सीतामढ़ी: जिला पुलिस (Sitamarhi Police News) की कार्यशैली पर एक बार फिर से सवाल उठ रहे हैं. जिस दारोगा को सलाखों के पीछे रहना चाहिए था, वो आराम से अपनी ड्यूटी बजा रहा था. दरअसल पुलिस हाजत में पिटाई के एक मामले में थाना अध्यक्ष से लेकर कई पुलिसकर्मी लंबे समय से सलाखों के पीछे हैं. वहीं वारंटी दारोगा अरुण राय (Warranty Inspector Arun Rai) व्यवहार न्यायालय से फरार चल रहे थे.
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6 मार्च 2019 को जिला मुख्यालय डुमरा थाने में दो युवकों को लूट के एक मामले में पुलिस ने हिरासत में लिया था. हिरासत में लेने के दौरान मोहम्मद तसलीम और मोहम्मद गुरफान पुलिस हाजत में ही पिटाई से मौत हो गई थी. जिसको लेकर तत्कालीन आईजी ने अपनी जांच रिपोर्ट में दोषी पुलिसकर्मियों पर एफआईआर करते हुए उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेजा था.
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वहीं इस मामले को तत्कालीन जनसंख्या कल्याण मंत्री ने विधानसभा में भी उठाया था. मामले में आरोपी होने और न्यायालय से वारंट होने के बावजूद अपने प्रभाव के कारण दारोगा अरुण राय लगातार जिले के विभिन्न थानों में पदस्थापित थे. लेकिन आखिरकार न्यायालय के आगे दारोगा को झुकना पड़ा और जेल जाना पड़ा.
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मामले को लेकर जिला पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठ रहे हैं. एक तरफ न्यायालय से वारंट निर्गत होने के बाद भी दारोगा अरुण राय थाने में पदस्थापित थे तो, दूसरी तरफ पुलिसकर्मी जमानती धाराओं में भी आम लोगों को जेल भेज रहे हैं.
पुलिस सूत्रों की मानें तो मामले में व्यवहार न्यायालय के द्वारा लगातार नोटिस और वारंट के बाद पुलिस विभाग के आला अधिकारियों के दबाव में दारोगा अरुण राय ने सीतामढ़ी व्यवहार न्यायालय में मंगलवार को आत्मसमर्पण किया. जहां से न्यायालय ने अरुण को जेल भेजने का आदेश दिया और अरुण सलाखों के पीछे पहुंच गए. इस मामले को लेकर जिले के आम लोगों में चर्चाओं का बाजार गर्म है.
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