बगहा: लॉकडाउन का असर केवल जनजीवन पर ही नहीं बल्कि खेतीबाड़ी पर हुई है. वर्तमान में रबी फसल की कटाई शुरू हो चुकी रहती है. लेकिन कोरोना संक्रमण के भय से मजदूर अपने घरों से बाहर ही नहीं निकल रहे हैं. वहीं जिन किसानों के फसल की कटाई हो चुकी है. उन्हें बाजार तक पहुंचाने के लिए भी काफी परेशानियां सामने आ रही हैं. वहीं, सब्जी की खेती करने वाले किसान भी खासा परेशान है. किसानों का कहना है कि पहले मौसम की मार और अब लॉकडाउन की मार ने हमारी कमर तोड़ कर रख दी है.
'मौसम की मार के बाद लॉकडाउन'
सब्जी उत्पादकों का कहना है कि इस समय सब्जी पैदावर पूरी तरह से फेल है. पहले मौसम की मार और अब लॉकडाउन ने हमलोगों की हालत काफी पतली कर दी है. प्रकृति को झेलते हुए काफी जेद्दोजहद के बाद थोड़ी बहुत सब्जी का उत्पादन करवाया था. लेकिन, लॉकडाउन के कारण उन्हें बाजार तक पहुंचाने में काफी काफी परेशानियां सामने आ रही हैं. बाजार में भी अच्छी रेट नहीं मिल पा रहा है.
फंगस के कारण खराब हुई थी खेती- कृषि विशेषज्ञ
वहीं, इस मामले पर अनुमंडल क्षेत्र के कृषि विशेषज्ञ कल्याण शुक्ला ने बताया कि इस सीजन में जितने भी किसानों ने शिकायत की थी. उनके खेतों से सब्जियों का सैंपलिग लिया गया था. किसानों की शिकायत थी कि ठंड के कारण फसल खराब हुई थी. उन्होंने बताया कि अभी जिन सब्जियों का उत्पादन हो रहा है. उसे ठंड के समय में ही लगाया जाता है, लेकिन अत्यधिक ठंड के वजह से भिंडी, करैली, बोड़ा, नेनुआ और कद्दू जैसे सब्जियों में फंगस लग गया था. ज्यादा ठंड के कारण सब्जियों की पत्ते संकुचित हो गए थे. फिर से सब्जी लगाने की सोच रहा था. लेकिन लॉकडाउन की वजह से बाजार बंद है. उन्होंने सरकार और जिला प्रशासन से गुहार लगाते हुए बताया कि सरकार किसानों के लिए कृषि व्यवस्था को दुरुस्त करे. किसानों को फसल मुआवजा और अनुदान बढ़ा कर दे. जिससे किसानों को थोड़ी रहात मिल सके.
इलाके की मुख्य खेती है सब्जी उत्पादन
गौरतलब है कि जिले के रतनमाला, नयागांव, चम्पापुर, और दियारा सहित अन्य इलाके में सब्जी की खेती प्रमुखता से की जाती है. लेकिन, पहले मौसम की मार और वर्तमान में लॉकडाउन से अन्नदाता परेशान हैं. बता दें कि किसानों को राज्य सरकार ने लॉकडाउन से अलग रखा है. इसको लेकर सब्जी उत्पादक किसान योगेंद्र चौधरी, प्रदुम्न सिंह सहित दर्जनों किसानों ने बताया कि सुविधा के अभाव में खेत में तैयार फसल बर्बाद हो रहे हैं. सरकार ने किसानों के लिए बड़े-बड़े दावे जरूर किए हैं. लेकिन धरातल पर वादों का हकिकत से कोई लेनादेना नहीं है.