बेतिया: बिहार में लगातार बारिश ( Rain in bihar ) और नेपाल की नदियों के जलस्तर में बढ़ोतरी हो रही है. उत्तर बिहार के बेतिया में बाढ़ ( Flood in Bettiah) से हालात खराब हो गए हैं. सिकटा प्रखंड का पुरैनिया पंचायत का महेशड़ा गांव पूरी तरह से टापू बन चुका है. गांव में आने जाने का कोई रास्ता नहीं है. महेशड़ा गांव में जाने के लिए नाव ही एकमात्र सहारा. सिकटा प्रखंड का यह आखिरी पंचायत हैं. जहां पर विकास कोसों दूर है. यहां के ग्रामीणों में नाराजगी है. यही कारण है कि पिछले विधानसभा में जदयू को अपनी सीट गंवानी पड़ी थी.
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सिकटा के दर्जनभर से ज्यादा गांव प्रभावित
पुरैनैतिया पंचायत के ग्रामीणों का कहना है कि पिछले 15 दिनों में 2 बार यह गांव बाढ़ की चपेट में आ चुका है. इसके बावजूद अभी तक इस गांव में सरकारी नाव तक की व्यवस्था नहीं हुई है. सिकटा प्रखंड के पुरैनिया पंचायत का मेहशड़ा गांव, कदमवा गांव समेत पंचायत के कई गांव बाढ़ की चपेट में हैं. पुरैनिया पंचायत टापू बना हुआ है. लोगों को अगर बाजार सामान खरीदने के लिए जाना पड़ता हैं या किसी की तबीयत खराब हो जाए तो नाव ही एक मात्र सहारा हैं. वह भी निजी नाव हैं पैसे देकर जाना पड़ता है. शाम पांच बजे के बाद ये भी भी नहीं मिलता. अगर अचानक किसी की तबीयत खराब हो जाए तो वह गांव में ही फंसा रह जाएगा. ऐसे में गांव से निकलने के लिए एक सरकारी नाव की भी जरूरत है.
'यहां विकास हुआ ही नहीं है. हर साल बाद तबाही लेकर आती है. ये हमारा नसीब ही बन चुका हो. हमारी किस्मत ही ऐसी है हर साल बाढ़ की तबाही हमें झेलनी पड़ती हैं. 15 दिनों के अंदर दो बार गांव में बाढ़ आ गई. पहले आया बाढ़ का पानी अभी गांव से बाहर निकला ही नहीं था कि फिर दूसरी बार यह पंचायत बाढ़ की चपेट आ गया.' :- बाढ़ पीड़ित
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सरकारी नाव की हो व्यवस्था
ग्रामीणों की माने तो विधायक व सांसद कभी इनकी सुध लेने कभी आते ही नहीं है. इस गांव में विकास हुआ ही नहीं है. यहीं कारण कि पिछले विधानसभा चुनाव में जदयू विधायक खुर्शीद आलम को हार का सामना करना पड़ा. बता दें कि पिछले कई दिनों से लगातार हो रही बारिश के कारण नदियों का जलस्तर बढ़ गया है. सिकटा प्रखंड का महेशड़ा पंचायत आखरी पंचायत है. यहां की स्थिति बहुत ही भयावह है. ऐसे में जिला प्रशासन को चाहिए कि बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में नाव की व्यवस्था की जाए ताकि लोग गांव से बाहर निकल सके.
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