बेतिया: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में बेतिया के रहने वाले एक शख्स का जिक्र किया. जिले के मझौलिया प्रखंड के रतनमाला पंचायत के रहने वाले प्रमोद बैठा और उनकी पत्नी संजू देवी ने आत्मनिर्भरता का उदाहरण पेश किया है. दोनों पति-पत्नी लॉकडाउन से पहले दिल्ली में मजदूरी का काम करते थे. आज यह अपने प्रदेश में उद्यमी बन गए हैं.
बगैर सरकारी मदद के प्रमोद बैठा मजदूर से मालिक बन गए. प्रमोद बैठा ने दर्जनों युवाओं को रोजगार भी दिया है. हालांकि प्रमोद बैठा कोभी अब सरकारी मदद की दरकार है.
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दर्जनों युवाओं को दिया है रोजगार
मझौलिया प्रखंड के रतनमाला पंचायत के रहने वाले प्रमोद बैठा दिल्ली की एलईडी बल्व की फैक्ट्री में बतौर टेक्नीशियन का काम करते थे. लेकिन आज प्रमोद बैठा आत्मनिर्भरता का उदाहरण पेश कर रहे हैं. अपने हाथों के हुनर, कड़ी मेहनत, सच्ची लगन और कुछ कर दिखाने के जज्बे के साथ प्रमोद बैठा अपने प्रदेश पश्चिमी चंपारण जिले के मझौलिया के रतनमाला अपने घर पहुंचे. अपने हुनर और आत्मविश्वास के साथ अपने घर रतनमाला में ही एलईडी बल्व बनाने का एक छोटा सा कारखाना डाल दिया. गांव के ही दर्जनों युवाओं को रोजगार दिया है.
प्रतिदिन प्रमोद बैठा के इस छोटे से कारखाने में 1000 एलईडी बल्व बनकर तैयार होता है. प्रमोद बैठा पूर्वी चंपारण और पश्चिमी चंपारण के दुकानों में एलईडी बल्व की सप्लाई करते हैं. उनके इस कारोबार में उनकी पत्नी भी साथ देती हैं.
बाजार में है 5000 बल्व की डिमांड
प्रमोद बैठा ने बताया कि एक बल्व बनाने में उनको 12 रुपये की लागत आती है. मार्केट में वह 14 से 15 रुपये में बेचते हैं. प्रति बल्व प्रमोद 2 रुपये मुनाफा कमाते हैं. प्रतिदिन 1000 बल्व देने रामनगर, नरकटियागंज, बेतिया, बगहा, पूर्वी चंपारण के सुगौली, अरेराज और रक्सौल तक प्रतिदिन जाते हैं. प्रमोद का कहना है कि मार्केट से 5000 बल्व की प्रतिदिन डिमांड है, लेकिन पूंजी के अभाव में अभी वह महज एक हजार बल्व भी रोजाना बना पाते हैं. इससे बाजार का ऑर्डर पूरा नहीं हो पाता. उनके हिसाब से कम से कम 5000 प्रतिदिन उत्पाद होना चाहिए. तब जाकर बाजार की डिमांड पूरी होगी.
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पत्नी और दोस्तों ने की मदद
प्रमोद बैठा और उनकी पत्नी संजू देवी ने बताया कि दिल्ली से घर आकर इस काम के शुरुआती दौर में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. धीरे-धीरे सफलता मिली. प्रमोद के अनुसार जब कारखाना लगाने में पैसे की कमी आई तो उसकी पत्नी ने उसका साथ दिया. स्वयं सहायता समूह से 25,000 लोन ले लिया. साथ में कुछ सगे संबंधी मित्रों ने भी खुले हाथ से उसे उधार दिया. जिसकी बदौलत पूंजी तैयार कर उसने 3 लाख 50 हजार रुपए की लागत से बल्व की फैक्ट्री लगा ली.
मजदूर भी हैं खुश
वहीं बल्व के इस कारखाने में काम कर रहे मजदूरों का कहना है कि लॉकडाउन के दौरान हम लोग अपने घर लौटे थे. अब गांव में ही हमें रोजगार मिल गया. अब हम अपना घर छोड़कर दूसरे प्रदेश में काम करने नहीं जाएंगे. हमें जो मजदूरी दूसरे प्रदेश में मिलता था. आज हमें यहीं पर मिल रहा है. हम यहां पर काम कर के खुश हैं.
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सरकार से मदद की है दरकार
प्रमोद की पत्नी और प्रमोद सरकारी मदद की गुहार लगा रहे हैं. जिले के मौजूदा जिला पदाधिकारी का ध्यान रोजगार सृजन पर है. परिवर्तन योजना के तहत नए-नए उद्योग लगाने पर जोर दे रहे हैं. उनका कहना है कि हमें पूर्ण विश्वास है कि जिला पदाधिकारी हमारे कारोबार का संज्ञान लेंगे और हमें भी सरकारी मदद देंगे. क्योंकि मोदी जी का जो मूल मंत्र था आत्मनिर्भर भारत की तो हमने आत्मनिर्भरता की मिसाल पेश की है. लेकिन जरूरत है इस कारखाने को आगे बढ़ाने की ताकि मेरा उत्पाद बढ़ सके. और मैं ज्यादा से ज्यादा मजदूरों को काम दे सकूं.