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ODF का सच: बेतिया के इस गांव में नहीं है एक भी शौचालय, जंगल में जाने को मजबूर हैं लोग

ग्रामीणों का कहना है कि शौचालय नहीं होने से बुजुर्गों और बच्चों को ज्यादा परेशानी होती है. जंगल में शौच के लिए जाने से डर लगता है.

हरिहरपुर गांव
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Published : Aug 19, 2019, 9:20 PM IST

बेतियाः आजादी का 73 वां वर्षगांठ मनाने के साथ ही हम चांद पर आशियाना बनाने की बात कर रहे हैं. हम डिजिटल इंडिया की बात कर रहे हैं, लेकिन बदलते भारत के बिहार राज्य की एक दूसरी तस्वीर ये भी है, जहां आज भी ना तो रौशनी के लिए बिजली है ना शौच जाने के लिए शौचालय. यहां आज भी महिलाएं और पुरुष शौच के लिए खुले आसमान में जाने को विवश हैं.

नहीं मिला सरकारी योजना का लाभ
हम बात कर रहे हैं बेतिया के आदिवासी बहुल गांव हरिहरपुर की, जो बगहा अनुमंडल के रामनगर प्रखंड के अंतर्गत आता है. यह मशान नदी और चिउटाहां जंगल के ठीक किनारे बसा है. इस गांव में सरकारी नुमाइंदे शायद ही पहुंचते हैं. विकास के नाम पर गांव में सिर्फ पीसीसी ढलाई की गई सड़क ही दिखती है. ना तो यहां बच्चों के पढ़ने के लिए विद्यालय है और ना ही ग्रामीणों को किसी भी सरकारी योजना का लाभ ही मिला है.

बदहाल गांव और बयान देते लोग

मिट्टी के चूल्हे पर बनाते हैं खाना
यहां लोग आज भी मिट्टी के चूल्हे पर खाना बनाते हैं. जलावन के तौर पर गन्ने का सूखा डंठल या झाड़ उपयोग करते हैं. इतना ही नहीं शौच करने के लिए भी जंगल का रुख करना इनकी मजबूरी है. क्योंकि गांव में किसी के घर में शौचालय ही नहीं है. इंदिरा आवास, आयुष्मान योजना, उज्ज्वला योजना और बाकी सरकारी योजनाओं की तो बात ही छोड़ दीजिए.

women
स्थानीय महिलाएं

जमीन पर वन विभाग का दावा
दरअसल, जंगल किनारे बसे इस आदिवासी गांव के लोग यहां कई पुश्तों से रहते आ रहे हैं. यहां की जमीन पर खेती बाड़ी भी करते हैं. लेकिन बीते एक दशक से वन अधिनियम कानून लागू होने के बाद अब इनकी जमीन की रसीद व पट्टा कटना भी बंद हो गया है. वन विभाग इनकी जमीन पर अपना दावा ठोक रही है. जिस वजह से यहां के ग्रामीणों को आवास, आय और जाती प्रमाण पत्र मिलना बंद हो गया है.

old man
जानकारी देते बुजुर्ग

सरकारी रवैये से आक्रोशित ग्रामीण
अब ये ग्रामीण अपनी पहचान के लिए लड़ने को मजबूर हो गए हैं. ग्रामीणों का कहना है कि शौचालय नहीं होने से जंगल में शौच करने जाना पड़ता है. जहां जंगली जानवरों का डर बना रहता है. साथ ही बच्चे शिक्षा से भी महरूम हैं. ऐसे में ग्रामीण अब वन अधिकार समिति बना सरकार से दो-दो हाथ करने की तैयारी कर रहे हैं.

old woman
गांव की बुजुर्ग औरत

आज भी विकास से महरूम हैं लोग
एक तरफ सरकार ग्राउंड लेवल पर विकास की किरणें पहुंचाने का दावा करती है, वहीं, दूसरी तरफ जंगल से सटे दर्जनों आदिवासी बहुल इलाके के लोग अपनी पहचान पाने के लिए आंदोलन करने को भी तैयार हैं. बहरहाल चाहे जो भी हो आखिरी आदमी तक विकास का लाभ पहुंचाने की सरकार की मंशा पूरी नहीं हो पा रही है.

बेतियाः आजादी का 73 वां वर्षगांठ मनाने के साथ ही हम चांद पर आशियाना बनाने की बात कर रहे हैं. हम डिजिटल इंडिया की बात कर रहे हैं, लेकिन बदलते भारत के बिहार राज्य की एक दूसरी तस्वीर ये भी है, जहां आज भी ना तो रौशनी के लिए बिजली है ना शौच जाने के लिए शौचालय. यहां आज भी महिलाएं और पुरुष शौच के लिए खुले आसमान में जाने को विवश हैं.

नहीं मिला सरकारी योजना का लाभ
हम बात कर रहे हैं बेतिया के आदिवासी बहुल गांव हरिहरपुर की, जो बगहा अनुमंडल के रामनगर प्रखंड के अंतर्गत आता है. यह मशान नदी और चिउटाहां जंगल के ठीक किनारे बसा है. इस गांव में सरकारी नुमाइंदे शायद ही पहुंचते हैं. विकास के नाम पर गांव में सिर्फ पीसीसी ढलाई की गई सड़क ही दिखती है. ना तो यहां बच्चों के पढ़ने के लिए विद्यालय है और ना ही ग्रामीणों को किसी भी सरकारी योजना का लाभ ही मिला है.

बदहाल गांव और बयान देते लोग

मिट्टी के चूल्हे पर बनाते हैं खाना
यहां लोग आज भी मिट्टी के चूल्हे पर खाना बनाते हैं. जलावन के तौर पर गन्ने का सूखा डंठल या झाड़ उपयोग करते हैं. इतना ही नहीं शौच करने के लिए भी जंगल का रुख करना इनकी मजबूरी है. क्योंकि गांव में किसी के घर में शौचालय ही नहीं है. इंदिरा आवास, आयुष्मान योजना, उज्ज्वला योजना और बाकी सरकारी योजनाओं की तो बात ही छोड़ दीजिए.

women
स्थानीय महिलाएं

जमीन पर वन विभाग का दावा
दरअसल, जंगल किनारे बसे इस आदिवासी गांव के लोग यहां कई पुश्तों से रहते आ रहे हैं. यहां की जमीन पर खेती बाड़ी भी करते हैं. लेकिन बीते एक दशक से वन अधिनियम कानून लागू होने के बाद अब इनकी जमीन की रसीद व पट्टा कटना भी बंद हो गया है. वन विभाग इनकी जमीन पर अपना दावा ठोक रही है. जिस वजह से यहां के ग्रामीणों को आवास, आय और जाती प्रमाण पत्र मिलना बंद हो गया है.

old man
जानकारी देते बुजुर्ग

सरकारी रवैये से आक्रोशित ग्रामीण
अब ये ग्रामीण अपनी पहचान के लिए लड़ने को मजबूर हो गए हैं. ग्रामीणों का कहना है कि शौचालय नहीं होने से जंगल में शौच करने जाना पड़ता है. जहां जंगली जानवरों का डर बना रहता है. साथ ही बच्चे शिक्षा से भी महरूम हैं. ऐसे में ग्रामीण अब वन अधिकार समिति बना सरकार से दो-दो हाथ करने की तैयारी कर रहे हैं.

old woman
गांव की बुजुर्ग औरत

आज भी विकास से महरूम हैं लोग
एक तरफ सरकार ग्राउंड लेवल पर विकास की किरणें पहुंचाने का दावा करती है, वहीं, दूसरी तरफ जंगल से सटे दर्जनों आदिवासी बहुल इलाके के लोग अपनी पहचान पाने के लिए आंदोलन करने को भी तैयार हैं. बहरहाल चाहे जो भी हो आखिरी आदमी तक विकास का लाभ पहुंचाने की सरकार की मंशा पूरी नहीं हो पा रही है.

Intro:हम आजादी का 73 वां वर्षगाँठ मनाने के साथ ही चांद पर आशियाना बनाने की बात भी कर रहे हैं। लेकिन यह कहने व सुनने में कितना अजीब लगता है कि आज भी महिलाएं व पुरुष शौच के लिए खुले आसमान में जाने को विवश हैं। इतना ही नही विकसित राष्ट्र की बुनियाद गांवों के समग्र विकास से सम्भव होने की बात हो रही है ऐसे में आज भी कई ऐसे गांव हैं जहां विकास की रौशनी अब तक नही पहुच पाई।


Body:आदिवासी बहुल गांव हरिहर पुर बगहा अनुमंडल के रामनगर प्रखंड अंतर्गत पड़ता है। यह मशान नदी और चिउटाहाँ जंगल के ठीक किनारे बसा है। इस गांव में सरकारी नुमाइंदे अक्सर ही पहुच पाते हैं। विकास के नाम पर गांव में सिर्फ पीसीसी ढलाई की गई सड़क ही दिखती है। ना तो यहां बच्चों के पढ़ने के लिए विद्यालय है और ना ही ग्रामीणों को किसी भी सरकारी योजना का लाभ ही मिल पाता। लोग आज भी मिट्टी के चूल्हे पर खाना बनाते हैं और जलावन के तौर पर गन्ने का सूखा डंठल या झाड़ फुस उपयोग करते हैं। इतना ही नही शौच करने के लिए भी जंगल का रुख करना मजबूरी है क्योंकि गांव में किसी के घर मे शौचालय ही नही है। इंदिरा आवास , आयुष्मान योजना और बाकी सरकारी योजनाओं की तो बात ही छोड़ दीजिए।
दरअसल जंगल किनारे बसे इस आदिवासी गांव के लोग यहाँ कई पुश्तों से रहते आ रहे हैं और यहां के जमीन पर जोत आबाद भी करते हैं। लेकिन विगत एक दशक से वन अधिनियम कानून लागू होने के बाद अब इनको जमीन का रशीद व पट्टा कटना ही बंद हो गया है। वह विभाग इनके जमीन पर अपना दावा ठोक रही जिस वजह से यहां के ग्रामीणों को आवास, आय एवं जाती प्रमाण पत्र मिलना बंद हो गया है और अब ये ग्रामीण अपने पहचान के लिए लड़ने को मजबूर हो गए हैं। ग्रामीणों का कहना है कि शौचालय नही होने से जंगल में शौच करने जाना पड़ता है जहां जंगली जानवरों का भय बना रहता। साथ ही बच्चे शिक्षा से भी महरूम हो जा रहे। ऐसे में ग्रामीण अब वन अधिकार समिति बना सरकार से दो दो हाथ करने की तैयारी कर रहे हैं।
बाइट- राजीव रंजन उराँव, अध्यक्ष वन अधिकार समिति
बाइट- धनसरिया देवी
बाइट- बैजनाथ उराँव


Conclusion:एक तरफ सरकार ग्राउंड लेवल पर विकास की किरणे पहुचने का दावा करती है वही दूसरी तरफ जंगल से सटे दर्जनों आदिवासी बहुल इलाके के लोग आज भी अपनी पहचान पाने के लिए सरकार से दो दो हाथ कर रहे हैं। यह विडंबना मात्र ही है।
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