बगहा : बिहार की सुस्त पड़ी शिक्षा व्यवस्था एसीएस केके पाठक के आते ही पटरी पर लौटने लगी है. शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए हर दिन नए आदेश जारी किए जा रहे हैं और सरकारी विद्यालयों में उस फरमान को तत्काल गति दी जा रही है. इसी बीच एक ऐसा विद्यालय सामने आया है, जिसके बारे में आप जानकर यह जरूर सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि, जब इस विद्यालय की शिक्षा व्यवस्था इतनी बेहतर हो सकती है तो बिहार के अन्य सरकारी विद्यालय इतने बेहतर क्यों नहीं हो सकते.
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इको फ्रेंडली है स्कूल : दरअसल, इंडो-नेपाल सीमा से सटे तराई क्षेत्र में महादलित बस्ती में संचालित राजकीय प्राथमिक विद्यालय रोहुआ टोला में अधिकांशतः दलित और महादलित परिवार के गरीब बच्चे पढ़ते हैं. इस स्कूल को पूरी तरह से इको फ्रेंडली बनाया गया है. चारों तरफ पेड़ पौधे लगाए गए हैं और सीता माता की अशोक वाटिका बनाई गई है. ताकि बच्चों को संस्कृति का भी ज्ञान मिल सके. यहीं नहीं सभी पेड़ पौधों पर भारतीय प्रधानमंत्रियों और राष्ट्रपतियों का नेम प्लेट लगा है जो तकरीबन पहली से लेकर पांचवी तक के बच्चों को अक्षरशः याद है.
शिक्षक व बच्चे पहनकर आते हैं आईकार्ड : इस विद्यालय की अन्य खासियतों की बात करें तो बच्चे पूरी तरह से स्कूल यूनिफॉर्म में आते हैं और सबके गले में निजी स्कूलों की तरह आई कार्ड लटके मिलेंगे. यहां तक कि शिक्षक भी आईकार्ड लगाकर आते हैं. बच्चों के बैठने के लिए बेंच डेस्क नहीं है. इसके बावजूद प्रधानाध्यापक ने सभी बच्चों के बैठने के लिए गद्देदार कुशन बनवाया है. विद्यालय में कक्षा की शुरुआत चेतना सत्र के साथ होती है और उसमें बच्चों को बिहार दर्शन और भारत दर्शन कराया जाता है.
प्रिंसिपल खुद काटते हैं बच्चों के बाल : विद्यालय की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां बच्चों को अनुशासन में रहना सिखाया जाता है. इसी क्रम में यदि कोई बच्चा बिना बाल कटवाए स्कूल में आ जाए तो प्रधान शिक्षक खुद बच्चों का बाल काटते हैं. इसके लिए वे अपने दफ्तर में कैंची रखते हैं. यदि बच्चों का यूनिफॉर्म गंदा हो तो यहां की रसोइया उन बच्चों का ड्रेस धोकर साफ करती है. राजकीय प्राथमिक विद्यालय रोहुआ टोला में बच्चों के लिए एक छोटी सी लाइब्रेरी की व्यवस्था है जो शायद किसी अन्य सरकारी विद्यालयों में देखने को नहीं मिले.
स्कूल में हैं बच्चों का एक छोटा बैंक : इतना हीं नहीं छात्र छात्राओं ने एक कमरे में 'अपना बैंक' खोल रखा है. इस बैंक का उद्देश्य छात्र छात्राओं की जरूरतों को पूरा करना है. दरअसल महादलित बस्ती के बच्चे अमूमन गरीब परिवार से होते हैं, लिहाजा उन्हें जब भी पेन, कॉपी या अन्य शिक्षण सामग्रियों की जरूरत होती है तो इस बैंक से कर्ज लेते हैं और फिर उसे चुका देते हैं. इसके लिए सभी बच्चे प्रत्येक माह अपना बैंक में 5-5 रुपया जमा करते हैं. जमा और निकासी प्रक्रिया के लिए छात्रों में से ही बैंक मैनेजर और अकाउंटेंट भी बहाल हैं जो दैनिक खाता बही का कार्य देखते हैं.
"बिहार के टॉप 10 और जिला के नंबर एक सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में इस विद्यालय की गिनती होती है जो जिला के लिए गर्व की बात है. इससे अन्य विद्यालयों को मार्गदर्शन लेने की जरूरत है".- विजय यादव, प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी
सीढ़ियों पर लिखा है ककहरा और गिनती : विद्यालय के छात्र छात्राओं का कहना है कि उनके विद्यालय में हर वह व्यवस्था है जो किसी निजी स्कूल में होती है. प्रधान शिक्षक ने उनके पीने के लिए 'RO' पानी की व्यवस्था की है. साथ ही विद्यालय की सीढ़ियों के पायदानों पर गिनती, पहाड़ा और ककहरा समेत अन्य चीजें लिखवाई गई हैं. ताकि वे सीढ़ियों पर उतरते चढ़ते गिनती और पहाड़ा समेत सप्ताह और माह के नाम याद कर सकें. इसके अलावा भी बहुत सारी व्यवस्थाएं हैं जो शिक्षा ग्रहण करने के लिए काफी उपयोगी माहौल बनाती है.
"सीमित संसाधनों के बीच बच्चों को बेहतर शिक्षा देना ही उनका मकसद है. महादलित बस्ती में विद्यालय होने के कारण दलित और महादलित बच्चों की संख्या ज्यादा है. उनके मां बाप प्रतिदिन मजदूरी करते हैं और उसी से अपना पेट पालते हैं. लिहाजा उन्हें अपने बच्चों की देखरेख के लिए समय नहीं मिल पाता है. जिस कारण बच्चे बाल बढ़ाए और गंदे कपड़े पहनकर चले आते हैं. लिहाजा वे स्वयं बच्चों का बाल काटते हैं और रसोइया उन बच्चों का गंदा कपड़ा धो देती है".- लखन प्रसाद, प्रधानाध्यापक, राजकीय प्राथमिक विद्यालय रोहुआ टोला