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महात्मा गांधी जयंती पर विशेष: सुपौल में आज भी सहेज कर रखा है गांधी जी का रेडियो और चरखा

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Published : Oct 2, 2022, 1:14 PM IST

Updated : Oct 2, 2022, 5:25 PM IST

सन 1934 में सुपौल की धरती पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पांव पड़े थे. यहां महात्मा गांधी ने पदयात्रा की थी. इसमें हजारों लोग शामिल हुए थे. इस दौरान बापू ने बरैल के स्वतंत्रता सेनानी शत्रुघन प्रसाद सिंह की मां को चरखा और रेडियो भेंट (Mahatma Gandhi Spinning Wheel and Radio in Supaul) स्वरूप दिया था. बरैल में आज भी गांधीजी का चरखा व रेडियो मौजूद है. पढ़ें विशेष रिपोर्ट..

सुपौल में सुरक्षित रखा है गांधी जी का चरखा और रोडियो
सुपौल में सुरक्षित रखा है गांधी जी का चरखा और रोडियो

सुपौल: बिहार के सुपौल से भी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की कई सारी यादें जुड़ी हुई है. आज भी सुपौल में गांधी जी चरखा और रेडियो (Gandhiji Spinning Wheel is Kept Safe in Supaul) सहेज कर रखा हुआ है. दुनिया को सत्य और अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 153वीं जयंती धूमधाम से मनायी जा रही है. इस अवसर पर सुपौल से जुड़े उनके कुछ वाकये बरबस प्रासंगिक हो जाते हैं. सत्य के मार्ग पर चलते हुए बापू ने आधी धोती और एक लाठी के दम पर देश को आजादी दिलायी. उन्होंने अपने वतन को आजादी दिलाने के लिये अपना संपूर्ण जीवन देश के नाम कर दिया.

ये भी पढ़ेंः JP के गांव में क्या-क्या बनवाएं है, जाकर देख लें, अमित शाह के बिहार आगमन पर बोले नीतीश कुमार

सुपौल में गांधी जी ने चलाया था नमक आंदोलनः गांधी जी ने कई संघर्षपूर्ण आंदोलन चलाए. जिसमें आजादी के दिवानों ने भाग लिया. इसी कड़ी में महात्मा गांधी का सुपौल की धरती पर भी आगमन हुआ था. सुपौल में गांधी जी ने नमक आंदोलन चलाकर नमक कानून को तोड़ा था. सुपौल के कई स्वतंत्रता सैनानियों के साथ मिलकर उन्होंने इस क्षेत्र के कई ग्रामीण इलाकों की पद यात्रा भी की थी और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद किया था. इस दौरान उन्होंने गांव-देहात पहुंचकर खादी उद्योग को बढ़ावा देने पर भी बल दिया था. जिसकी कुछ निशानियां आज भी सुपौल में मौजूद हैं.

सरायगढ़ होते सुपौल पहुंचे थे महात्मा गांधीः जानकार बतातें हैं कि 1934 ई में महात्मा गांधी का सुपौल आगमन हुआ था. जिले के प्रखर स्वतंत्रता सेनानी जगतपुर निवासी जयवीर झा व अपने किशोरावस्था में गांधी जी की सभा में भाग लेने वाले सदर प्रखंड के बरैल निवासी बद्री नारायण सिंह ने बताया था कि 01 अप्रैल 1934 को कर्णपुर, जगतपुर व बरैल में गांधीजी का आगमन हुआ था. जगतपुर गांव में एक पीपल के पेड़ के नीचे खड़े होकर उन्होंने ग्रामीणों को संबोधित किया था और आजादी के आंदोलन में शामिल होने का आह्वान किया था. गौरतलब है कि सन 1934 में ही प्रलयकारी भूकंप भी आया था. गांधीजी सुपौल पहुंचे तो वे भूकंप पीड़ित परिवारों से भी मिले थे. महात्मा गांधी 31 मार्च 1934 में सर्वप्रथम सरायगढ़ पहुंचे थे. जिसके बाद वे थरबिटिया होते सुपौल आए. जहां फिलहाल महिला कॉलेज अवस्थित है, वहां पहले संस्कृत विद्यालय हुआ करता था, इसी मैदान में गांधीजी ने लोगों को आंदोलन के लिये प्रेरित किया था. जिसके बाद गांधी कर्णपुर, जगतपुर, बरैल होते पंचगछिया और फिर 02 अप्रैल को सहरसा गये. बताया जाता है कि इस यात्रा के लिये दरभंगा महाराज द्वारा उन्हें वाहन उपलब्ध कराया गया था. हालांकि गांधी जी ने अधिकांश यात्रा पैदल ही की थी.

गांधी जी को भेंट स्वरूप बरैल में मिला था रूमालः गांधीजी कर्णपुर से जगतपुर होते हुए बरैल गांव के प्रखर स्वतंत्रता सेनानी शत्रुघन प्रसाद सिंह के आवास पर पहुंचे थे. स्वतंत्रता सेनानी स्व. शत्रुघन सिंह के भतीजा आलोक कुमार सिंह ने बताया कि स्व सिंह से उन्होंने भी गांधी जी के आगमन के कई किस्से सुने थे. बताया कि जब गांधीजी उनके आवास पर पहुंचे थे, तब स्व सिंह की माता दायजी देवी ने गांधी जी को रूमाल भेंट कर उनका स्वागत किया था. गांधीजी जिस मार्ग से गांव में प्रवेश कर स्व सिंह के आवास पर पहुंचे थे. वह मार्ग आज भी गांव में गांधी पथ के नाम से जाना जाता है.

खादी को बढ़ावा देने हेतु गांधी जी ने भेंट किया था चरखाः स्व. शत्रुघ्न सिंह के परिजन आलोक कुमार सिंह, परपौत्र विश्वजीत कुमार, भतीजा राकेश कुमार सिंह, व जयप्रकाश सिंह ने बताया कि गांधी जी का जब आगमन हुआ था. तब उन्हें रूमाल भेंट में मिली थी. जिसके बाद गांधी जी ने बदले में स्व. सिंह के माता स्व दायजी देवी को भी उपहार में चरखा भेंट करते खादी को बढ़ावा देने की बात कही थी. महात्मा गांधी ने उस समय रेडियो पर देश भर का सामाचार भी सुना था. मालूम हो कि वह भेंट किया हुआ गांधी का चरखा और रेडियो आज भी बरैल में मौजूद है. गांधीजी के अलावे देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद भी राष्ट्रपति बनने से पहले स्वतंत्रता सेनानी स्व सिंह के आवास पर आकर रूकते थे. आलोक सिंह ने बताया कि जब इस बात की भनक म्यूजियम वाले और पुराने सामानों को शौक रखने वाले लोगों को लगी तो वे उक्त रेडियो और चरखा के लिये बोली लगाना शुरू कर दिये. रोडियो की कीमत 03 लाख रूपये तक लगायी गयी. लेकिन उन्होंने इसे देने से साफ इंकार कर दिया.

गांधी जी के कहल करू अप्पन टहल करू..: सुपौल आगमन के बाद गांधी जी ने जब कर्णपुर में ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की थी तो देश प्रेमियों का सैलाब उमड़ पड़ा था. बताया जा रहा है कि कर्णपुर गांव के महान स्वतंत्रता सेनानी स्व शिव नारायण मिश्र उर्फ लाल बाबाजी व लहटन चौधरी आदि गांधीजी के खास प्रिय देश प्रेमियों में से एक थे. स्व मिश्र की पुत्री त्रिवेणी देवी ने बताया कि गांधीजी के आगमन कि किस्से उनके पिता द्वारा बताया गया था. बताया कि गांधीजी जब कर्णपुर गांव में खादी का प्रचार-प्रसार कर रहे थे. तब उन्होंने यहां के भाषा में एक पंक्ति गुनगुनाकर लोगों को जागृत किया था. बताया कि गांधी जी ने सभा में कहा था कि गांधीजी के कहल करू, अप्पन टहल करू...घर-घर चरखा चलबु यौ भारत के भैया... बताया गया कि गांधीजी के पद यात्रा में प्रखर स्वतंत्रता सेनानी शत्रुघ्न प्रसाद सिंह, यमुना प्रसाद सिंह, राम बहादुर सिंह, चित नारायण शर्मा, शिव नारायण मिश्र, गंगा प्रसाद सिंह आदि ने मुख्य रूप से भाग लिया था. वहीं लहटन चौधरी, चंद्र किशोर पाठक सहित सैकड़ों स्वयंसेवकों ने आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी.

सुपौल: बिहार के सुपौल से भी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की कई सारी यादें जुड़ी हुई है. आज भी सुपौल में गांधी जी चरखा और रेडियो (Gandhiji Spinning Wheel is Kept Safe in Supaul) सहेज कर रखा हुआ है. दुनिया को सत्य और अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 153वीं जयंती धूमधाम से मनायी जा रही है. इस अवसर पर सुपौल से जुड़े उनके कुछ वाकये बरबस प्रासंगिक हो जाते हैं. सत्य के मार्ग पर चलते हुए बापू ने आधी धोती और एक लाठी के दम पर देश को आजादी दिलायी. उन्होंने अपने वतन को आजादी दिलाने के लिये अपना संपूर्ण जीवन देश के नाम कर दिया.

ये भी पढ़ेंः JP के गांव में क्या-क्या बनवाएं है, जाकर देख लें, अमित शाह के बिहार आगमन पर बोले नीतीश कुमार

सुपौल में गांधी जी ने चलाया था नमक आंदोलनः गांधी जी ने कई संघर्षपूर्ण आंदोलन चलाए. जिसमें आजादी के दिवानों ने भाग लिया. इसी कड़ी में महात्मा गांधी का सुपौल की धरती पर भी आगमन हुआ था. सुपौल में गांधी जी ने नमक आंदोलन चलाकर नमक कानून को तोड़ा था. सुपौल के कई स्वतंत्रता सैनानियों के साथ मिलकर उन्होंने इस क्षेत्र के कई ग्रामीण इलाकों की पद यात्रा भी की थी और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद किया था. इस दौरान उन्होंने गांव-देहात पहुंचकर खादी उद्योग को बढ़ावा देने पर भी बल दिया था. जिसकी कुछ निशानियां आज भी सुपौल में मौजूद हैं.

सरायगढ़ होते सुपौल पहुंचे थे महात्मा गांधीः जानकार बतातें हैं कि 1934 ई में महात्मा गांधी का सुपौल आगमन हुआ था. जिले के प्रखर स्वतंत्रता सेनानी जगतपुर निवासी जयवीर झा व अपने किशोरावस्था में गांधी जी की सभा में भाग लेने वाले सदर प्रखंड के बरैल निवासी बद्री नारायण सिंह ने बताया था कि 01 अप्रैल 1934 को कर्णपुर, जगतपुर व बरैल में गांधीजी का आगमन हुआ था. जगतपुर गांव में एक पीपल के पेड़ के नीचे खड़े होकर उन्होंने ग्रामीणों को संबोधित किया था और आजादी के आंदोलन में शामिल होने का आह्वान किया था. गौरतलब है कि सन 1934 में ही प्रलयकारी भूकंप भी आया था. गांधीजी सुपौल पहुंचे तो वे भूकंप पीड़ित परिवारों से भी मिले थे. महात्मा गांधी 31 मार्च 1934 में सर्वप्रथम सरायगढ़ पहुंचे थे. जिसके बाद वे थरबिटिया होते सुपौल आए. जहां फिलहाल महिला कॉलेज अवस्थित है, वहां पहले संस्कृत विद्यालय हुआ करता था, इसी मैदान में गांधीजी ने लोगों को आंदोलन के लिये प्रेरित किया था. जिसके बाद गांधी कर्णपुर, जगतपुर, बरैल होते पंचगछिया और फिर 02 अप्रैल को सहरसा गये. बताया जाता है कि इस यात्रा के लिये दरभंगा महाराज द्वारा उन्हें वाहन उपलब्ध कराया गया था. हालांकि गांधी जी ने अधिकांश यात्रा पैदल ही की थी.

गांधी जी को भेंट स्वरूप बरैल में मिला था रूमालः गांधीजी कर्णपुर से जगतपुर होते हुए बरैल गांव के प्रखर स्वतंत्रता सेनानी शत्रुघन प्रसाद सिंह के आवास पर पहुंचे थे. स्वतंत्रता सेनानी स्व. शत्रुघन सिंह के भतीजा आलोक कुमार सिंह ने बताया कि स्व सिंह से उन्होंने भी गांधी जी के आगमन के कई किस्से सुने थे. बताया कि जब गांधीजी उनके आवास पर पहुंचे थे, तब स्व सिंह की माता दायजी देवी ने गांधी जी को रूमाल भेंट कर उनका स्वागत किया था. गांधीजी जिस मार्ग से गांव में प्रवेश कर स्व सिंह के आवास पर पहुंचे थे. वह मार्ग आज भी गांव में गांधी पथ के नाम से जाना जाता है.

खादी को बढ़ावा देने हेतु गांधी जी ने भेंट किया था चरखाः स्व. शत्रुघ्न सिंह के परिजन आलोक कुमार सिंह, परपौत्र विश्वजीत कुमार, भतीजा राकेश कुमार सिंह, व जयप्रकाश सिंह ने बताया कि गांधी जी का जब आगमन हुआ था. तब उन्हें रूमाल भेंट में मिली थी. जिसके बाद गांधी जी ने बदले में स्व. सिंह के माता स्व दायजी देवी को भी उपहार में चरखा भेंट करते खादी को बढ़ावा देने की बात कही थी. महात्मा गांधी ने उस समय रेडियो पर देश भर का सामाचार भी सुना था. मालूम हो कि वह भेंट किया हुआ गांधी का चरखा और रेडियो आज भी बरैल में मौजूद है. गांधीजी के अलावे देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद भी राष्ट्रपति बनने से पहले स्वतंत्रता सेनानी स्व सिंह के आवास पर आकर रूकते थे. आलोक सिंह ने बताया कि जब इस बात की भनक म्यूजियम वाले और पुराने सामानों को शौक रखने वाले लोगों को लगी तो वे उक्त रेडियो और चरखा के लिये बोली लगाना शुरू कर दिये. रोडियो की कीमत 03 लाख रूपये तक लगायी गयी. लेकिन उन्होंने इसे देने से साफ इंकार कर दिया.

गांधी जी के कहल करू अप्पन टहल करू..: सुपौल आगमन के बाद गांधी जी ने जब कर्णपुर में ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की थी तो देश प्रेमियों का सैलाब उमड़ पड़ा था. बताया जा रहा है कि कर्णपुर गांव के महान स्वतंत्रता सेनानी स्व शिव नारायण मिश्र उर्फ लाल बाबाजी व लहटन चौधरी आदि गांधीजी के खास प्रिय देश प्रेमियों में से एक थे. स्व मिश्र की पुत्री त्रिवेणी देवी ने बताया कि गांधीजी के आगमन कि किस्से उनके पिता द्वारा बताया गया था. बताया कि गांधीजी जब कर्णपुर गांव में खादी का प्रचार-प्रसार कर रहे थे. तब उन्होंने यहां के भाषा में एक पंक्ति गुनगुनाकर लोगों को जागृत किया था. बताया कि गांधी जी ने सभा में कहा था कि गांधीजी के कहल करू, अप्पन टहल करू...घर-घर चरखा चलबु यौ भारत के भैया... बताया गया कि गांधीजी के पद यात्रा में प्रखर स्वतंत्रता सेनानी शत्रुघ्न प्रसाद सिंह, यमुना प्रसाद सिंह, राम बहादुर सिंह, चित नारायण शर्मा, शिव नारायण मिश्र, गंगा प्रसाद सिंह आदि ने मुख्य रूप से भाग लिया था. वहीं लहटन चौधरी, चंद्र किशोर पाठक सहित सैकड़ों स्वयंसेवकों ने आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी.

Last Updated : Oct 2, 2022, 5:25 PM IST
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