बगहा: बिहार के बगहा रामनगर राज दरबार स्थित पूजा मंडप में शारदीय नवरात्र की सप्तमी तिथि पर मां भगवती को डोली में बैठकर धूमधाम से लाया गया है. इस दौरान सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी. इस मौके पर मां के स्वागत के लिए बड़ी संख्या में महिलाएं सड़क के दोनों किनारों पर लंबी कतार में खड़ी रहती हैं और आदिशक्ति मां को हलवा-पुड़ी बनाकर चढ़ाती हैं. यह परंपरा 150 वर्ष पुरानी है.
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मां के स्वागत में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़: राम मनगर राज दरबार की ओर से सैकड़ों वर्षों से मां भगवती की पूजा-अर्चना धूम धाम से की जाती है. इसके लिए सप्तमी को रामनगर से 5 किलोमीटर दूर स्थित देवी स्थान कोट बंजरिया माई स्थान से हजारों की संख्या में लोग पहुंचकर कूल देवी को डोली में बैठाकर पूजा मंडप में स्थापित करते हैं. इसी क्रम में आज कालरात्रि स्वरूप को डोली में लेकर राजघराने के सदस्यों की उपस्थिति में लोग पूजा मंडप में पहुंचे.
सप्तमी पर डोली में बैठकर आती हैं माता: राज दरबार की कुल देवी को वर्ष में मात्र एक दिन राज दरबार से षष्ठी के दिन निमंत्रण भेजा जाता है. नवरात्र के सप्तमी तिथि को देवी को डोली में बैठाकर राज दरबार स्थित पूजा मंडप में ले जाया जाता है. इस समय दर्शन करने के लिए हजारों के संख्या में महिलाएं सड़क के दोनों किनारों पर लंबी कतार में खड़ी रहती हैं और आदिशक्ति मां को हलवा-पुड़ी बनाकर चढ़ाती हैं. माना जाता है कि ऐसा करने से मां प्रसन्न होती हैं.
"नवरात्र के षष्ठी तिथि को शाम में राज दरबार से राजा, ब्राह्मण और कहार डोली लेकर कोट बंजरीया स्थान निमंत्रण देने जाते हैं. वहां से बेल को कूल देवी का रुप मानकर निमंत्रण देते हैं. फिर दूसरे दिन सप्तमी को मंत्रोच्चारण के साथ कुल देवी को पूजा भवन में स्थापित करने के लिए लाने जाया जाता है"- पुजारी, कपिलदेव मणी उपाध्याय
क्या बोले रामनगर राज दरबार के राजकुमार?: वहीं रामनगर राज घराने के राजकुमार ने बताया कि देवी को बेटी का स्वरूप मानकर डोली से लाया जाता है. फिर यहां पूजा कक्ष में स्थापित कर सप्तमी, अष्टमी, नवमी और दशमी तिथि को नेपाली विधि विधान से पूजा किया जाता है. जहां पूरे शहर समेत दूर दराज के क्षेत्रों से लोग पूजा-अर्चना और देवी के दर्शन के लिए भक्त पहुंचते हैं.
क्या है पौराणिक कथा?: स्थानीय लोगों ने बताया कि कोट बंजरिया की देवी ने राजा को स्वप्न दिखाया था कि वे उनकी कुल देवी हैं. जिसके बाद राज परिवार ने कुल देवी की विधिवत पूजा-अर्चना करना शुरू किया और देवी को राज दरबार चलने का आग्रह किया. जिसके बाद राजा को सपने में दर्शन देते हुए देवी ने कहा कि नवरात्र की सप्तमी के दिन उन्हे बुलाने पर वह जाएंगी, तभी से सप्तमी को इस स्थान पर बेल अपने आप गिर जाता था. उसी समय से राज दरबार से डोली आने की परंपरा का शुभारंभ हुआ.