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बेतिया: थारू जनजाति के लोगों ने की वट वृक्ष की पूजा, सदियों से चल रही है परंपरा

बेतिया थारू जनजाति के लोगों ने रविवार को वट वृक्ष रूपी ब्रह्मा की परंपरागत तरीके से पूजा अर्चना की. मान्यता हैं कि पूजा करने से समाज में कोई बधाएं नही आती हैं. इनके बीच यह परंपरा सदियों से चली आ रही है.

Vat tree worship
वट वृक्ष की पूजा
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Published : Aug 2, 2020, 5:05 PM IST

बेतिया: इंडो नेपाल सीमा के अरावली पर्वत श्रृंखला के पास बसे थारू जनजाति के लोगों में एक अनोखी परंपरा आज भी जीवंत है. सावन महीने के आखिरी सप्ताह में गांव के सभी लोग एक समान होकर गांव में स्थित पीपल के वट वृक्ष की पूजा अर्चना करते हैं. यह परंपरा शादियों से चली आ रही है. पूर्वजों की ओर से बनाई गई जीवंत परंपरा को लोग आज भी हर्षोउल्लास के साथ मनाते हैं. वहीं, कोरोना वायरस के कारण लॉकडाउन की समस्या से जुझ रहें लोगों ने पूजा स्थल पर सोशल डिस्टेंस का पुरा ध्यान रखा. कोरोना काल की वजह से पूजा में बहुत ही कम श्रद्धालु शामिल हो पाएं.

वट वृक्ष की पूजा करने से दूर होती हैं बधाएं
थारू समाज में यह परंपरागत पूजा अर्चना रामगीर बारहगांवा के मैनाटांड़ से लेकर वाल्मीकि नगर तक किया जाता है. थारू महा संघ के पूर्व महासचिव सह पूर्व मुखिया इंद्रजीत चौधरी और थारू महासंघ के पूर्व अध्यक्ष शिव प्रसाद ने बताया कि वट वृक्ष के पूजा करने की परम्परा कब से शुरू हुई किसी को मालूम नहीं है. फिर भी पूर्वजों की ओर से बनाई परम्परा को निभाते आ रहे हैं. वट वृक्ष की पूजा करा रहे पुजारी रामेश्वर भगत ने बताया कि वट वृक्ष की पूजा करने से समाज से बधाएं दूर रहती हैं. पीपल के वृक्ष में ब्रह्मा का निवास होता है.

खीर और लड्डू चढ़ाने की परंपरा
पूजा शुरू होने से पहले गांव की महिलाएं दूध और चावल से बनी खीर और चावल के आटे को मिलाकर लड्डू बनती हैं. जिसे पीपल के वट वृक्ष की पूजा करने के समय प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है. पूजा अर्चना होने के बाद प्रसाद को गांव के सभी लोगों के बीच वितरण कर दिया जाता है.

बेतिया: इंडो नेपाल सीमा के अरावली पर्वत श्रृंखला के पास बसे थारू जनजाति के लोगों में एक अनोखी परंपरा आज भी जीवंत है. सावन महीने के आखिरी सप्ताह में गांव के सभी लोग एक समान होकर गांव में स्थित पीपल के वट वृक्ष की पूजा अर्चना करते हैं. यह परंपरा शादियों से चली आ रही है. पूर्वजों की ओर से बनाई गई जीवंत परंपरा को लोग आज भी हर्षोउल्लास के साथ मनाते हैं. वहीं, कोरोना वायरस के कारण लॉकडाउन की समस्या से जुझ रहें लोगों ने पूजा स्थल पर सोशल डिस्टेंस का पुरा ध्यान रखा. कोरोना काल की वजह से पूजा में बहुत ही कम श्रद्धालु शामिल हो पाएं.

वट वृक्ष की पूजा करने से दूर होती हैं बधाएं
थारू समाज में यह परंपरागत पूजा अर्चना रामगीर बारहगांवा के मैनाटांड़ से लेकर वाल्मीकि नगर तक किया जाता है. थारू महा संघ के पूर्व महासचिव सह पूर्व मुखिया इंद्रजीत चौधरी और थारू महासंघ के पूर्व अध्यक्ष शिव प्रसाद ने बताया कि वट वृक्ष के पूजा करने की परम्परा कब से शुरू हुई किसी को मालूम नहीं है. फिर भी पूर्वजों की ओर से बनाई परम्परा को निभाते आ रहे हैं. वट वृक्ष की पूजा करा रहे पुजारी रामेश्वर भगत ने बताया कि वट वृक्ष की पूजा करने से समाज से बधाएं दूर रहती हैं. पीपल के वृक्ष में ब्रह्मा का निवास होता है.

खीर और लड्डू चढ़ाने की परंपरा
पूजा शुरू होने से पहले गांव की महिलाएं दूध और चावल से बनी खीर और चावल के आटे को मिलाकर लड्डू बनती हैं. जिसे पीपल के वट वृक्ष की पूजा करने के समय प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है. पूजा अर्चना होने के बाद प्रसाद को गांव के सभी लोगों के बीच वितरण कर दिया जाता है.

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