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बेतिया: दाने-दाने को मोहताज हैं स्वतंत्रता सेनानी की पत्नी, कोई नहीं सुन रहा फरियाद

सिस्टम की लापरवाही से एक स्वतंत्र सेनानी की विधवा आजाद देश में दाने-दाने के लिए मोहताज हो गई है. वह दूसरों से भोजन और दवा के लिए भीख मांग रही हैं.

जानकी देवी
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Published : Jul 27, 2019, 9:00 PM IST

बेतिया: देश को आजादी दिलाने में अपना सबकुछ गंवाने वाले स्वतंत्रता सेनानियों का परिवार आज गुमनामी की जिंदगी जीने के मजबूर है. दिवंगत स्वतंत्रता सेनानी शेर बहादुर सिंह नेपाली की पत्नी आज बेबस और बेसहारा हैं. वीर की पत्नी के हालात इस कदर हैं कि वह दाने-दाने के लिए मोहताज हैं.

वीर की पत्नी 85 वर्षीया जानकी देवी से जो भी मिलने जाता है उन्हें वह बड़े गर्व से कहतीं हैं कि 'मेरे मालिक ने देश को आजाद कराया था.' लेकिन, अगले ही पल उनका स्वर रुआंसा हो जाता है. अपने को असहाय महसूस कर वह कहतीं हैं कि 'कोई दवा करा दो, कोई तो खाना खिला दो.'

छलका सेनानी की विधवा का दर्द

साल 2012 में हुई थी मौत
दिवंगत स्वतंत्रता सेनानी शेर बहादुर सिंह नेपाली की मृत्यु साल 2012 में फरवरी महीने में हो गई थी. पति की मौत के बाद से उनकी पत्नी आज दाने-दाने के लिए मोहताज हो चुकी हैं. परिस्थिति ऐसी है कि जानकी देवी को दवा भी नसीब नहीं हो पा रही है. मालूम हो कि जानकी देवी ना तो ठीक से देख पाती हैं और ना ही सुन पाती हैं. सरकारी तंत्र ने भी इनका साथ छोड़ दिया है.

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सेनानी शेर बहादुर सिंह नेपाली की फाइल फोटो

मृत्यु के बाद से नहीं मिला पेंशन
जानकी देवी के पति की मृत्यु के बाद से ही उनको पेंशन नहीं मिली है. ऐसे में आज बहादुर वीर की आत्मा भी रोती होगी कि उन्होंने जिस देश और समाज के लिए कुर्बानी दी, आज उन्हीं के परिवार को कोई देखने वाला नहीं है. उनकी अकेली पत्नी के शब्दों को सुनने वाला कोई नहीं है. सरकारी मदद की आस में जानकी देवी बेतिया से पटना, दिल्ली तक चक्कर लगा चुकी हैं. लेकिन, कोई असर नहीं हुआ.

ओरिजनल पीपीओ नहीं होने से रुका है पेंशन
पेंशन के लिए साल 2012 के बाद बैंक ने जानकी देवी से पति का डेथ सर्टिफिकेट मांगा. उन्होंने दिया भी, सारे कागजात जमा करा दिए गए. लेकिन, पीपीओ का ओरिजिनल कागज नहीं होने के कारण बैंक ने पेंशन पर रोक लगा दी. जबकि जानकी देवी के पास पीपीओ की फोटो कॉपी है. लेकिन, बैंक ने अस्वीकार कर दिया है.

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फाइल फोटो

डीएम की गुहार पर भी नहीं हुई सुनवाई
इस बाबत बेतिया डीएम ने भी बैंक को पत्र लिखा कि जानकी देवी को पेंशन मिलनी चाहिए. इसके बावजूद उन्हें कोई फायदा नहीं हुआ. जब बैंक से पूछा गया कि पीपीओ की एक कॉपी आपके पास भी हो होती है, तो इसके जवाब में बैंक ने लिखित बयान दिया कि हमारे ब्रांच से पीपीओ खो गया है. इसलिए, जब तक पीपीओ नहीं आएगा तब तक पेंशन नहीं मिलेगा.

नतीजतन, सिस्टम की लापरवाही से एक स्वतंत्र सेनानी की विधवा आजाद देश में दाने-दाने के लिए मोहताज हो गई है. वह दूसरों से भोजन और दवा के लिए भीख मांग रही हैं.

बेतिया: देश को आजादी दिलाने में अपना सबकुछ गंवाने वाले स्वतंत्रता सेनानियों का परिवार आज गुमनामी की जिंदगी जीने के मजबूर है. दिवंगत स्वतंत्रता सेनानी शेर बहादुर सिंह नेपाली की पत्नी आज बेबस और बेसहारा हैं. वीर की पत्नी के हालात इस कदर हैं कि वह दाने-दाने के लिए मोहताज हैं.

वीर की पत्नी 85 वर्षीया जानकी देवी से जो भी मिलने जाता है उन्हें वह बड़े गर्व से कहतीं हैं कि 'मेरे मालिक ने देश को आजाद कराया था.' लेकिन, अगले ही पल उनका स्वर रुआंसा हो जाता है. अपने को असहाय महसूस कर वह कहतीं हैं कि 'कोई दवा करा दो, कोई तो खाना खिला दो.'

छलका सेनानी की विधवा का दर्द

साल 2012 में हुई थी मौत
दिवंगत स्वतंत्रता सेनानी शेर बहादुर सिंह नेपाली की मृत्यु साल 2012 में फरवरी महीने में हो गई थी. पति की मौत के बाद से उनकी पत्नी आज दाने-दाने के लिए मोहताज हो चुकी हैं. परिस्थिति ऐसी है कि जानकी देवी को दवा भी नसीब नहीं हो पा रही है. मालूम हो कि जानकी देवी ना तो ठीक से देख पाती हैं और ना ही सुन पाती हैं. सरकारी तंत्र ने भी इनका साथ छोड़ दिया है.

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सेनानी शेर बहादुर सिंह नेपाली की फाइल फोटो

मृत्यु के बाद से नहीं मिला पेंशन
जानकी देवी के पति की मृत्यु के बाद से ही उनको पेंशन नहीं मिली है. ऐसे में आज बहादुर वीर की आत्मा भी रोती होगी कि उन्होंने जिस देश और समाज के लिए कुर्बानी दी, आज उन्हीं के परिवार को कोई देखने वाला नहीं है. उनकी अकेली पत्नी के शब्दों को सुनने वाला कोई नहीं है. सरकारी मदद की आस में जानकी देवी बेतिया से पटना, दिल्ली तक चक्कर लगा चुकी हैं. लेकिन, कोई असर नहीं हुआ.

ओरिजनल पीपीओ नहीं होने से रुका है पेंशन
पेंशन के लिए साल 2012 के बाद बैंक ने जानकी देवी से पति का डेथ सर्टिफिकेट मांगा. उन्होंने दिया भी, सारे कागजात जमा करा दिए गए. लेकिन, पीपीओ का ओरिजिनल कागज नहीं होने के कारण बैंक ने पेंशन पर रोक लगा दी. जबकि जानकी देवी के पास पीपीओ की फोटो कॉपी है. लेकिन, बैंक ने अस्वीकार कर दिया है.

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फाइल फोटो

डीएम की गुहार पर भी नहीं हुई सुनवाई
इस बाबत बेतिया डीएम ने भी बैंक को पत्र लिखा कि जानकी देवी को पेंशन मिलनी चाहिए. इसके बावजूद उन्हें कोई फायदा नहीं हुआ. जब बैंक से पूछा गया कि पीपीओ की एक कॉपी आपके पास भी हो होती है, तो इसके जवाब में बैंक ने लिखित बयान दिया कि हमारे ब्रांच से पीपीओ खो गया है. इसलिए, जब तक पीपीओ नहीं आएगा तब तक पेंशन नहीं मिलेगा.

नतीजतन, सिस्टम की लापरवाही से एक स्वतंत्र सेनानी की विधवा आजाद देश में दाने-दाने के लिए मोहताज हो गई है. वह दूसरों से भोजन और दवा के लिए भीख मांग रही हैं.

Intro:बेतिया: दाने दाने के लिए मोहताज है स्वतंत्रता सेनानी की पत्नी। हर किसी से कहती हैं, कि दवा करा दो,खाना खिला दो, मेरे पति ने देश को आजादी दिलाई है।


Body:बाइट
सुना आपने.. एक बार फिर सुनिए...
बाइट

आप सोच रहे होंगे आखिर कौन है ये वृद्ध महिला। तो हम आपको बता दें कि ये वृद्ध महिला दिवंगत स्वतंत्रता सेनानी शेर बहादुर सिंह नेपाली की 85 वर्षीय पत्नी जानकी देवी है। जिनके पति की मृत्यु वर्ष 2012 में फरवरी महीने में हो गई थी। जो आज दाने-दाने के लिए मोहताज हो चुकी हैं। परिस्थिति ऐसी की जानकी देवी को दवा भी नसीब नहीं हो पा रही है। जानकी देवी ना ठीक से देख पाती हैं और ना ही सुन पाती हैं और इनके साथ ही साथ सरकारी सिस्टम भी अंधी और बहरी हो चुकी है । कारण जानकी देवी के पति दिवंगत स्वतंत्रता सेनानी शेर बहादुर सिंह नेपाली की मृत्यु के बाद से ही उनको पेंशन नहीं मिली है । स्वतंत्रा सेनानी शेर बहादुर सिंह नेपाली की आत्मा भी रोती होगी। जिस देश की आजादी के लिए हमने लड़ाई लड़ी और अपना सब कुछ गवा दिया, आज उस देश के सरकारी सिस्टम की उदासीनता का दंश मेरी पत्नी को डस रहा है। और आज जानकी देवी हर किसी से यही कहती फिर रही है कि दवा करा दो, खाना खिला दो, मेरे पति ने देश को आजादी दिलाई है।

बाइट- जानकी देवी, स्वतंत्रता सेनानी की पत्नी

लेकिन उनके इन शब्दों को सुनने वाला कोई नहीं है। मानो सारे के सारे सरकारी सिस्टम बहरे हो चुके हैं। जानकी देवी बेतिया से पटना। पटना से दिल्ली तक चक्कर लगा चुकी है लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं है।

बाइट- रविंद्रचंद्र श्रीवास्तव, सचिव, स्वतंत्रता सेनानी उत्तराधिकारी संघ


Conclusion:दरअसल, 2012 के बाद बैंक ने पति का डेथ सर्टिफिकेट मांगा। तो परिवार वालों ने दिया और उसके साथ अन्य सारे कागजात भी जमा करा दिए गए। लेकिन पीपीओ का ओरिजिनल कागज नहीं होने की वजह से पेंशन पर बैंक ने रोक लगा दी। जानकी देवी के पास पीपीओ की फोटो कॉपी है। लेकिन बैंक ने अस्वीकार कर दिया है । बेतिया डीएम ने भी बैंक को पत्र लिखा की जानकी देवी को पेंशन मिलनी चाहिए। इसके बावजूद उन्हें कोई फायदा नहीं हुआ। जब बैंक से पूछा गया कि पीपीओ की एक कॉपी आपके पास भी हो होती है, तो इसके जवाब में बैंक ने लिखित बयान दिया कि हमारे ब्रांच से पीपीओ खो गया है। इसलिए जब तक पीपीओ नहीं आएगा तब तक पेंशन नहीं मिलेगी। अब इसे क्या कहा जाए ?

सवाल उठता है कि जानकी देवी के पास पीपीओ की फोटो कॉपी है। ओरिजिनल बैंक से ही गायब हो चुका है। तो इसे क्या कहा जाए ? सिस्टम की लापरवाही या उसका अंधापन, कि सब कुछ जानते हुए और देखते हुए अंधी और बहरी बनी हुई है। आज सिस्टम की लापरवाही से एक स्वतंत्र सेनानी की विधवा दाने दाने के लिए मोहताज हो गई है। आज भोजन और दवा के लिए सिस्टम से गुहार लगा रही है। लेकिन इस विधवा जानकी देवी की परवाह किसी को नहीं है।

जितेंद्र कुमार गुप्ता
ईटीवी भारत ,बेतिया
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