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ट्रॉमा के मामलों में इजाफा करती सड़क दुर्घटनाएं : विश्व ट्रामा दिवस

साधारण बोलचाल में यदि कभी कोई ट्रॉमा जैसे शब्द का इस्तेमाल करता है, तो उसे सिर्फ मानसिक आघात से जोड़ा जाता है, जो की सही नहीं है. ट्रॉमा शब्द मानसिक ही नहीं शारीरिक स्वास्थ्य से भी जुड़ा हुआ है. क्या होता है ट्रॉमा तथा इस अवस्था में पीड़ित व्यक्ति की कैसे मदद की जा सकती है, इस बारे में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से हर साल 17 अक्टूबर को 'विश्व ट्रामा दिवस' मनाया जाता है.

world trauma day
विश्व ट्रामा दिवस
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Published : Oct 17, 2020, 11:10 AM IST

हर साल पूरी दुनिया में लाखों-करोड़ों लोग अचानक घटित होने वाली घटनाओं के चलते मृत्यु या शारीरिक अक्षमता का शिकार हो जाते हैं. इस तरह की घटनाओं से ना सिर्फ पीड़ित, उसके परिजन, उसके जानने पहचानने वाले लोग तथा उसके दोस्त प्रभावित होते हैं, बल्कि संचार के विभिन्न माध्यम जैसे अखबार या टीवी के चलते ऐसी खबरों के बारे में सूचना प्राप्त करने वाले आमजन भी बड़ी संख्या में प्रभावित होते हैं. इस तरह की परिस्थितियों से कैसे सुरक्षा तथा बचाव संभव है, इस बारे में लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 17 अक्टूबर को पूरी दुनिया में 'विश्व ट्रॉमा दिवस' मनाया जाता है.

क्या है ट्रॉमा

चिकित्सा जगत में ट्रॉमा को एक शारीरिक क्षति माना जाता है. ऐसे शारीरिक अवस्था जो अचानक से घटित होने वाली किसी दुर्घटना के परिणाम स्वरुप उत्पन्न होती है. सड़क दुर्घटना सहित किसी भी प्रकार की दुर्घटना, घरेलू हिंसा, प्राकृतिक आपदा तथा बहुत सी अवस्थाएं हैं, जिनके द्वारा होने वाली क्षति के कारण ट्रॉमा हो सकता हैं. ट्रॉमा से मनुष्य के शरीर पर पड़ने वाले प्रभाव शारीरिक तथा मानसिक दोनों प्रकार के हो सकते हैं. लेकिन कई बार इन आघातों के चलते होने वाली शारीरिक विकलांगता का व्यक्ति की मनःस्थिति पर गहरा असर पड़ता है.

ट्रॉमा के कारणों में सबसे मुख्य रोड ट्रैफिक एक्सीडेंट जिसे 'आरटीए' के नाम से भी जाना जाता है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार वर्ष 2013 में सिर्फ भारत में लगभग 1 लाख 37 हजार लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे गए थे. तब से यह संख्या लगातार बढ़ रही है.

ट्रॉमा से जुड़े जरूरी तथ्य

⦁ हर साल दुनिया भर में लगभग 5 मिलियन लोग और सिर्फ हिंदुस्तान में एक मिलियन लोग सड़क दुर्घटनाओं के चलते मृत्यु और बड़ी संख्या में शारीरिक विकलांगता का शिकार बनते हैं.

⦁ दुनिया भर में होने वाली सड़क दुर्घटनाओं में 1/5 भारत में होती हैं.

⦁ हमारे देश में कहा जाता है कि हर 2 मिनट में एक सड़क दुर्घटना तथा हर 8 मिनट में दुर्घटना के कारण एक व्यक्ति की मृत्यु होती है.

⦁ भारत में सड़क दुर्घटना का शिकार होने वाले लोगों में से अधिकांश युवा पुरुष होते हैं.

⦁ हर साल हमारे देश में सड़क दुर्घटनाओं की संख्या पिछले साल के मुकाबले 3 प्रतिशत बढ़ जाती हैं.

⦁ सड़क दुर्घटना के अलावा हमारे देश में कैंसर तथा हृदय संबंधी बीमारियां भी ट्रामा के मुख्य कारणों में से मानी जाती हैं.

दुर्घटनाओं से बचाव के लिए क्या करें और क्या ना करें

विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ के अनुसार लगभग 50 प्रतिशत सड़क दुर्घटनाएं विकसित देशों में होती हैं. सड़क दुर्घटनाओं के कारण होने वाली मृत्यु तथा शारीरिक विकलांगता की घटनाओं में कमी लाई जा सकती है, लेकिन ऐसा सिर्फ सड़क सुरक्षा के लिए नियम बनाने से संभव नहीं है. बहुत जरूरी है कि आमजन सड़क सुरक्षा के नियमों को जाने और माने. इसके अलावा घरों में होने वाली दुर्घटनाओं को लेकर प्राथमिक उपचार तथा जरूरी सुरक्षा मानकों के बारे में जानना भी लोगों के लिए बहुत जरूरी है. प्रचलित कहावत है कि इलाज से बेहतर बचाव है, इसलिए ट्रॉमा जैसी परिस्थिति से बचने के लिए इन नियमों का पालन किया जा सकता है.

क्या करें

⦁ सड़क पर सुरक्षा के लिए जरूरी नियम

1. सड़क सुरक्षा के नियमों का पालन करें.

2. गाड़ी चलाते समय सुरक्षा चिन्हों और ट्रैफिक सिग्नल का पालन करें.

3. दो पहिया वाहन चलाते समय हमेशा हेलमेट का उपयोग करें.

4. किसी भी प्रकार के वाहन को चलाते समय मोबाइल का उपयोग ना करें.

5. यदि आप लंबी यात्रा कर रहे हो, तो नियमित अंतराल पर छोटे-छोटे ब्रेक लें.

⦁ घर पर सुरक्षा के लिए जरूरी नियम

1. घर के छोटे बच्चों को सदैव बिजली के स्विच, और नुकीली चीजों से दूर रखें.

2. घर पर तथा अपनी गाड़ी में हमेशा फर्स्ट ऐड किट तैयार रखें.

3. सीढ़ियों, बालकनी, छत तथा खिड़कियों के लिए जरूरी सुरक्षा मानकों का उपयोग करें.

4. सीपीआर जैसी आपातकाल में जीवन को बचाने वाली तकनीकों के बारे में जानकारी रखें.

क्या ना करें

⦁ ऐसी अवस्था में गाड़ी ना चलाएं, जब आप थके हुए हो, नींद में हो या नशे का सेवन किए हो.

⦁ अपने गंतव्य स्थल पर जल्दी पहुंचने की हड़बड़ी में किसी भी तरह का खतरा मोल ना लें.

⦁ यदि आप किसी ऐसे व्यक्ति की देखभाल कर रहे हैं, जो किसी दुर्घटना का शिकार है और पूरी तरह से या आंशिक तौर पर बेहोश हो, तो उसे किसी भी प्रकार का द्रव्य ना दें.

⦁ ऐसी ही अवस्था में यदि किसी व्यक्ति के सर या रीढ़ की हड्डी में चोट लगी हो, तो उसे चिकित्सक या किसी स्वास्थ्य कर्मी की अनुपस्थिति में ना हिलाएं. ऐसा करने से उनकी समस्या बढ़ सकती है.

ट्रॉमा की अवस्था में क्या करें

  • इलाज के अलावा जरूरी है कि चिकित्सक द्वारा दिए गए सभी दिशा निर्देशों का पालन किया जाए.
  • पीड़ित व्यक्ति के परिजनों के लिए जरूरी है कि वे पीड़ित के आत्मविश्वास को बनाए रखने के लिए प्रयास करें.
  • पीड़ित के साथ धैर्य पूर्वक व्यवहार करें क्योंकि ऐसी अवस्था में कई बार मरीज बहुत चिड़चिड़ा तथा मानसिक अवसाद का शिकार हो सकता है.
  • यदि रोग का असर पीड़ित के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है, तो बहुत जरूरी है कि किसी मनोचिकित्सक की मदद ली जाए.

हर साल पूरी दुनिया में लाखों-करोड़ों लोग अचानक घटित होने वाली घटनाओं के चलते मृत्यु या शारीरिक अक्षमता का शिकार हो जाते हैं. इस तरह की घटनाओं से ना सिर्फ पीड़ित, उसके परिजन, उसके जानने पहचानने वाले लोग तथा उसके दोस्त प्रभावित होते हैं, बल्कि संचार के विभिन्न माध्यम जैसे अखबार या टीवी के चलते ऐसी खबरों के बारे में सूचना प्राप्त करने वाले आमजन भी बड़ी संख्या में प्रभावित होते हैं. इस तरह की परिस्थितियों से कैसे सुरक्षा तथा बचाव संभव है, इस बारे में लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 17 अक्टूबर को पूरी दुनिया में 'विश्व ट्रॉमा दिवस' मनाया जाता है.

क्या है ट्रॉमा

चिकित्सा जगत में ट्रॉमा को एक शारीरिक क्षति माना जाता है. ऐसे शारीरिक अवस्था जो अचानक से घटित होने वाली किसी दुर्घटना के परिणाम स्वरुप उत्पन्न होती है. सड़क दुर्घटना सहित किसी भी प्रकार की दुर्घटना, घरेलू हिंसा, प्राकृतिक आपदा तथा बहुत सी अवस्थाएं हैं, जिनके द्वारा होने वाली क्षति के कारण ट्रॉमा हो सकता हैं. ट्रॉमा से मनुष्य के शरीर पर पड़ने वाले प्रभाव शारीरिक तथा मानसिक दोनों प्रकार के हो सकते हैं. लेकिन कई बार इन आघातों के चलते होने वाली शारीरिक विकलांगता का व्यक्ति की मनःस्थिति पर गहरा असर पड़ता है.

ट्रॉमा के कारणों में सबसे मुख्य रोड ट्रैफिक एक्सीडेंट जिसे 'आरटीए' के नाम से भी जाना जाता है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार वर्ष 2013 में सिर्फ भारत में लगभग 1 लाख 37 हजार लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे गए थे. तब से यह संख्या लगातार बढ़ रही है.

ट्रॉमा से जुड़े जरूरी तथ्य

⦁ हर साल दुनिया भर में लगभग 5 मिलियन लोग और सिर्फ हिंदुस्तान में एक मिलियन लोग सड़क दुर्घटनाओं के चलते मृत्यु और बड़ी संख्या में शारीरिक विकलांगता का शिकार बनते हैं.

⦁ दुनिया भर में होने वाली सड़क दुर्घटनाओं में 1/5 भारत में होती हैं.

⦁ हमारे देश में कहा जाता है कि हर 2 मिनट में एक सड़क दुर्घटना तथा हर 8 मिनट में दुर्घटना के कारण एक व्यक्ति की मृत्यु होती है.

⦁ भारत में सड़क दुर्घटना का शिकार होने वाले लोगों में से अधिकांश युवा पुरुष होते हैं.

⦁ हर साल हमारे देश में सड़क दुर्घटनाओं की संख्या पिछले साल के मुकाबले 3 प्रतिशत बढ़ जाती हैं.

⦁ सड़क दुर्घटना के अलावा हमारे देश में कैंसर तथा हृदय संबंधी बीमारियां भी ट्रामा के मुख्य कारणों में से मानी जाती हैं.

दुर्घटनाओं से बचाव के लिए क्या करें और क्या ना करें

विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ के अनुसार लगभग 50 प्रतिशत सड़क दुर्घटनाएं विकसित देशों में होती हैं. सड़क दुर्घटनाओं के कारण होने वाली मृत्यु तथा शारीरिक विकलांगता की घटनाओं में कमी लाई जा सकती है, लेकिन ऐसा सिर्फ सड़क सुरक्षा के लिए नियम बनाने से संभव नहीं है. बहुत जरूरी है कि आमजन सड़क सुरक्षा के नियमों को जाने और माने. इसके अलावा घरों में होने वाली दुर्घटनाओं को लेकर प्राथमिक उपचार तथा जरूरी सुरक्षा मानकों के बारे में जानना भी लोगों के लिए बहुत जरूरी है. प्रचलित कहावत है कि इलाज से बेहतर बचाव है, इसलिए ट्रॉमा जैसी परिस्थिति से बचने के लिए इन नियमों का पालन किया जा सकता है.

क्या करें

⦁ सड़क पर सुरक्षा के लिए जरूरी नियम

1. सड़क सुरक्षा के नियमों का पालन करें.

2. गाड़ी चलाते समय सुरक्षा चिन्हों और ट्रैफिक सिग्नल का पालन करें.

3. दो पहिया वाहन चलाते समय हमेशा हेलमेट का उपयोग करें.

4. किसी भी प्रकार के वाहन को चलाते समय मोबाइल का उपयोग ना करें.

5. यदि आप लंबी यात्रा कर रहे हो, तो नियमित अंतराल पर छोटे-छोटे ब्रेक लें.

⦁ घर पर सुरक्षा के लिए जरूरी नियम

1. घर के छोटे बच्चों को सदैव बिजली के स्विच, और नुकीली चीजों से दूर रखें.

2. घर पर तथा अपनी गाड़ी में हमेशा फर्स्ट ऐड किट तैयार रखें.

3. सीढ़ियों, बालकनी, छत तथा खिड़कियों के लिए जरूरी सुरक्षा मानकों का उपयोग करें.

4. सीपीआर जैसी आपातकाल में जीवन को बचाने वाली तकनीकों के बारे में जानकारी रखें.

क्या ना करें

⦁ ऐसी अवस्था में गाड़ी ना चलाएं, जब आप थके हुए हो, नींद में हो या नशे का सेवन किए हो.

⦁ अपने गंतव्य स्थल पर जल्दी पहुंचने की हड़बड़ी में किसी भी तरह का खतरा मोल ना लें.

⦁ यदि आप किसी ऐसे व्यक्ति की देखभाल कर रहे हैं, जो किसी दुर्घटना का शिकार है और पूरी तरह से या आंशिक तौर पर बेहोश हो, तो उसे किसी भी प्रकार का द्रव्य ना दें.

⦁ ऐसी ही अवस्था में यदि किसी व्यक्ति के सर या रीढ़ की हड्डी में चोट लगी हो, तो उसे चिकित्सक या किसी स्वास्थ्य कर्मी की अनुपस्थिति में ना हिलाएं. ऐसा करने से उनकी समस्या बढ़ सकती है.

ट्रॉमा की अवस्था में क्या करें

  • इलाज के अलावा जरूरी है कि चिकित्सक द्वारा दिए गए सभी दिशा निर्देशों का पालन किया जाए.
  • पीड़ित व्यक्ति के परिजनों के लिए जरूरी है कि वे पीड़ित के आत्मविश्वास को बनाए रखने के लिए प्रयास करें.
  • पीड़ित के साथ धैर्य पूर्वक व्यवहार करें क्योंकि ऐसी अवस्था में कई बार मरीज बहुत चिड़चिड़ा तथा मानसिक अवसाद का शिकार हो सकता है.
  • यदि रोग का असर पीड़ित के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है, तो बहुत जरूरी है कि किसी मनोचिकित्सक की मदद ली जाए.
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