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2 अप्रैल से चैत्र नवरात्रि शुरू, घोड़े पर होगा माता का आगमन

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Published : Mar 31, 2022, 8:34 PM IST

Updated : Apr 1, 2022, 6:28 AM IST

सनातन धर्म में पर्व और त्योहार का विशेष महत्व माना जाता है और बात अगर देवी आराधना के पर्व नवरात्र की हो तो फिर इसे विशेष रूप से 9 दिनों उस महापर्व के रूप में मनाया जाता है. जिसमें देवी के अलग-अलग रूपों की उपासना की जाती है. वैसे नवरात्रि 3 तरह की होती हैं. चैत्र के महीने में होने वाली 9 दिनों की दुर्गापूजा को चैत्र नवरात्रि के नाम से जाना जाता है, जबकि गुप्त नवरात्र तंत्र साधना करने वाले लोगों के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है. वही दशहरे के पहले शारदीय नवरात्रि मां दुर्गा की उपासना का पर्व माना जाता है. इस बार 2 अप्रैल से शुरू हो रही 9 दिनों की चैत्र नवरात्रि को बेहद शुभ माना जा रहा है.

chaitra navratra
chaitra navratra

वाराणसी: चैत्र नवरात्रि सनातन धर्म के लिए काफी महत्वपूर्ण पर्व है. माना जाता है कि इस दिन ही सृष्टि की रचना भगवान ब्रह्मा ने की थी. इस वजह से सनातन धर्म में इस दिन को नव संवत्सर के रूप में जाना जाता है. नव संवत्सर यानी प्रकृति के एक नए स्वरूप का आगमन और प्रकृति के इस नए स्वरूप के साथ माता के आगमन को चैत्र नवरात्रि के पर्व के रूप में मनाने का विधान है.

देवी का आगमन घोड़े पर और गमन भैंसे पर : ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि इस बार 2 अप्रैल से चैत्र नवरात्रि प्रारंभ होने जा रही है और 11 अप्रैल को पारण के साथ 9 दिन का व्रत रहने वाले लोगों का यह अनुष्ठान पूर्ण होगा. 9 दिनों तक इस बार नवरात्रि का पूजन होगा, ना ही किसी तिथि की हानि है और ना ही कोई तिथि ज्यादा है. यानी पूरे 9 दिन तक होने की वजह से यह नवरात्रि बेहद शुभ माना जा रहा है. लेकिन शास्त्रों में नवरात्रि के दौरान माता का आगमन और उनका जाना शुभ और अशुभ के संकेत देता है और इस बार माता का आगमन घोड़े पर और गमन भैंसे पर हो रहा है.

ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि आगमन घोड़े पर होना और भैंसे पर माता का जाना यह अच्छे संकेत नहीं है, क्योंकि यह दोनों ही विनाशकारी संकेत दे रहे हैं. देश में अकाल की स्थिति पैदा होगी. अनाज की कीमतें आसमान छुएंगी और महामारी के संकेत भी देखने को मिल रहे हैं. घोड़े पर माता के आगमन का संकेत यह है कि किसी देश में राजा को उसके पद से हटाया जा सकता है. भैंसे से माता की विदाई रोग व्याधि और प्राकृतिक आपदाओं को बढ़ाने वाला साबित हो सकती है.

ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी बता रहे हैं चैत्र नवरात्रि का महत्व और पूजा विधि.
इस मुहूर्त में करें कलश स्थापना : ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि चैत्र नवरात्रि की शुरुआत 2 अप्रैल को होने जा रही है. पंचांग के मुताबिक चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की शुरुआत 1 अप्रैल को सुबह 11:53 से होगी और प्रतिपदा तिथि 2 अप्रैल को सुबह 11:58 तक मान्य होगी. ऐसे में कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त 2 अप्रैल की दोपहर 11:58 तक ही मान्य होगा. कलश स्थापना का उत्तम मुहूर्त 2 अप्रैल की सुबह 6:20 से लेकर सुबह 8:26 तक का होगा. इस दौरान आप कलश स्थापना नहीं कर पाते हैं तो दोपहर 12:00 बजे से पहले कलश स्थापना अवश्य कर लें.
9 दिनों में गौरी के 9 स्वरूपों के दर्शन : ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि वैसे तो देवी दुर्गा और गौरी दोनों एक रुप ही हैं, लेकिन चैत्र नवरात्रि में दुर्गा नहीं गौरी के नौ रूपों की पूजा का विधान माना गया है. काशी ही एकमात्र ऐसा स्थान है जहां गौरी के नौ रूपों के अलग-अलग मंदिर मौजूद हैं. इनमें प्रथम दिन मुखनिर्मालिका गौरी, द्वितीय दिन ज्येष्ठा गौरी, तृतीय दिन सौभाग्य गौरी, चतुर्थ दिन श्रृंगार गौरी, पंचम दिन विशालाक्षी गौरी, छठवें दिन ललिता गौरी, सातवें दिन भवानी गौरी, आठवें दिन मंगला गौरी और नौवें दिन महालक्ष्मी गौरी के दर्शन का विधान बताया गया है. जबकि नवदुर्गा दर्शन करने वाले लोग पहले दिन शैलपुत्री, द्वितीय ब्रह्मचारिणी, तीसरे दिन चंद्रघंटा, चौथे दिन कूष्मांडा, पांचवें दिन स्कंदमाता, छठवें दिन कात्यायनी देवी, सातवें दिन कालरात्रि देवी, आठवें दिन महागौरी और नौंवे दिन सिद्ध माता के दर्शन का क्रम जारी रखेंगे.

पूजन के लिए करें विधि विधान का प्रयोग : इस दिन पूजन का विधान थोड़ा अलग होता है. सुबह सूर्य उदय के साथ ही उठकर स्नानादि करने के बाद सबसे पहले घर के गेट पर स्वास्तिक बनाकर घर के दोनों छोर पर बंदनवार लगाना चाहिए. बंदनवार यदि उपलब्ध नहीं है तो आम की पत्तियों को पुष्प आदि में लपेटकर एक धागे या फिर लाल रक्षा सूत्र में बांधकर उसे दरवाजे पर जरूर बांधना चाहिए. घर की बालकनी या फिर घर की छत पर सनातन धर्म का भगवा रंग का झंडा फहराना चाहिए. यह शुभ का प्रतीक माना जाता है और नव संवत्सर के आगमन के साथ ही माता के आगमन के लिए शुभ का संकेत लेकर आता है.

इस तरह से करें कलश स्थापना : इसके बाद एक आसन पर विराजमान होकर दोनों हाथों को जोड़कर पहले भगवान गणेश का ध्यान करते हुए भगवान गणेश को पूजना चाहिए. उसके बाद एक पात्र में मिट्टी और जौ मिला कर उस पर जल से भरे मिट्टी या तांबे या पीतल का घड़ा रखना चाहिए. उसके बाद घड़े के ऊपर आम की पत्तियों को रखने के बाद उसके ऊपर नारियल रखकर वरुण और देवी का आह्नाव करते हुए माता की पूजा करनी चाहिए.

इन मंत्रों से करें देवी का आह्वान : माता के पूजन के लिए सबसे सरल और साधारण मंत्र है. इन मंत्रों से देवी का ध्यान करते हुए उनका आवाहन करना चाहिए और कलश स्थापना करने के साथ देवी के जौं और मिट्टी में उनकी खेती करके 9 दिन तक विधि विधान से उनका पूजन करना चाहिए.
'ओम जयंती मंगला काली, भद्रकाली कपालिनी, दुर्गा क्षमा शिवा धात्री, स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।। सर्व मंगल मांगलये, शिवे सर्वार्थ साधिके, शरण्ए त्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते।।


दुर्गा सप्तशती का पाठ अवश्य करें : 9 दिन तक पूजन के विधान के क्रम में प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिए, यदि आप संस्कृत नहीं जानते तो फिर हिंदी में दुर्गा सप्तशती के पाठ का विधान भी बताया गया है. ऐसा करने से घर में सुख शांति समृद्धि तो बनी रहती है. साथ ही माता दुर्गा का विशेष आशीर्वाद भी प्राप्त होता है.

माता को चढ़ाए यह फूल, लगाएं इन चीजों का भोग : पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि माता के आशीर्वाद के लिए उनके पूजन विधान में कुछ सामग्री आवश्यक होती हैं. इनमें लाल गुड़हल का फूल माता को लाल रंग की चुनरी, प्रसाद में इलायची दाना और पंचमेवा शामिल किया जाना चाहिए. इन चीजों को भोग लगाए जाने के बाद 9 दिनों तक यदि आप व्रत कर रहे हैं तो व्रत करते हुए माता का पूजन बड़े ही भक्ति भाव के साथ संपन्न करना चाहिए. नवमी वाले दिन हवन पूजन करने के बाद दशमी को सुबह विसर्जन के पहले कन्या पूजन करने के बाद फिर व्रत का पारण करना चाहिए, जो लोग अष्टमी या फिर नवमी की अलग-अलग पूजा करते हैं उनको माता की ज्योत जगा कर इस दिन माता का आह्वान करके कन्या को भोजन कराना चाहिए. इससे पहले उनके चरणों को धोकर कन्या पूजन संपन्न करना चाहिए. 9 कन्याओं के साथ यथासंभव नौ भैरव स्वरूप बालकों का भी पूजन किया जाना चाहिए.

लाल चंदन चढ़ाने से पूर्ण होती है मनोकामना : ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि देवी भगवती के पूजन में लाल चीजों का इस्तेमाल जरूर करना चाहिए. लाल फूल के अलावा यदि देवी को लाल चंदन अर्पित करेंगे तो आपके सभी तरह के मनोभाव को माता पूर्ण करेंगी. इसके अलावा माता को नारियल की बर्फी भी अर्पित करनी चाहिए.

वाराणसी: चैत्र नवरात्रि सनातन धर्म के लिए काफी महत्वपूर्ण पर्व है. माना जाता है कि इस दिन ही सृष्टि की रचना भगवान ब्रह्मा ने की थी. इस वजह से सनातन धर्म में इस दिन को नव संवत्सर के रूप में जाना जाता है. नव संवत्सर यानी प्रकृति के एक नए स्वरूप का आगमन और प्रकृति के इस नए स्वरूप के साथ माता के आगमन को चैत्र नवरात्रि के पर्व के रूप में मनाने का विधान है.

देवी का आगमन घोड़े पर और गमन भैंसे पर : ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि इस बार 2 अप्रैल से चैत्र नवरात्रि प्रारंभ होने जा रही है और 11 अप्रैल को पारण के साथ 9 दिन का व्रत रहने वाले लोगों का यह अनुष्ठान पूर्ण होगा. 9 दिनों तक इस बार नवरात्रि का पूजन होगा, ना ही किसी तिथि की हानि है और ना ही कोई तिथि ज्यादा है. यानी पूरे 9 दिन तक होने की वजह से यह नवरात्रि बेहद शुभ माना जा रहा है. लेकिन शास्त्रों में नवरात्रि के दौरान माता का आगमन और उनका जाना शुभ और अशुभ के संकेत देता है और इस बार माता का आगमन घोड़े पर और गमन भैंसे पर हो रहा है.

ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि आगमन घोड़े पर होना और भैंसे पर माता का जाना यह अच्छे संकेत नहीं है, क्योंकि यह दोनों ही विनाशकारी संकेत दे रहे हैं. देश में अकाल की स्थिति पैदा होगी. अनाज की कीमतें आसमान छुएंगी और महामारी के संकेत भी देखने को मिल रहे हैं. घोड़े पर माता के आगमन का संकेत यह है कि किसी देश में राजा को उसके पद से हटाया जा सकता है. भैंसे से माता की विदाई रोग व्याधि और प्राकृतिक आपदाओं को बढ़ाने वाला साबित हो सकती है.

ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी बता रहे हैं चैत्र नवरात्रि का महत्व और पूजा विधि.
इस मुहूर्त में करें कलश स्थापना : ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि चैत्र नवरात्रि की शुरुआत 2 अप्रैल को होने जा रही है. पंचांग के मुताबिक चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की शुरुआत 1 अप्रैल को सुबह 11:53 से होगी और प्रतिपदा तिथि 2 अप्रैल को सुबह 11:58 तक मान्य होगी. ऐसे में कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त 2 अप्रैल की दोपहर 11:58 तक ही मान्य होगा. कलश स्थापना का उत्तम मुहूर्त 2 अप्रैल की सुबह 6:20 से लेकर सुबह 8:26 तक का होगा. इस दौरान आप कलश स्थापना नहीं कर पाते हैं तो दोपहर 12:00 बजे से पहले कलश स्थापना अवश्य कर लें.
9 दिनों में गौरी के 9 स्वरूपों के दर्शन : ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि वैसे तो देवी दुर्गा और गौरी दोनों एक रुप ही हैं, लेकिन चैत्र नवरात्रि में दुर्गा नहीं गौरी के नौ रूपों की पूजा का विधान माना गया है. काशी ही एकमात्र ऐसा स्थान है जहां गौरी के नौ रूपों के अलग-अलग मंदिर मौजूद हैं. इनमें प्रथम दिन मुखनिर्मालिका गौरी, द्वितीय दिन ज्येष्ठा गौरी, तृतीय दिन सौभाग्य गौरी, चतुर्थ दिन श्रृंगार गौरी, पंचम दिन विशालाक्षी गौरी, छठवें दिन ललिता गौरी, सातवें दिन भवानी गौरी, आठवें दिन मंगला गौरी और नौवें दिन महालक्ष्मी गौरी के दर्शन का विधान बताया गया है. जबकि नवदुर्गा दर्शन करने वाले लोग पहले दिन शैलपुत्री, द्वितीय ब्रह्मचारिणी, तीसरे दिन चंद्रघंटा, चौथे दिन कूष्मांडा, पांचवें दिन स्कंदमाता, छठवें दिन कात्यायनी देवी, सातवें दिन कालरात्रि देवी, आठवें दिन महागौरी और नौंवे दिन सिद्ध माता के दर्शन का क्रम जारी रखेंगे.

पूजन के लिए करें विधि विधान का प्रयोग : इस दिन पूजन का विधान थोड़ा अलग होता है. सुबह सूर्य उदय के साथ ही उठकर स्नानादि करने के बाद सबसे पहले घर के गेट पर स्वास्तिक बनाकर घर के दोनों छोर पर बंदनवार लगाना चाहिए. बंदनवार यदि उपलब्ध नहीं है तो आम की पत्तियों को पुष्प आदि में लपेटकर एक धागे या फिर लाल रक्षा सूत्र में बांधकर उसे दरवाजे पर जरूर बांधना चाहिए. घर की बालकनी या फिर घर की छत पर सनातन धर्म का भगवा रंग का झंडा फहराना चाहिए. यह शुभ का प्रतीक माना जाता है और नव संवत्सर के आगमन के साथ ही माता के आगमन के लिए शुभ का संकेत लेकर आता है.

इस तरह से करें कलश स्थापना : इसके बाद एक आसन पर विराजमान होकर दोनों हाथों को जोड़कर पहले भगवान गणेश का ध्यान करते हुए भगवान गणेश को पूजना चाहिए. उसके बाद एक पात्र में मिट्टी और जौ मिला कर उस पर जल से भरे मिट्टी या तांबे या पीतल का घड़ा रखना चाहिए. उसके बाद घड़े के ऊपर आम की पत्तियों को रखने के बाद उसके ऊपर नारियल रखकर वरुण और देवी का आह्नाव करते हुए माता की पूजा करनी चाहिए.

इन मंत्रों से करें देवी का आह्वान : माता के पूजन के लिए सबसे सरल और साधारण मंत्र है. इन मंत्रों से देवी का ध्यान करते हुए उनका आवाहन करना चाहिए और कलश स्थापना करने के साथ देवी के जौं और मिट्टी में उनकी खेती करके 9 दिन तक विधि विधान से उनका पूजन करना चाहिए.
'ओम जयंती मंगला काली, भद्रकाली कपालिनी, दुर्गा क्षमा शिवा धात्री, स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।। सर्व मंगल मांगलये, शिवे सर्वार्थ साधिके, शरण्ए त्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते।।


दुर्गा सप्तशती का पाठ अवश्य करें : 9 दिन तक पूजन के विधान के क्रम में प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिए, यदि आप संस्कृत नहीं जानते तो फिर हिंदी में दुर्गा सप्तशती के पाठ का विधान भी बताया गया है. ऐसा करने से घर में सुख शांति समृद्धि तो बनी रहती है. साथ ही माता दुर्गा का विशेष आशीर्वाद भी प्राप्त होता है.

माता को चढ़ाए यह फूल, लगाएं इन चीजों का भोग : पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि माता के आशीर्वाद के लिए उनके पूजन विधान में कुछ सामग्री आवश्यक होती हैं. इनमें लाल गुड़हल का फूल माता को लाल रंग की चुनरी, प्रसाद में इलायची दाना और पंचमेवा शामिल किया जाना चाहिए. इन चीजों को भोग लगाए जाने के बाद 9 दिनों तक यदि आप व्रत कर रहे हैं तो व्रत करते हुए माता का पूजन बड़े ही भक्ति भाव के साथ संपन्न करना चाहिए. नवमी वाले दिन हवन पूजन करने के बाद दशमी को सुबह विसर्जन के पहले कन्या पूजन करने के बाद फिर व्रत का पारण करना चाहिए, जो लोग अष्टमी या फिर नवमी की अलग-अलग पूजा करते हैं उनको माता की ज्योत जगा कर इस दिन माता का आह्वान करके कन्या को भोजन कराना चाहिए. इससे पहले उनके चरणों को धोकर कन्या पूजन संपन्न करना चाहिए. 9 कन्याओं के साथ यथासंभव नौ भैरव स्वरूप बालकों का भी पूजन किया जाना चाहिए.

लाल चंदन चढ़ाने से पूर्ण होती है मनोकामना : ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि देवी भगवती के पूजन में लाल चीजों का इस्तेमाल जरूर करना चाहिए. लाल फूल के अलावा यदि देवी को लाल चंदन अर्पित करेंगे तो आपके सभी तरह के मनोभाव को माता पूर्ण करेंगी. इसके अलावा माता को नारियल की बर्फी भी अर्पित करनी चाहिए.

Last Updated : Apr 1, 2022, 6:28 AM IST
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