बेतियाः आजादी का 73 वां वर्षगांठ मनाने के साथ ही हम चांद पर आशियाना बनाने की बात कर रहे हैं. हम डिजिटल इंडिया की बात कर रहे हैं, लेकिन बदलते भारत के बिहार राज्य की एक दूसरी तस्वीर ये भी है, जहां आज भी ना तो रौशनी के लिए बिजली है ना शौच जाने के लिए शौचालय. यहां आज भी महिलाएं और पुरुष शौच के लिए खुले आसमान में जाने को विवश हैं.
नहीं मिला सरकारी योजना का लाभ
हम बात कर रहे हैं बेतिया के आदिवासी बहुल गांव हरिहरपुर की, जो बगहा अनुमंडल के रामनगर प्रखंड के अंतर्गत आता है. यह मशान नदी और चिउटाहां जंगल के ठीक किनारे बसा है. इस गांव में सरकारी नुमाइंदे शायद ही पहुंचते हैं. विकास के नाम पर गांव में सिर्फ पीसीसी ढलाई की गई सड़क ही दिखती है. ना तो यहां बच्चों के पढ़ने के लिए विद्यालय है और ना ही ग्रामीणों को किसी भी सरकारी योजना का लाभ ही मिला है.
मिट्टी के चूल्हे पर बनाते हैं खाना
यहां लोग आज भी मिट्टी के चूल्हे पर खाना बनाते हैं. जलावन के तौर पर गन्ने का सूखा डंठल या झाड़ उपयोग करते हैं. इतना ही नहीं शौच करने के लिए भी जंगल का रुख करना इनकी मजबूरी है. क्योंकि गांव में किसी के घर में शौचालय ही नहीं है. इंदिरा आवास, आयुष्मान योजना, उज्ज्वला योजना और बाकी सरकारी योजनाओं की तो बात ही छोड़ दीजिए.
जमीन पर वन विभाग का दावा
दरअसल, जंगल किनारे बसे इस आदिवासी गांव के लोग यहां कई पुश्तों से रहते आ रहे हैं. यहां की जमीन पर खेती बाड़ी भी करते हैं. लेकिन बीते एक दशक से वन अधिनियम कानून लागू होने के बाद अब इनकी जमीन की रसीद व पट्टा कटना भी बंद हो गया है. वन विभाग इनकी जमीन पर अपना दावा ठोक रही है. जिस वजह से यहां के ग्रामीणों को आवास, आय और जाती प्रमाण पत्र मिलना बंद हो गया है.
सरकारी रवैये से आक्रोशित ग्रामीण
अब ये ग्रामीण अपनी पहचान के लिए लड़ने को मजबूर हो गए हैं. ग्रामीणों का कहना है कि शौचालय नहीं होने से जंगल में शौच करने जाना पड़ता है. जहां जंगली जानवरों का डर बना रहता है. साथ ही बच्चे शिक्षा से भी महरूम हैं. ऐसे में ग्रामीण अब वन अधिकार समिति बना सरकार से दो-दो हाथ करने की तैयारी कर रहे हैं.
आज भी विकास से महरूम हैं लोग
एक तरफ सरकार ग्राउंड लेवल पर विकास की किरणें पहुंचाने का दावा करती है, वहीं, दूसरी तरफ जंगल से सटे दर्जनों आदिवासी बहुल इलाके के लोग अपनी पहचान पाने के लिए आंदोलन करने को भी तैयार हैं. बहरहाल चाहे जो भी हो आखिरी आदमी तक विकास का लाभ पहुंचाने की सरकार की मंशा पूरी नहीं हो पा रही है.