वैशाली: लोकआस्था के महापर्व छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान नहाय-खाय के साथ आज से शुरू हो गया है. नहाय-खाय से शुरू होने वाले इस महापर्व का समापन 3 नवंबर को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर होगा. प्रदेश का सबसे बड़ा पर्व कहा जाने वाले इस महापावन त्योहार को लेकर जिला समेत पूरे प्रेदश में तैयारियां अंतिम चरण पर हैं.
अपने हाथों से मिट्टी का चूल्हा बना रहीं हैं महिलाएं
जिले के सोनपुर प्रखण्ड क्षेत्र स्थित पहलेजा घाट के पास ग्रामीण महिलाओं का समूह गंगा से मिट्टी लाकर चूल्हा बनाती नजर आई. इस बाबात महिलाओं का कहना है कि परंपरा के अनुसार छठ का प्रसाद को मिट्टी के चूल्हे पर ही बनाया जाता है. यह परंपरा सदियों पुरानी है. महिलाओं का कहना है कि छठ का महापर्व में ये चूल्हा की कीमत ग्राहकों पर ही छोड़ देती हैं. कई छठ व्रतियों के पास पैसे का अभाव होता है. ऐसे में इस व्रत को पुरा करने में सहयोग के उद्देश्य से उनको मुफ्त में ही चुल्हा बांट देती है. महिलाओं का मानना है कि ऐसा करने से उन्हें पुण्य मिलता है.
बाजार में चाइनीज से लेकर स्टील के चुल्हों की भरमार
लोक आस्था के इस महापर्व को लेकर जिले के बाजारों में खासा चहल-पहल देखने का मिला. बाजार में चाइनीज से लेकर स्टील के चुल्हों की भरमार है. छठ व्रतियों का कहना है कि यह त्योहार शुद्धता का है ऐसे में चाइनीज चुल्हे का उपयोग हमलोग नहीं करते है. इस व्रत में हमलोग गंगा की मिट्टी से बने हुए चुल्हे पर ही भगवान भास्कर का प्रसाद बनाते है. इस मामले पर मिट्टी का चुल्हा बेचने वाली महिलाओं का कहना है कि महंगाई के इस दौर में मेहनत के आशानुरूप उनको पैसा नही मिलता है. लेकिन इस चुल्हे में ' शुद्धता का भाव है, ग्राहक से कोई मनमानी किमत नही ली जाती' ऐसे में बाजार के चाइनीज चुल्हों पर मिट्टी का यह चुल्हा तो भारी पड़ेगा ही.
देखने को मिल रही है गंगा-जमुनी सौहार्द की मिसाल
आस्था के इस पावन पर्व में मुस्लिम समुदाय के लोग भी बढ़-चढ़ कर भाग ले रहें हैं.चार दिवसीय इस पर्व को लेकर मुस्लिम लोग सड़क से लेकर गलियों की साफ-सफाई करते दिखे.इस संबंध में मुस्लिम समुदाय के लोगों का कहना है की हमारे पर्व-त्योहार में हिन्दू समुदाय के लोग कंघा से कंधा मिलाकर साथ देते है.ऐसे में मुस्लिम समुदाय के लोगों का भी यह फर्ज है कि हिन्दू भाइयों के सबसे बड़े पर्व में कंघा से कंधा मिलाकर खड़ा रहे. लोगों का मानना है कि छठ में साफ-साफाई करने पर छठी मैया खुश होंगी और उनको आशीर्वाद देंगी.
चार दिनों का होता है छठ पर्व
छठ पर्व का प्रारंभ 'नहाय-खाय' से होता है, जिस दिन व्रती स्नान कर अरवा चावल, चना दाल और कद्दू की सब्जी का भोजन करती हैं. इस दिन खाने में सेंधा नमक का प्रयोग किया जाता है. नहाय-खाय के दूसरे दिन यानी कार्तिक शुक्ल पक्ष पंचमी के दिनभर व्रती उपवास कर शाम में स्नान कर विधि-विधान से रोटी और गुड़ से बनी खीर का प्रसाद तैयार कर भगवान भास्कर की अराधना कर प्रसाद ग्रहण करती हैं. इस पूजा को 'खरना' कहा जाता है.
छठ में जातियों के आधार पर कहीं कोई भेदभाव नहीं
इस पर्व की सबसे बड़ी खासियत है कि इस त्योहार में समाज में सभी को बराबरी का दर्जा दिया गया है. सूर्य देवता को बांस के बने सूप और डाले में रखकर प्रसाद अर्पित किया जाता है. इस सूप-डाले को सामाजिक रूप से अत्यंत पिछड़ी जाति के लोग बनाते हैं. इस त्योहार को बिहार का सबसे बड़ा त्योहार भी कहा जाता है. हालांकि अब यह पर्व बिहार के अलावा देश के कई अन्य स्थानों पर भी मनाया जाने लगा है. इस पर्व में सूर्य की पूजा के साथ-साथ षष्ठी देवी की पूजा-अर्चना की जाती है.
छठ से जुड़ी कथाएं
छठ त्यौहार का धार्मिक ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी बहुत महत्व माना गया है. षष्ठी तिथि (छठ) एक विशेष खगौलीय अवसर होता है. इस समय सूर्य की पराबैगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं. उसके संभावित कुप्रभावों से रक्षा करने का सामर्थ्य इस परंपरा में रहा है.एक अन्य मान्यता के अनुसार भगवान राम और माता सीता ने रावण वध के बाद कार्तिक शुक्ल षष्ठी को उपवास किया और सूर्यदेव की आराधना की और अगले दिन यानी सप्तमी को उगते सूर्य की पूजा की और आशीर्वाद प्राप्त किया.