बगहा: लंच या फिर डिनर के बाद ज्यादातर लोग कुछ मीठा खाना पसंद करते है. या यूं कहें कि खाना खाने के बाद अक्सर कुछ मीठा खाने की इच्छा होती है, वो भी अगर इमरती (जलेबी) हो तो क्या बात है. शायद ही ऐसा कोई होगा, जिसने इमरती (जलेबी) न खाई हो. लेकिन अगर आपसे कोई कहे कि चलिए आज आपको जहांगीरी खिलाते है तो आप चौंक जाएंगे. आपने यह नाम पहले कभी नहीं सुना होगा. लेकिन चौंकिए मत जहांगीरी यानी इमरती (जलेबी). जी हां आपने ठीक सुना, इमरती को ही जहांगीरी कहते है.
मुगल सम्राट जहांगीर की वजह से इमरती का जन्म : ऐसे में आपके मन में यह सवाल उठेगा कि कहीं इमरती का कोई कनेक्शन मुगल सम्राट जहांगीर (सलीम) से तो नहीं. तो हम आपको बता दें कि इमरती यानी जलेबी को जहांगीरी नाम मुगल सम्राट जहांगीर (मुगल शासक अकबर के बड़े बेटे) की वजह से मिला. इसके पीछे की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है.
क्या है इमरती का इतिहास? : बता दें कि जलेबी का इतिहास करीब 500 साल पुराना है. 'किताब-अल-तबीक' एक मध्य कालीन किताब है, जिसमें (जलाबिया) जलेबी का जिक्र है. यह पश्चिम एशिया से निकला शब्द है. कहा जाता है कि मुगल सम्राट जहांगीर को मिठाइयों का खूब शौक था. बाकी मिठाइयों को खाकर उनका मन भर चुका था. ऐसे में एक दिन उन्होंने अपने खानसामे से ऐसा कुछ बनाने के लिए कहा, जिसे उन्होंने पहले नहीं खाया था.
इमरती का ऐसे पड़ा नाम 'जहांगीरी' : खानसामा सोच में पड़ गया. उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था. तभी उसके दिमाग की बत्ती जली और फिर उसने कुछ नया करने की सोची. उसने सबसे पहले उड़द को पीसा और घोल बनाया. दूसरी तरफ चासनी बनाई, जिसमें लौंग, केसर, रंग और दूसरी सामग्री डाल दी. उसने पहले उड़द के घोल को गोल-गोल घुमाकर तेल में तला और फिर हल्का लाल होने के बाद चासनी में डुबो दिया. उसके बाद एक नई और अलग तरह की मिठाई मुगल सम्राट जहांगीर को परोसी. जलेबी मुगल सम्राट को खूब पसंद आई. जिसके बाद इसका नाम जहांगीरी पड़ गया.
बगहा की इमरती है खास : अब जलेबी यानी इमरती की बात चली और बिहार के बगहा की चर्चा न हो, यह नहीं हो सकता. बगहा की इमरती मिठाई काफी मशहूर है. जलेबी की तरह बनने वाली यह इमरती पहली दफा मुगल सम्राट जहांगीर के खानसामें ने बनाई थी, यह तो हम जान गए हैं. अब बगहा में इसको खाने और खरीदने के लिए ग्राहकों की भीड़ सुबह से उमड़ पड़ती है, आखिर यहां की इमरती की खासियत ही कुछ ऐसी है.
"बगहा की इमरती बनाने में जो सामग्रियों का कॉम्बिनेशन होता है वह यूनिक होता है. इस कारण यहां की इमरतियां इतनी लजीज और स्वादिष्ट होती है. यही खूबियां इन इमरतियों को खास बनाता है. बगहा सबडिविजन में बनने वाली इमरतियां काफी प्रसिद्ध है."- परमेश्वर प्रसाद, ग्राहक
दूसरे शहरों से भी इमरती खरीदने लोग आते हैं बगहा : कोई भी बगहा आए और इमरती मिठाई से अछूता रह जाए हो ही नहीं सकता है. जलेबी की तरह बनाई जाने वाली यह मिठाई दिल्ली तक का सफर तय करती है. दरअसल, इस पूरे इलाके में कोई भी शादी विवाह या कार्यक्रम बिना इमरती मिठाई के अधूरा है. लोग शादी-विवाह या किसी त्योहार पर इमरती संदेश के तौर पर भेजते हैं. यही नहीं नाते रिश्तेदारी में भी इमरती का खास महत्व है. क्योंकि एक बार जो इसका स्वाद चख लेता है, वह इसको खाने का शौकीन हो जाता है.
नीतीश कुमार को पसंदीदा मिठाई है बगहा जलेबी : बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी अपने बगहा प्रवास के दौरान लजीज इमरतियों का स्वाद चखना नहीं भूलते हैं. बगहा के अधिकांश दुकानों पर सुबह से इमरतियां बननी शुरू हो जाती हैं. क्योंकि सुबह से ही खाने और खरीदने वाले ग्राहकों की भीड़ दुकानों पर उमड़ने लगती है. दुकानदार बताते हैं कि उड़द की दाल यानी धोई की इमरती वे वर्षों से बनाते आ रहें हैं. जिसकी मार्केट में भारी डिमांड है. यही वजह है कि इस मिठाई की कीमत तकरीबन रसगुल्ला मिठाई की कीमत के आसपास है.
"उदड़ की दाल से इमरती बनाई जाती है. उड़द की दाल ही इसकी खास सामग्री है. इस कारण यह इतनी लजीज होती है. दुकान पर सुबह 8 बजे से ही भीड़ उमड़ने लगती है. यहां की इमरती लेने दूसरे जगहों से भी लोग आते हैं."- दुकानदार, स्थानीय होटल
बगहा में इमरती के बिना नहीं होता कोई शुभ कार्य : बगहा में रसगुल्ला 250 रुपए प्रति किलो है तो इमरती की कीमत 200 रुपए प्रति किलो है. ग्राहकों का कहना है कि इमरती के बिना उनका कोई भी शुभ कार्य अधूरा है. शादी विवाह का संदेशा भेजना हो अथवा कोई भी पार्टी फंक्शन. इन सभी में इमरती जरूर बनती है. इतना ही नहीं नाते रिश्तेदारी में जिनलोगों ने इसका स्वाद चखा है. वह इमरती का डिमांड जरूर करते हैं.
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