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Watch Video : 'छतरी न खोल बरसात में', बिहार में लौट आया लौंडा नाच, विलुप्त हो रही संस्कृति को जीवंत कर रहा थारू कलाकार

बिहार में विलुप्त हो रहे लौंडा नाच को थारू कलाकार जीवंत करने का काम कर रहे हैं. पश्चिम चंपारण के थारू कलाकारों ने एक नाच पार्टी बनाया है, जिसके माध्यम से लोगों का मनोरंजन किया जा रहा है. पढ़ें पूरी खबर.

बिहार का लौंडा नाच
बिहार का लौंडा नाच
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Nov 13, 2023, 5:28 PM IST

बेतिया में लौंडा नाच करते कलाकार

बेतियाः कभी भिखारी ठाकुर ने लौंडा नाच से प्रसिद्धि (Bihar Launda Dance ) पायी थी, लेकिन अश्लीलता के कारण धीरे-धीरे यह विलुप्त होने लगा. लौंडा नाच बिहार लोक संस्कृति का एक अहम हिस्सा रहा है, जिसे पश्चिम चंपारण के थारू कलाकार जीवंत करने काम कर रहे हैं. कलाकारों ने मिलकर एक नाच पार्टी बनाया है. यह नए अंदाज में लौंडा नाच को पेश कर लोगों का मनोरंजन करने के साथ साथ संस्कृति को जिंदा करने का काम कर रहे हैं.

थारू कलाकार की पहलः बिहार में त्योहार का समय चल रहा है. ऐसे में जगह जगह कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है. पश्चिमी चंपारण जिले के थरुहट इलाके में जगह-जगह कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं, जिसमें कई नए पुरुष कलाकार महिलाओं का वेष धारण कर लौंडा नाच कर रहे हैं.

क्या है लौंडा नाचः लौंडा नाच एक बिहारी नृत्य है, जिसमें पुरुष महिलओं का वस्त्र पहनकर नाच करते हैं. पहले के समय में ज्यादातर कार्यक्रम में लौंडा नाच कराया जाता था. शादी, मुंडन, नाटक, जन्मदिन आदि कार्यक्रम में भव्य तरीके से लौंडा नाच कराया जाता था. भिखारी ठाकुर ने इसे खूब बढ़ावा दिया था, लेकिन धीरे-धीरे यह कला विलुप्त होने लगा.

भिखारी ठाकुर ने दिलाई पहचानः भिखारी ठाकुर को भोजपुरी का शेक्सपियर भी कहा जाता है. इन्होंने भोजुरी गीत, नाटक और लौंडा नाच से अपनी पहचान बनाई. इसी लौंडा नाच को लेकर भिखारी ठाकुर की मंडली में काम करने वाले अंतिम सदस्य रामचंद्र मांझी को 2021 में पद्मश्री अवार्ड दिया गया. रामचंद्र मांझी 95 साल तक लौंडा नाच करते थे. इसके बाद यह कला खत्म होते चला गया, लेकिन पश्चिम चंपारण के कलाकारों ने इसे जीवंत करने का काम शुरू किया है.

10 साल की उम्र से लौंडा नाच करते थे भिखारी ठाकुरः भिखारी ठाकुर 10 साल की उम्र से ही अपनी मंडली बना ली थी, जिसमें रामचंद्र मांझी, गौरी शंकर ठाकुर, प्रभुनाथ ठाकुर, दिनकर ठाकुर और शत्रुघ्न ठाकुर शामिल थे. सभी मिलकर इस मंडली को चलाते थे. बिहार का लौंडा नाच यूपी, झारखंड और बंगाल तक फेमश था. रामचंद्र मांझी का निधन पिछले साल 96 साल की उम्र में हो गया.

क्यों विलुप्त हो रहा बिहार का लौंडा नाचः पिछले कुछ सालों में लौंडा नाच धीरे धीरे खत्म होने लगा. इसका बड़ा कारण सिनेता और आर्केस्ट्रा है, जिससे सामने लोगों को लौंडा नाच फीका लगने लगा. लोग लड़कों का लौंडा नाच से ज्यादा लड़की का स्टेज डांस देखना पसंद करने लगे. हालांकि एक बार फिर पश्चिम चंपारण इस संस्कृति को जीवंत करने में जुटे हैं.

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बेतिया में लौंडा नाच करते कलाकार

बेतियाः कभी भिखारी ठाकुर ने लौंडा नाच से प्रसिद्धि (Bihar Launda Dance ) पायी थी, लेकिन अश्लीलता के कारण धीरे-धीरे यह विलुप्त होने लगा. लौंडा नाच बिहार लोक संस्कृति का एक अहम हिस्सा रहा है, जिसे पश्चिम चंपारण के थारू कलाकार जीवंत करने काम कर रहे हैं. कलाकारों ने मिलकर एक नाच पार्टी बनाया है. यह नए अंदाज में लौंडा नाच को पेश कर लोगों का मनोरंजन करने के साथ साथ संस्कृति को जिंदा करने का काम कर रहे हैं.

थारू कलाकार की पहलः बिहार में त्योहार का समय चल रहा है. ऐसे में जगह जगह कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है. पश्चिमी चंपारण जिले के थरुहट इलाके में जगह-जगह कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं, जिसमें कई नए पुरुष कलाकार महिलाओं का वेष धारण कर लौंडा नाच कर रहे हैं.

क्या है लौंडा नाचः लौंडा नाच एक बिहारी नृत्य है, जिसमें पुरुष महिलओं का वस्त्र पहनकर नाच करते हैं. पहले के समय में ज्यादातर कार्यक्रम में लौंडा नाच कराया जाता था. शादी, मुंडन, नाटक, जन्मदिन आदि कार्यक्रम में भव्य तरीके से लौंडा नाच कराया जाता था. भिखारी ठाकुर ने इसे खूब बढ़ावा दिया था, लेकिन धीरे-धीरे यह कला विलुप्त होने लगा.

भिखारी ठाकुर ने दिलाई पहचानः भिखारी ठाकुर को भोजपुरी का शेक्सपियर भी कहा जाता है. इन्होंने भोजुरी गीत, नाटक और लौंडा नाच से अपनी पहचान बनाई. इसी लौंडा नाच को लेकर भिखारी ठाकुर की मंडली में काम करने वाले अंतिम सदस्य रामचंद्र मांझी को 2021 में पद्मश्री अवार्ड दिया गया. रामचंद्र मांझी 95 साल तक लौंडा नाच करते थे. इसके बाद यह कला खत्म होते चला गया, लेकिन पश्चिम चंपारण के कलाकारों ने इसे जीवंत करने का काम शुरू किया है.

10 साल की उम्र से लौंडा नाच करते थे भिखारी ठाकुरः भिखारी ठाकुर 10 साल की उम्र से ही अपनी मंडली बना ली थी, जिसमें रामचंद्र मांझी, गौरी शंकर ठाकुर, प्रभुनाथ ठाकुर, दिनकर ठाकुर और शत्रुघ्न ठाकुर शामिल थे. सभी मिलकर इस मंडली को चलाते थे. बिहार का लौंडा नाच यूपी, झारखंड और बंगाल तक फेमश था. रामचंद्र मांझी का निधन पिछले साल 96 साल की उम्र में हो गया.

क्यों विलुप्त हो रहा बिहार का लौंडा नाचः पिछले कुछ सालों में लौंडा नाच धीरे धीरे खत्म होने लगा. इसका बड़ा कारण सिनेता और आर्केस्ट्रा है, जिससे सामने लोगों को लौंडा नाच फीका लगने लगा. लोग लड़कों का लौंडा नाच से ज्यादा लड़की का स्टेज डांस देखना पसंद करने लगे. हालांकि एक बार फिर पश्चिम चंपारण इस संस्कृति को जीवंत करने में जुटे हैं.

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