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छठ में चढ़ने वाले हाथी के निर्माण में जुटे मूर्तिकार, पूजा के दौरान माना जाता है शुभ

मूर्तिकार बताते हैं कि पहले के मुकाबले दीपावली में मिट्टी के दीये की अब कम बिक्री होती है. ऐसे में इसके प्रति लोगों का रुझान काफी कम हो गया है.

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Published : Nov 1, 2019, 2:52 PM IST

हाथी के निर्माण में जूटे मूर्तिकार

सीतामढ़ी: लोक आस्था के महापर्व छठ के अवसर पर हाथी अर्पित करने की परंपरा आज भी कायम है. ऐसे में जिले में मूर्तिकार हाथी निर्माण के दौरान हाथी की प्रतिमा को अंतिम रूप देने में जुटे हुए हैं.

हाथी को माना जाता है शुभ
ग्रामीण ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि लोग मन्नत मांगते हैं और यदि उनकी मन्नत पूरी हो जाती है तो अर्घ्य देने के दौरान हाथी की प्रतिमा को नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है. वहीं, कुछ जगहों पर लोग हाथी को शुभ मानते हुए अपने घरों के दरवाजे के पास नहीं तो बगीचों में रखते हैं.

छठ में चढ़ने वाले हाथी के निर्माण में जुटे मूर्तिकार

मिट्टी के दीये की नहीं होती ज्यादा बिक्री
जिले में कई ऐसे मूर्तिकार हैं जो हाथी की प्रतिमा बनाते हैं. वे महीनों से लग कर इसके निर्माण में जुटे हुए रहते हैं. मूर्तिकार बताते हैं कि पहले के मुकाबले दीपावली में मिट्टी के दीये की अब कम बिक्री होती है. ऐसे में इसके प्रति लोगों का रुझान काफी कम हो गया है. इसलिए उन्होंने छठ पर्व के लिए हाथी बनाना शुरू किया. जिससे उनके परिवार का भरन-पोषण हो सके. महंगाई होने के कारण हाथी निर्माण में लगने वाले मटेरियल भी काफी महंगे आते है. जिसके कारण पिछले साल के मुकाबले इस बार मूर्तिकार हाथी के भाव ज्यादा बढ़ाकर बेच रहे हैं.

सीतामढ़ी: लोक आस्था के महापर्व छठ के अवसर पर हाथी अर्पित करने की परंपरा आज भी कायम है. ऐसे में जिले में मूर्तिकार हाथी निर्माण के दौरान हाथी की प्रतिमा को अंतिम रूप देने में जुटे हुए हैं.

हाथी को माना जाता है शुभ
ग्रामीण ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि लोग मन्नत मांगते हैं और यदि उनकी मन्नत पूरी हो जाती है तो अर्घ्य देने के दौरान हाथी की प्रतिमा को नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है. वहीं, कुछ जगहों पर लोग हाथी को शुभ मानते हुए अपने घरों के दरवाजे के पास नहीं तो बगीचों में रखते हैं.

छठ में चढ़ने वाले हाथी के निर्माण में जुटे मूर्तिकार

मिट्टी के दीये की नहीं होती ज्यादा बिक्री
जिले में कई ऐसे मूर्तिकार हैं जो हाथी की प्रतिमा बनाते हैं. वे महीनों से लग कर इसके निर्माण में जुटे हुए रहते हैं. मूर्तिकार बताते हैं कि पहले के मुकाबले दीपावली में मिट्टी के दीये की अब कम बिक्री होती है. ऐसे में इसके प्रति लोगों का रुझान काफी कम हो गया है. इसलिए उन्होंने छठ पर्व के लिए हाथी बनाना शुरू किया. जिससे उनके परिवार का भरन-पोषण हो सके. महंगाई होने के कारण हाथी निर्माण में लगने वाले मटेरियल भी काफी महंगे आते है. जिसके कारण पिछले साल के मुकाबले इस बार मूर्तिकार हाथी के भाव ज्यादा बढ़ाकर बेच रहे हैं.

Intro:लोक आस्था का महापर्व छठ के अवसर पर हाथी अर्पित करने की परंपरा आज भी कायम। हाथी निर्माण को अंतिम रूप देने में जुटे हैं मूर्तिकार।Body: लोक आस्था का महापर्व छठ के अवसर पर पूरे देश में पूजा अर्चना के साथ हाथी अर्पित करने की परंपरा बरकरार है। ऐसी मान्यता है कि जिन परिवारों में हाथी अर्पित करने का संकल्प और मन्नत माना जाता है उस परिवार की ओर से सुबह और शाम के अर्थ देने के दौरान नदी और तालाब घाट पर हाथी अर्पित किया जाता है।कुछ जगहों पर चढ़ाए गए हाथी को जल में विसर्जन कर दिया जाता है। वहीं कुछ जगहों पर विसर्जन के बाद उसे शुभ मानते हुए लोग अपने घरों दरवाजे और बगीचों में रख देते हैं। ताकि परिवार में खुशी और समृद्धि बरकरार रहे। इस हाथी निर्माण के लिए जिले के कई ऐसे मूर्तिकार हैं जो महीनों से जुटे हुए हैं। मूर्तिकार का बताना है कि दीपावली से छठ जो मिट्टी के दीप और अन्य बर्तन की बिक्री होती थी। अब उसके प्रति लोगों का रुझान काफी कम हो गया है। इसलिए उसकी बिक्री उतनी मात्रा में नहीं हो पाती है। जिससे कि परिवार का भरण-पोषण हो सके। अब छठ पर्व पर जो हाथी चढ़ाने की परंपरा है इसलिए उसका निर्माण कर और उसकी बिक्री करते हैं और उससे जो पैसे प्राप्त होता है। उसी से परिवार का भरण पोषण किया जाता है। काफी महंगाई होने के कारण हाथी निर्माण में लगने वाला मटेरियल भी काफी महंगा खरीद करना पड़ रहा है। इसलिए अन्य वर्षो की तुलना में इस वर्ष हाथी का दाम भी थोड़ा ज्यादा रखा गया है।
छठ पर्व, छठ या षष्‍ठी पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाने वाला एक हिन्दू पर्व है। सूर्योपासना का यह अनुपम लोकपर्व मुख्य रूप से पूर्वी भारत के बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। प्रायः हिन्दुओं द्वारा मनाये जाने वाले इस पर्व को इस्लाम सहित अन्य धर्मावलम्बी भी मनाते देखे गये हैं। धीरे-धीरे यह त्योहार प्रवासी भारतीयों के साथ-साथ विश्वभर में प्रचलित हो गया है। छठ पूजा सूर्य और उनकी बहन छठी म‌इया को समर्पित है ताकि उन्हें पृथ्वी पर जीवन की देवतायों को बहाल करने के लिए धन्यवाद और कुछ शुभकामनाएं देने का अनुरोध किया जाए। छठ में कोई मूर्तिपूजा शामिल नहीं है। लेकिन हाथी चढ़ाने और अर्पित करने की परंपरा आज भी कायम है।
बाइट 1. आरा गांव का मूर्तिकार काला गमछा में।
बाइट 2. हाथी चढ़ाने की परंपरा को बताते ग्रामीण लाल कुर्ता में।
बाइट 3. पंडित हरिशंकर मिश्र।
पी टू सी 4.
विजुअल 5,6,7,8,9,10

Conclusion:पी टू सी :_राहुल देव सोलंकी। सीतामढ़ी।
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