारत के विधि आयोग ने देश में यूसीसी के लिए सुझाव मांगे हैं. छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदायों ने अपने पारंपरिक नियमों को ध्यान में रखते हुए अपनी राय दी है"- अरविंद नेताम, अध्यक्ष, सर्व आदिवासी समाज

सर्व आदिवासी समाज ने दी ये दलील: सर्व आदिवासी समाज ने यह दलील दी है कि यूसीसी और समान नागरिक संहिता का लक्ष्य जन्म, विवाह और संपत्ति अधिकारों से जुड़े संबंधित कानून को एक सामान्य कानून बनाना है. ऐसे में आदिवासी समाज जन्म, तलाश, विभाजन, उत्तराधिकार, विरासत, भूमि और संपत्ति के मामलो में अपनी परंपराओं को मानता है. अपने पारंपरिक कानूनों के जरिए काम करता है. यही हमारी पहचान है जो बाकी जातियों और समुदाय से हमे अलग करती है.

आदिवासी समाज में महिलाओं को मौजूदा पति को छोड़ने के बाद कई बार शादी करने की आजादी है. उन्हें पैतृक भूमि पर अधिकार नहीं है. आदिवासियों के प्रथागत कानून को संविधान के अनुच्छेद 13 में 3 ए के तहत कानून का बल प्राप्त है. आदिवासियों को संविधान की पांचवीं और छठी अनुसूची और पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम के तहत कई अधिकार प्राप्त हैं- अरविंद नेताम, अध्यक्ष सर्व आदिवासी समाज

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यूसीसी को पब्लिक डोमने में लाने की जरूरत: पहले यूसीसी के मसौदे को सार्वजनिक डोमने में लाने की जरूरत है. उसके बाद इस पर आदिवासी समूह से चर्चा करने की जरूरत है. सरकार को इस मसले पर आदिवासियों को विश्वास में लेना चाहिए. सर्व आदिवासी समाज इस मसले पर भारत के अन्य राज्यों और मध्य भारत के आदिवासी समूहों के संपर्क में है. ताकि ऐसे किसी भी कानून के खिलाफ सामूहिक रूप से आवाज उठाई जा सके. जिससे हमारी परंपराओं और रीति रिवाज को खतरा है

यूसीसी समाज के परंपराओं और रीति को प्रभावित करेगा: सर्व आदिवासी समाज का कहना है कि यूसीसी से आदिवासी समाज की परंपराएं प्रभावित होगी. इससे आदिवासी समाज के रीति रिवाज जो सदियों से चली आ रही है. वह खत्म हो सकती है. जिससे आदिवासियों के पहचान और अस्तित्व पर संकट पैदा हो जाएगा. इसलिए केंद्र को यूसीसी लागू करने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए.

रायपुर: छत्तीसगढ़ में सर्व आदिवासी समाज ने यूसीसी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. आदिवासी समाज की तरफ से अरविंद नेताम ने हल्ला बोला है. छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने रायपुर में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया. इस सम्मेलन में उन्होंने समान नागरिक संहिता और यूसीसी को लेकर अपनी बातें रखी.

आदिवासी समाज की अपनी अलग प्रथाएं और नियम हैं: समान नागरिक संहिता को लेकर आदिवासी समाज लगातार कह रहा है कि उनकी अपनी प्रथाएं और नियम हैं. जिसे वह नहीं छोड़ सकता. यही प्रथाएं उन्हें सबसे अलग और खास बनाती है. ऐसे में केंद्र सरकार और विधि आयोग को भी इस ओर सोचने की जरूरत है.

"सर्व आदिवासी समाज समान नागरिक संहिता को लेकर पूरी तरह आपत्ति नहीं करता है. लेकिन केंद्र को इसे सामने लाने से पहले सभी को विश्वास में लेना चाहिए. क्योंकि इसे लागू करना अव्यावहारिक है. भारत के विधि आयोग ने देश में यूसीसी के लिए सुझाव मांगे हैं. छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदायों ने अपने पारंपरिक नियमों को ध्यान में रखते हुए अपनी राय दी है"- अरविंद नेताम, अध्यक्ष, सर्व आदिवासी समाज

सर्व आदिवासी समाज ने दी ये दलील: सर्व आदिवासी समाज ने यह दलील दी है कि यूसीसी और समान नागरिक संहिता का लक्ष्य जन्म, विवाह और संपत्ति अधिकारों से जुड़े संबंधित कानून को एक सामान्य कानून बनाना है. ऐसे में आदिवासी समाज जन्म, तलाश, विभाजन, उत्तराधिकार, विरासत, भूमि और संपत्ति के मामलो में अपनी परंपराओं को मानता है. अपने पारंपरिक कानूनों के जरिए काम करता है. यही हमारी पहचान है जो बाकी जातियों और समुदाय से हमे अलग करती है.

आदिवासी समाज में महिलाओं को मौजूदा पति को छोड़ने के बाद कई बार शादी करने की आजादी है. उन्हें पैतृक भूमि पर अधिकार नहीं है. आदिवासियों के प्रथागत कानून को संविधान के अनुच्छेद 13 में 3 ए के तहत कानून का बल प्राप्त है. आदिवासियों को संविधान की पांचवीं और छठी अनुसूची और पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम के तहत कई अधिकार प्राप्त हैं- अरविंद नेताम, अध्यक्ष सर्व आदिवासी समाज

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यूसीसी को पब्लिक डोमने में लाने की जरूरत: पहले यूसीसी के मसौदे को सार्वजनिक डोमने में लाने की जरूरत है. उसके बाद इस पर आदिवासी समूह से चर्चा करने की जरूरत है. सरकार को इस मसले पर आदिवासियों को विश्वास में लेना चाहिए. सर्व आदिवासी समाज इस मसले पर भारत के अन्य राज्यों और मध्य भारत के आदिवासी समूहों के संपर्क में है. ताकि ऐसे किसी भी कानून के खिलाफ सामूहिक रूप से आवाज उठाई जा सके. जिससे हमारी परंपराओं और रीति रिवाज को खतरा है

यूसीसी समाज के परंपराओं और रीति को प्रभावित करेगा: सर्व आदिवासी समाज का कहना है कि यूसीसी से आदिवासी समाज की परंपराएं प्रभावित होगी. इससे आदिवासी समाज के रीति रिवाज जो सदियों से चली आ रही है. वह खत्म हो सकती है. जिससे आदिवासियों के पहचान और अस्तित्व पर संकट पैदा हो जाएगा. इसलिए केंद्र को यूसीसी लागू करने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए.

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