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जानलेवा हो सकता है बाइपोलर डिसऑर्डर

कभी खुशी, कभी गम जीवन का नियम है, लेकिन ये भावनाएं यदि अति की सीमा को पार कर जाए, तो हमारी मानसिक स्थिति को बिगाड़ सकती है. क्या आप जानते है की अकारण लगातार लंबी अवधि तक कभी बहुत ज्यादा खुशी, कभी उत्तेजना या कभी हद से ज्यादा दुखी होने जैसा व्यवहार बायपोलर समस्या हो सकता है?

Bipolar disorder
बाइपोलर डिसऑर्डर
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Published : Jan 27, 2021, 8:27 PM IST

बाइपोलर डिसऑर्डर एक कॉम्प्लेक्स साइक्लिक डिसऑर्डर है, जिसमें रोगी का मन लगातार कई महीनों या हफ्तों तक या तो बहुत उदास रहता है या फिर बहुत ज्यादा उत्साहित रहता है. इस रोग में व्यक्ति में अचानक और अकारण मूड स्विंग होते रहते है. मनोचिकित्सक बताते है की इस समस्या से ग्रसित व्यक्ति चाहकर भी अपने व्यवहार पर नियंत्रण नहीं रख पाता है. बाइपोलर डिसऑर्डर के बारे में ज्यादा जानकारी देते हुए वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. वीणा कृष्णन बताती है समस्या गंभीर होने पर बाइपोलर डिसऑर्डर से ग्रसित व्यक्तियों में आत्महत्या जैसी प्रवत्ति उत्पन्न होने का भी खतरा बढ़ जाता है.

बाइपोलर डिसऑर्डर

डॉ. वीणा कृष्णन बताती है की बाइपोलर डिसऑर्डर एक मूड डिसऑर्डर है, जिसे उन्माद और हाइपोमेनिया के रूप में भी समझा जा सकता है. इस मनोविकार में व्यक्ति का मूड बार-बार बदल सकता है, मूड बदलने की अवधि कभी कुछ दिनों की हो सकती है, तो कभी महीनों की. कभी वह ऊर्जा से भरा महसूस कर सकता है, तो कभी लगातार बिना थकान महसूस किए दिन और रात काम करता या सोचता रहता है. और कभी अकारण गहन अवसाद का शिकार हो जाता है. इस अवस्था में बदलाव हाइपोमेनिक भी हो सकते है. यदि समय पर इस मनोविकार के बारे में पता चल जाए, तो व्यक्ति के व्यवहार को विभिन्न थेरेपी तथा दवाइयों की मदद से नियंत्रित किया जा सकता है, लेकिन यदि समस्या बढ़ जाए, तो व्यक्ति आत्महत्या या अन्य तरीकों से स्वयं को हानी पहुंचाने का प्रयास कर सकता है.

बाइपोलर डिसऑर्डर के लक्षण

आमतौर पर इस डिसऑर्डर के लक्षण समस्या ज्यादा बिगड़ने तक सामान्य ही रहते है. किसी भी प्रकार के व्यवहार की अति के अलावा बाइपोलर डिसऑर्डर के अन्य लक्षण इस प्रकार है;

  • नींद ना आना
  • तनाव, क्रोध, डिप्रेशन और थकान होना
  • व्यवहार में चिड़चिड़ा होना
  • सोचने में परेशानी होना तथा भूलने की बीमारी होना
  • किसी भी काम में इच्छा की कमी
  • दूसरों से बात करने में परेशानी होना
  • ऊर्जा की कमी या काम में मन ना लगना
  • हमेशा अपने ख्‍यालों में खोये रहना
  • विचारों पर काबू ना कर पाना
  • नशीले पदार्थों की लत
  • खरीदारी जैसी आदतों पर नियंत्रण ना कर पाना और बेकार की चीजों पर बहुत पैसा खर्च करना
  • खाना ना खाना या बहुत कम बात चीत करना
  • अकारण और अचानक दुखी होना
  • इस तरह के विचारों पर व्यक्ति का कोई नियंत्रण ना रहना
  • कोई भी बात को बार-बार बोलना, जल्दी-जल्दी बोलना या लगातार दोहराते रहना
  • स्वयं को नुकसान पहुंचाने वाले काम करना, जैसे कि काटना, जलाना या किसी दवाई का ओवरडोज कर लेना
  • आत्महत्या जैसे विचार बार-बार आना
  • बैचैनी भरा या लापरवाह व्यवहार, जैसे कि असुरक्षित यौन संबंध और लापरवाह ड्राइविंग
  • अकेले में डरना
  • लोगों के साथ होते हुए भी अकेलेपन महसूस होना

बाइपोलर डिसऑर्डर के कारण

ज्यादातर मामलों में मस्तिष्क में होने वाले भौतिक बदलाव इस मनोविकार के लिए जिम्मेदार होते हैं. वहीं न्यूरोट्रान्समीटर, यानि प्राकृतिक रूप से हमारे मस्तिष्क के रसायनों में असंतुलन के कारण यह मनोविकार हो सकता है.

व्यवहारपरक कारणों की बात करें तो, डॉ. कृष्णन बताती है इंसानी आदतों में तुलना करना सबसे आम बात है. विशेषतौर पर इंसानों की आदतों, उनके व्यवहार, उनकी शख्सियत तथा सौन्दर्य, तो कई बार उनकी सामाजिक व आर्थिक स्थिति तुलना का आधार बनती है. लोगों का तुलनात्मक व्यवहार ऐसे लोगों के मन में हीन भावना या असुरक्षा का भाव उत्पन्न कर देता है, जिन्हें कमतर आंका जाता है. यह समस्या बाइपोलर डिसऑर्डर होने का बड़ा कारण होती है.

इसके अलावा हद से ज्यादा नशीले पदार्थों के सेवन की लत भी इस समस्या का कारण बन सकती है. बहुत ज्यादा तनाव या अवसाद की स्थिति भी इस रोग को जन्म देती है.

डॉ. कृष्णन बताती है की बाइपोलर डिसऑर्डर आनुवंशिक रोग की श्रेणी में भी आता है. ऐसे लोग जिनके परिवार में इस मनोविकार के रोगी हो, उन्हें यह समस्या होने का खतरा अधिक रहता है.

बाइपोलर डिसऑर्डर का इलाज

डॉ. कृष्णन बताती है की एमएचपी मानसिक स्वास्थ्य की जांच करके, ईसीटी जैसी पारिवारिक थेरेपी, तथा टॉक थेरेपी की मदद से इस रोग की जांच तथा इलाज किया जा सकता है. इसके अलावा इलेक्ट्रोकोनवल्सी थेरेपी सहित अन्य विभिन्न थेरेपियों तथा मूड स्टेबलाइजर्स और एंटीडिपेंटेंट्स जैसी दवाइयों की मदद से रोगी का इलाज किया जाता है.

क्या करें और क्या नहीं करें

  1. तनाव बाइपोलर डिसऑर्डर के मुख्य कारणों में से एक माना जाता है, इसलिए जहां तक संभव हो तनाव से बचे.
  2. नशीले पदार्थों से दूर रहें, क्‍योंकि सिगरेट या शराब के सेवन से तनाव घटने की बजाय बढ़ता है और तनाव बाइपोलर डिसऑर्डर को बढ़ाता है.
  3. बाइपोलर डिसऑर्डर में नियमित योग, ध्यान तथा व्‍यायाम का अभ्यास बेहतर उपाय है. यह शरीर को स्वस्थ रखने के साथ ही भावनाओं को नियंत्रित रखने तथा नींद ना आने जैसी समस्या को दूर करने में मदद करते है.
  4. दिनचर्या तथा भोजन को संतुलित रखने का प्रयास करें.
  5. सकारात्मक सोच बनाए रखें.

बाइपोलर डिसऑर्डर एक कॉम्प्लेक्स साइक्लिक डिसऑर्डर है, जिसमें रोगी का मन लगातार कई महीनों या हफ्तों तक या तो बहुत उदास रहता है या फिर बहुत ज्यादा उत्साहित रहता है. इस रोग में व्यक्ति में अचानक और अकारण मूड स्विंग होते रहते है. मनोचिकित्सक बताते है की इस समस्या से ग्रसित व्यक्ति चाहकर भी अपने व्यवहार पर नियंत्रण नहीं रख पाता है. बाइपोलर डिसऑर्डर के बारे में ज्यादा जानकारी देते हुए वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. वीणा कृष्णन बताती है समस्या गंभीर होने पर बाइपोलर डिसऑर्डर से ग्रसित व्यक्तियों में आत्महत्या जैसी प्रवत्ति उत्पन्न होने का भी खतरा बढ़ जाता है.

बाइपोलर डिसऑर्डर

डॉ. वीणा कृष्णन बताती है की बाइपोलर डिसऑर्डर एक मूड डिसऑर्डर है, जिसे उन्माद और हाइपोमेनिया के रूप में भी समझा जा सकता है. इस मनोविकार में व्यक्ति का मूड बार-बार बदल सकता है, मूड बदलने की अवधि कभी कुछ दिनों की हो सकती है, तो कभी महीनों की. कभी वह ऊर्जा से भरा महसूस कर सकता है, तो कभी लगातार बिना थकान महसूस किए दिन और रात काम करता या सोचता रहता है. और कभी अकारण गहन अवसाद का शिकार हो जाता है. इस अवस्था में बदलाव हाइपोमेनिक भी हो सकते है. यदि समय पर इस मनोविकार के बारे में पता चल जाए, तो व्यक्ति के व्यवहार को विभिन्न थेरेपी तथा दवाइयों की मदद से नियंत्रित किया जा सकता है, लेकिन यदि समस्या बढ़ जाए, तो व्यक्ति आत्महत्या या अन्य तरीकों से स्वयं को हानी पहुंचाने का प्रयास कर सकता है.

बाइपोलर डिसऑर्डर के लक्षण

आमतौर पर इस डिसऑर्डर के लक्षण समस्या ज्यादा बिगड़ने तक सामान्य ही रहते है. किसी भी प्रकार के व्यवहार की अति के अलावा बाइपोलर डिसऑर्डर के अन्य लक्षण इस प्रकार है;

  • नींद ना आना
  • तनाव, क्रोध, डिप्रेशन और थकान होना
  • व्यवहार में चिड़चिड़ा होना
  • सोचने में परेशानी होना तथा भूलने की बीमारी होना
  • किसी भी काम में इच्छा की कमी
  • दूसरों से बात करने में परेशानी होना
  • ऊर्जा की कमी या काम में मन ना लगना
  • हमेशा अपने ख्‍यालों में खोये रहना
  • विचारों पर काबू ना कर पाना
  • नशीले पदार्थों की लत
  • खरीदारी जैसी आदतों पर नियंत्रण ना कर पाना और बेकार की चीजों पर बहुत पैसा खर्च करना
  • खाना ना खाना या बहुत कम बात चीत करना
  • अकारण और अचानक दुखी होना
  • इस तरह के विचारों पर व्यक्ति का कोई नियंत्रण ना रहना
  • कोई भी बात को बार-बार बोलना, जल्दी-जल्दी बोलना या लगातार दोहराते रहना
  • स्वयं को नुकसान पहुंचाने वाले काम करना, जैसे कि काटना, जलाना या किसी दवाई का ओवरडोज कर लेना
  • आत्महत्या जैसे विचार बार-बार आना
  • बैचैनी भरा या लापरवाह व्यवहार, जैसे कि असुरक्षित यौन संबंध और लापरवाह ड्राइविंग
  • अकेले में डरना
  • लोगों के साथ होते हुए भी अकेलेपन महसूस होना

बाइपोलर डिसऑर्डर के कारण

ज्यादातर मामलों में मस्तिष्क में होने वाले भौतिक बदलाव इस मनोविकार के लिए जिम्मेदार होते हैं. वहीं न्यूरोट्रान्समीटर, यानि प्राकृतिक रूप से हमारे मस्तिष्क के रसायनों में असंतुलन के कारण यह मनोविकार हो सकता है.

व्यवहारपरक कारणों की बात करें तो, डॉ. कृष्णन बताती है इंसानी आदतों में तुलना करना सबसे आम बात है. विशेषतौर पर इंसानों की आदतों, उनके व्यवहार, उनकी शख्सियत तथा सौन्दर्य, तो कई बार उनकी सामाजिक व आर्थिक स्थिति तुलना का आधार बनती है. लोगों का तुलनात्मक व्यवहार ऐसे लोगों के मन में हीन भावना या असुरक्षा का भाव उत्पन्न कर देता है, जिन्हें कमतर आंका जाता है. यह समस्या बाइपोलर डिसऑर्डर होने का बड़ा कारण होती है.

इसके अलावा हद से ज्यादा नशीले पदार्थों के सेवन की लत भी इस समस्या का कारण बन सकती है. बहुत ज्यादा तनाव या अवसाद की स्थिति भी इस रोग को जन्म देती है.

डॉ. कृष्णन बताती है की बाइपोलर डिसऑर्डर आनुवंशिक रोग की श्रेणी में भी आता है. ऐसे लोग जिनके परिवार में इस मनोविकार के रोगी हो, उन्हें यह समस्या होने का खतरा अधिक रहता है.

बाइपोलर डिसऑर्डर का इलाज

डॉ. कृष्णन बताती है की एमएचपी मानसिक स्वास्थ्य की जांच करके, ईसीटी जैसी पारिवारिक थेरेपी, तथा टॉक थेरेपी की मदद से इस रोग की जांच तथा इलाज किया जा सकता है. इसके अलावा इलेक्ट्रोकोनवल्सी थेरेपी सहित अन्य विभिन्न थेरेपियों तथा मूड स्टेबलाइजर्स और एंटीडिपेंटेंट्स जैसी दवाइयों की मदद से रोगी का इलाज किया जाता है.

क्या करें और क्या नहीं करें

  1. तनाव बाइपोलर डिसऑर्डर के मुख्य कारणों में से एक माना जाता है, इसलिए जहां तक संभव हो तनाव से बचे.
  2. नशीले पदार्थों से दूर रहें, क्‍योंकि सिगरेट या शराब के सेवन से तनाव घटने की बजाय बढ़ता है और तनाव बाइपोलर डिसऑर्डर को बढ़ाता है.
  3. बाइपोलर डिसऑर्डर में नियमित योग, ध्यान तथा व्‍यायाम का अभ्यास बेहतर उपाय है. यह शरीर को स्वस्थ रखने के साथ ही भावनाओं को नियंत्रित रखने तथा नींद ना आने जैसी समस्या को दूर करने में मदद करते है.
  4. दिनचर्या तथा भोजन को संतुलित रखने का प्रयास करें.
  5. सकारात्मक सोच बनाए रखें.
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