रायपुर: ब्रिटिश शासन काल के इस जेल का आज भी मेंटेनेंस बहुत सही तरीके से किया जाता है. इसी वजह से किसी भी दीवार में कोई दरार की स्थिति नहीं दिखाई पड़ती है. जेल के पुराने पुरोहित के मुताबिक "पुराने समय में जब मंदिर की शुरुआत की गई थी, तब एक ऐसे कैदी ने मंदिर के दीवारों पर देवी प्रतिमाओं का डिजाइन बनाया था. जो कि स्वयं अपने माता पिता और भाई की हत्या के जुर्म में उम्र कैद की सजा काट रहा था."
कैदी करते हैं मंदिर की दीवारों पर पेंटिंग: पंडित जी ने बताया कि "वह कैदी अपने पापों को कम करने के लिए माता रानी की सेवा करता था. वह दीवारों को सुंदर बनाने के लिए उसमें देवी देवताओं की आकृति चित्रित करता था. समय के साथ साथ वह दीवार भी ढह गई, जिस वजह से मंदिर का रिनोवेशन करना पड़ा. रिनोवेशन के दौरान उस मंदिर के दीवारों पर टाइल्स लगा दी गई, जिस वजह से कलाकृतियां दब गई. लेकिन आज भी मंदिर की दीवारों पर पेंटिंग का काम कैदियों द्वारा किया जाता है" . ईटीवी भारत ने मंदिर के पुजारी से खास बात की.
सवाल: ये मंदिर कितना पुराना है?
जवाब: यह मंदिर 50 से 55 साल पुराना है. जब एमपी और सीजी अलग नहीं हुआ था. छत्तीसगढ़ अलग होने के बाद जब राजधानी बनने का मुद्दा आया तो रोड बनाया गया. रोड बनाने के बाद यह मंदिर अपने स्थान से थोड़ा पीछे स्थापित कर दिया गया. इस मंदिर में चंड और मुंड देवियां हैं. इस मंदिर में एक कैदी की बड़ी श्रद्धा थी. वह क्रिश्चियन था, लेकिन हिंदू धर्म के सनातन देवी देवता के प्रति उसकी श्रद्धा थी.
उस कैदी के मन में जो भी चित्रण आता था, वह उससे दीवारों पर आकृति बनाता था. चाहे वह राम की मूर्ति हो, चाहे वह दुर्गा की मूर्ति हो या अन्य देवी देवताओं की मूर्ति हो, उसे वह दीवारों पर बनाता था. जिस वजह से मंदिर के दीवारों की खूबसूरती बनी रहती थी. समय के साथ मंदिर की दीवारें जर्जर होते गई. जिस वजह से इस मंदिर का नवनिर्माण किया गया. जिसके बाद वे आकृतियां भी दब गईं.
सवाल: नवरात्रि में जोत की रखरखाव क्या कैदियों द्वारा ही कि जाती है?
जवाब: साल भर में कुल चार नवरात्र होती हैं, दो गुप्त होती है और दो सार्वजनिक. चैत्र और शारदीय नवरात्र सार्वजनिक होती है. इस दौरान बंदी द्वारा पेंटिंग का काम, साफ सफाई का काम, इलेक्ट्रिशियन का काम, मरम्मत आदि काम जेल के बंधुओं द्वारा किया जाता है. यह बंदियों के लिए भी एक बहुत बड़ा अवसर होता है कि वह माता रानी की सेवा कर पाते हैं. जेल स्टाफ के अन्य कर्मचारियों के द्वारा भी नवरात्र का आयोजन बड़े ही धूमधाम से चामुंडा मंदिर में किया जाता है.
सवाल: मंदिरों के कामकाज में कैदियों की सहभागिता से बाकियों को डर नहीं होता है कि कैदी उन्हें किसी तरह का नुकसान न पहुंचाये?
जवाब: कैदियों द्वारा जुर्म तो किया गया है. लेकिन वह केवल छणिक मात्र रोष की वजह से किया गया है. लोग कुछ समय के क्रोध की वजह से भी अपने परिजनों को, दोस्त यारों के साथ कुछ जुर्म कर जाते हैं. इस वजह से भी सालों तक जेल के बंधन में बंध जाते हैं. केवल छणिक मात्र के क्रोध की वजह से किसी भी व्यक्ति की आदत आचरण व स्वभाव में हमेशा के लिए बदलाव नहीं आता है. इसी तर्ज पर कुछ कैदी का स्वभाव अच्छा होता है. उसके स्वभाव में विनम्रता होती है, इंसानियत आज भी जिंदा होती है.
सजा काटने के दौरान ऐसे कैदियों को जांच पड़ताल करके ही जेल से बाहर निकाला जाता है. पूरी सुरक्षा व्यवस्था के साथ मंदिरों का रखरखाव, साफ सफाई आदि कार्य कराए जाते हैं. जिन कैदियों पर आपको भरोसा होता है, पंडितों को भरोसा होता है, उन्हीं कैदियों का साथ लेकर हम मंदिर का रखरखाव का काम करते हैं.