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जिंदा होने का सबूत लेकर भटक रहा है ये बुजुर्ग, 10 साल पहले मृत बताकर कफन का भी ले लिया गया पैसा - बेतिया के आशिक बैठा परेशान

बुजुर्ग आशिक बैठा ने बताया कि उन्हें सरकार से किसी भी योजना का लाभ नहीं मिलता है, क्योंकि सरकारी कागज पर उनकी मौत 10 साल पहले ही हो चुकी है.

बुजुर्ग आशिक बैठा
बुजुर्ग आशिक बैठा
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Published : May 29, 2020, 5:25 PM IST

Updated : May 29, 2020, 6:22 PM IST

बेतिया(नरकटियागंज): जिले के नरकटियागंज में एक जिंदा इंसान को कागजों में मृत घोषित कर दिया गया. यहां तक कि सरकार से मिलने वाली कफन की राशि तक उठा ली गई है. अब ये बुजुर्ग अपने जिंदा होने का सबूत देने के लिए एक जगह से दूसरी जगह चक्कर लगा रहा है, लेकिन इनकी सुनने वाला कोई नहीं है.

जन-कल्याणकारी योजना से वंचित हैं बुजुर्ग
बेतिया जिला के नरकटियागंज प्रखंड के चेगौना गांव निवासी आशिक बैठा अपने जीवित होने की लड़ाई लड़ रहे हैं. सिस्टम की लापरवाही इतनी कि इस जिंदा बुजुर्ग को कागजों में मृत घोषित कर दिया गया. मृत घोषित होने के बाद आशिक बैठा सरकार की सभी जन-कल्याणकारी योजना से वंचित हो गए. अब ये 65 वर्षीय बुजुर्ग अपने जिंदा होने का सबूत देने के लिए भटक रहे हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

2010 में आशिक बैठा को बताया गया मृत
दरअसल 2010 में आशिक बैठा को मृत बताकर कबीर अंत्येष्टि अनुदान योजना की 1,500 रुपये की राशि उठा ली गई थी और उन्हें मृत घोषित कर दिया गया था. जिसकी जानकारी आशिक बैठा को 2014 में मिली. जिसके बाद आशिक बैठा 2014 के तत्कालीन बेतिया डीएम से मुलाकात कर अपने जिंदा होने का सबूत दिया. तत्कालीन डीएम ने नरकटियागंज के बीडीओ को जांच का आदेश दिया, लेकिन वो जांच अब तक पूरी नहीं हुई.

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बुजुर्ग आशिक बैठा

अंत्येष्टि राशि लेने के लिए बताया गया मृत
बुजुर्ग आशिक बैठा ने बताया कि उन्हें सरकार से किसी भी योजना का लाभ नहीं मिलता है, क्योंकि सरकारी कागज पर उनकी मौत 10 साल पहले ही हो चुकी है. वहीं, आशिक बैठा के भाई यूनिस बैठा ने बताया कि 2010 में ही मेरे बड़े भाई आशिक बैठा को मृत बताकर कफन का पैसा भी ले लिया गया, लेकिन वो अभी भी जिंदा हैं.

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बीडीओ को दिया गया पत्र

ये भी पढ़ेंः कोरोना वारियर्स के सम्मान में मैंगो मैन ने मधुवन बगीचे के आम का नाम रखा 'लॉक डाउन'

10 साल से अब तक नहीं हुई कोई कार्रवाई
आशिक बैठा मजदूरी का काम करते हैं और उसी से उनका जीवन चलता है. बुजुर्ग आशिक बैठा आज भी अपने जिंदा होने का सबूत लिए भटक रहे हैं. लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई. बता दें कि 2007 में राज्य सरकार ने गरीबों के लिए कबीर अंत्येष्टि अनुदान योजना की शुरुआत की थी. जिसके तहत गरीबी रेखा के नीचे वाले परिवार को घर के किसी सदस्य की मृत्यु होने पर 1,500 रुपये सहायता राशि के रूप में मिलती थी. जो 2014 में बढ़ाकर 3,000 रुपये कर दी गई थी.

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बुजुर्ग के जिंदा होने का प्रमाण पत्र

दोषी पर की जाएगी कार्रवाई- बीडीओ
जब इस बारे में नरकटियागंज बीडीओ से बात की गई तो उन्होंने बताया कि मेरे संज्ञान में ऐसा मामला नहीं आया है. अगर मेरे संज्ञान में मामला आएगा तो उसकी जांच की जाएगी और जो भी दोषी होगा, उसपर कार्रवाई की जाएगी.

बेतिया(नरकटियागंज): जिले के नरकटियागंज में एक जिंदा इंसान को कागजों में मृत घोषित कर दिया गया. यहां तक कि सरकार से मिलने वाली कफन की राशि तक उठा ली गई है. अब ये बुजुर्ग अपने जिंदा होने का सबूत देने के लिए एक जगह से दूसरी जगह चक्कर लगा रहा है, लेकिन इनकी सुनने वाला कोई नहीं है.

जन-कल्याणकारी योजना से वंचित हैं बुजुर्ग
बेतिया जिला के नरकटियागंज प्रखंड के चेगौना गांव निवासी आशिक बैठा अपने जीवित होने की लड़ाई लड़ रहे हैं. सिस्टम की लापरवाही इतनी कि इस जिंदा बुजुर्ग को कागजों में मृत घोषित कर दिया गया. मृत घोषित होने के बाद आशिक बैठा सरकार की सभी जन-कल्याणकारी योजना से वंचित हो गए. अब ये 65 वर्षीय बुजुर्ग अपने जिंदा होने का सबूत देने के लिए भटक रहे हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

2010 में आशिक बैठा को बताया गया मृत
दरअसल 2010 में आशिक बैठा को मृत बताकर कबीर अंत्येष्टि अनुदान योजना की 1,500 रुपये की राशि उठा ली गई थी और उन्हें मृत घोषित कर दिया गया था. जिसकी जानकारी आशिक बैठा को 2014 में मिली. जिसके बाद आशिक बैठा 2014 के तत्कालीन बेतिया डीएम से मुलाकात कर अपने जिंदा होने का सबूत दिया. तत्कालीन डीएम ने नरकटियागंज के बीडीओ को जांच का आदेश दिया, लेकिन वो जांच अब तक पूरी नहीं हुई.

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बुजुर्ग आशिक बैठा

अंत्येष्टि राशि लेने के लिए बताया गया मृत
बुजुर्ग आशिक बैठा ने बताया कि उन्हें सरकार से किसी भी योजना का लाभ नहीं मिलता है, क्योंकि सरकारी कागज पर उनकी मौत 10 साल पहले ही हो चुकी है. वहीं, आशिक बैठा के भाई यूनिस बैठा ने बताया कि 2010 में ही मेरे बड़े भाई आशिक बैठा को मृत बताकर कफन का पैसा भी ले लिया गया, लेकिन वो अभी भी जिंदा हैं.

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बीडीओ को दिया गया पत्र

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10 साल से अब तक नहीं हुई कोई कार्रवाई
आशिक बैठा मजदूरी का काम करते हैं और उसी से उनका जीवन चलता है. बुजुर्ग आशिक बैठा आज भी अपने जिंदा होने का सबूत लिए भटक रहे हैं. लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई. बता दें कि 2007 में राज्य सरकार ने गरीबों के लिए कबीर अंत्येष्टि अनुदान योजना की शुरुआत की थी. जिसके तहत गरीबी रेखा के नीचे वाले परिवार को घर के किसी सदस्य की मृत्यु होने पर 1,500 रुपये सहायता राशि के रूप में मिलती थी. जो 2014 में बढ़ाकर 3,000 रुपये कर दी गई थी.

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बुजुर्ग के जिंदा होने का प्रमाण पत्र

दोषी पर की जाएगी कार्रवाई- बीडीओ
जब इस बारे में नरकटियागंज बीडीओ से बात की गई तो उन्होंने बताया कि मेरे संज्ञान में ऐसा मामला नहीं आया है. अगर मेरे संज्ञान में मामला आएगा तो उसकी जांच की जाएगी और जो भी दोषी होगा, उसपर कार्रवाई की जाएगी.

Last Updated : May 29, 2020, 6:22 PM IST

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