बेतिया: सूबे के लाखों शिक्षक कई दिनों से हड़ताल पर हैं. जिसकी वजह से अधिकांश स्कूलों में ताले लटक रहे हैं. हालात ये हैं कि गांव के बच्चे कंचे खेलने और मवेशियों को चराने में जुटे हैं. ऐसे में इनका भविष्य दांव पर लगा है. अब ग्रामीण ये कह रहे हैं कि इनके भविष्य को लेकर न तो सरकार गंभीर दिख रही है, न ही शिक्षकों को इससे कोई फर्क पड़ रहा है.
स्कूलों में लटक रहा ताला, बच्चे चरा रहे मवेशी
बिहार सरकार बुनियादी शिक्षा को लेकर कितना सजग है. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि तकरीबन 4 लाख शिक्षकों के हड़ताल पर जाने से अधिकांश स्कूल बंद हो गए हैं और बच्चे कंचे खेलकर और मवेशी चराकर समय बिता रहे हैं. जिससे बच्चों का भविष्य अधर में लटक गया है, जिसकी सुधि लेने वाला कोई नहीं है.
एक पखवाड़े से बंद हैं अधिकांश विद्यालय
बता दें कि समान काम, समान वेतन की मांग को लेकर नियोजित शिक्षक 17 फरवरी से हड़ताल पर हैं. जिसकी वजह से अधिकांश प्राथमिक और मध्य विद्यालयों में ताला लटक रहा है. आदिवासी बहुल इलाके में तो स्कूल में सन्नाटा पसरा हुआ है. स्कूल का मैदान तो बकरियों का चारागाह बना हुआ है. नक्सल प्रभावित हसनापुर और सोहगी बरवा क्षेत्र में जब ईटीवी भारत संवाददाता ने जायजा लिया. तो स्कूलों में हड़ताल की वजह से बच्चे खेत में मवेशी चराते और गांव में कंचे खेलते दिखे. छात्रों ने कहा कि स्कूल बंद है तो इसके अलावा क्या कर सकते हैं.
'सरकार और शिक्षक दोनों हैं बेखबर'
स्कूलों में तालाबंदी को देखते हुए अब अभिभावकों के सब्र का बांध भी टूटने लगा है. इलाके के ग्रामीणों का कहना है कि बच्चों के भविष्य को लेकर न तो सरकार सजग दिख रही है और ना ही शिक्षकों को इससे कोई फर्क पड़ रह है. शिक्षक और सरकार के विवाद में छात्रों का भविष्य दांव पर लग गया है. अब बच्चे घर पर रहकर कंचे खेलने और मवेशी चराने में जुटे हुए हैं.